जबरन या धोखे से धर्म परिवर्तन कराने को लेकर क्या है इस्लाम का आदेश ?
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जबरन या धोखे से धर्म परिवर्तन कराने को लेकर क्या है इस्लाम का आदेश ?

Forceful Conversion and Islam: देश का कानून सभी को स्वेच्छा से अपनी अंतरात्मा के मुताबिक किसी भी धर्म को मानने, उसे स्वीकार करने और उसपर चलने की आजादी देता है, लेकिन इस वक्त देशभर में जबरन, धोखा या प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन कराने के कथित मामले सामने आ रहे हैं. आईये, कुरान और हदीस की रौशनी में जानते हैं कि इस्लाम जबरन, धोखा या लालच देकर धर्म बदलने पर क्या कहता है ? 

जबरन या धोखे से धर्म परिवर्तन कराने को लेकर क्या है इस्लाम का आदेश ?

भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है, यानी देश का आधिकारिक और घोषित तौर पर कोई धर्म नहीं हैं. भारत का संविधान यहां के नागरिकों को अपनी मर्जी से कोई भी धर्म मानने, उसपर चलने, उसके मुताबिक आचरण करने और अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करने की सभी को छूट देता है. भारत के कानून और संविधान का पालन करते हुए देश के अन्य धर्मों के अनुयायियों की तरह भारत का मुसलमान भी यहां अपने धर्म का पालन और उसका प्रचार-प्रसार करता है. 

धर्म के इस प्रचार-प्रसार को तब्लीग कहते हैं, जिसका मतलब होता है दावत या निमंत्रण देना. तब्लीग का ज्यादातर काम तब्लीगी जमात द्वारा किया जाता है, जिसके टारगेट पर ज्यादातर मुसलमान होते हैं. ये मुसलमानों के बीच इस्लामी ज्ञान और शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करते हैं. उन्हें धर्म पर चलने की सीख देते हैं. उन्हें नमाज पढ़ने, रोजा रखने, जकात अदा करने, अच्छा आचरण करने और पैगम्बर मोहम्मद साहब के बताए हुए रास्तों पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं. वहीं, जमात-ए-इस्लामी जैसे भी कुछ संगठन हैं, जो इस्लामी शिक्षाओं का उर्दू, इंग्लिश और हिंदी में प्रकाशन करते हैं, ताकि इस्लाम का संदेश मुसलमानों के अलावा दूसरे धर्मों के मानने वाले लोगों तक भी पहुंचाया जा सके.
कुछ संगठन धार्मिक सभा-संगोष्ठी और सेमिनारों का भी आयोजन करते हैं. अपने धर्म को मानने, उसपर चलने और उसके प्रचार-प्रसार का काम भारत में इस्लाम के अलावा दूसरे धर्म के लोग भी करते हैं.

धर्म परिवर्तन के मामलों में अचानक हुआ इजाफा 
हालांकि, केंद्र में 2014 में भाजपा की सरकार बनने के बाद देश के अलग-अलग हिस्सों से धोखे से, प्रलोभन देकर और डरा-धमकाकर जबरन धर्म परिवर्तन कराए जाने वाली खबरों की बाढ़ आ गई. इसमें कथित लव जिहाद का मामला भी शामिल है. भाजपा के कई नेता और हिंदू संगठन यह इल्जाम लगाते रहे हैं कि देश में कुछ इस्लामी संगठन और लोग संगठित तौर पर जबरन हिंदुओं को डरा, धमकाकर, प्रलोभन देकर या लव जिहाद यानी धोखा देकर शादी के बहाने हिंदू लड़कियों का धर्म परिर्वतन कराने में लगे हैं. जबरन धर्म परिवर्तन कराने के इल्जामों के साथ इस बात का भी जोर-शोर से प्रचार किया जाता रहा है कि मुगलकालीन भारत में मुगल शासकों ने तलवार के जोर पर बड़े पैमाने पर हिंदुओं को डरा-धमकरा उनसे इस्लाम धर्म कबूल करवाया था. हालांकि, मुगल शासकों के किसी कृत्य के लिए न तो वर्तमान समय का मुसलमान जिम्मेदार है और न ही उसे इसके लिए कसूरवार ठहराया जा सकता है.  

जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए बनाए जा रहे हैं कानून 
केंद्र और कई राज्यों में भाजपा के सत्ता में आने के बाद कुछ भाजपा शासित राज्यों में धर्म परिवर्तन और कथित लव जिहाद को रोकने के लिए कड़े कानून भी बनाए गए हैं, जिनमें जुर्माने के साथ-साथ 3 से 10 सालों तक की सजा का भी प्रावधान है. धर्म परिवर्तन और लव जिहाद को लेकर कानून बनाने वाले भाजपा शासित राज्यों में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और कर्नाटक जैसे राज्य शामिल हैं. इन कानूनों के बनने के बाद जबरिया धर्म परिवर्तन कराने और लव जिहाद यानी धोखे से दूसरे धर्म की लड़की को शादी कर मुस्लिम बनाने के आरोप में ढ़ेर सारे लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है, जो इस्लाम धर्म से ताल्लुक रखते हैं. कुछ अन्य राज्य भी इस मसले पर कानून बनाने या पहले से मौजूद कानूनों को और सख्त करने पर विचार कर रहे हैं. 

जबरन धर्म परिवर्तन की इस्लाम नहीं देता है इजाजत 
इस बीच जमीयत उलेमा-ए-हिंद जैसे संगठनों ने ये भी इल्जाम लगाया है कि राज्यों में धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए बने नए कानून मुस्लिम नौजवानों को टारगेट कर रहे हैं. उन्हें झूठे मामलों में फंसाया जा रहा है. जमीयत उलेमा-ए-हिंद और एनजीओ ‘सिटिजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस’ ने इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में राज्यों के धर्म परिवर्तन कानूनों को चुनौती भी दी है. सेंटर फॉर सेक्यूलरिजम स्टडीज के निदेशक इरफान इंजीनियर कहते हैं,  "ऐसे कानून नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं. यह धर्म के चयन की आजादी को बाधित करते हैं.’’ 
वहीं, मुस्लिम स्कॉलर और धार्मिक मामलों के जानकार, इस बात से ही इंकार करते हैं कि किसी को धोखा देकर या डरा-धमका कर इस्लाम धर्म कबूल कराया जा सकता है. उनका मानना है कि जो ऐसे आरोपों में कोई दम नहीं हैं और अगर आरोप सही हैं, तो वह लोग गलत हैं, जो किसी को डरा-धमका कर, प्रलोभन देकर या धोखे में रखकर इस्लाम में दाखिल करा रहे हैं. इस्लाम ऐसा करने की किसी को इजाजत नहीं देता है. 

ऐसा करना गैर-इस्लामी कृत्य है 
क्या किसी को जबरदस्ती या धोखे में रखकर इस्लाम कबूल कराया जा सकता है, इस सवाल पर जामिया मीलिया इस्लामिया के पूर्व  इस्लामिक रिसर्च स्कॉलर और धार्मिक मामलों के जानकारी मौलाना अबरारुल हसन इस्लाही कहते हैं, "धर्म कोई जोर-जबरदस्ती या धोखे की चीज नहीं है. ऐसा करना गैर-इस्लामी कृत्य है. कुरान या हदीस इसकी इजाजत नहीं देता है, और कुरान के आदेशों के खिलाफ काम करने वाले लोग मुसलमान नहीं हो सकते हैं.’’ 
मौलाना इस्लाही कुरान की एक आयात का हवाला देते हैं. 

आयत है لاَ إِکْرَاہَ فِیْ الدِّیْنِ ( سورہ بقرہ،آیت 256) )  ला इकराहा फिद्दीन (सूरा बकरा, आयत 256)
ये आयत कुरान की 'सूरा अल बकरा’ में मौजूद है. इस आयत का मतलब है कि धर्म (इस्लाम) में किसी भी तरह की कोई ज़बरदस्ती नहीं है. इससे साफ हो जाता है कि इस्लाम किसी को भी जबरदस्ती धर्म बदले की इजाज़त नहीं देता है. दूसरा, यह कि इस्लाम में नीयत यानी अंतरात्म की आवाज बहुत अहम चीज होती है. अगर आप किसी चीज का सिर्फ दिखावा कर रहे हैं और वो हकीकत में नहीं है तो फिर उस दिखावे का कोई मतलब नहीं है. अल्लाह, अपने बंदों के दिलों की बात जानता है, तो कोई उससे छल-कपट कैसे कर सकता है? अगर कोई दिल से इस्लाम स्वीकार नहीं कर रहा है तो जबरन उसे इस्लाम में लाने का क्या और किसको फायदा होना है ? 

मौलाना इस्लाही कहते हैं, ’’इस्लाम मुसलमानों पर भी जोर जबरदस्ती करने की इजाजत नहीं देता है, तो दूसरे मजहब के लोगों पर जबरदस्ती कैसे की जा सकती है? अगर कोई गलत रास्ते पर है, तो उसका हिसाब उसका रब करेगा, किसी इंसान को इसपर अपना सर खपाने या हाकिम बनने की जरूरत नहीं है.’’ इस्लाही इस पूरे मामले को एक प्रोपगैंडा बताते हैं. वह आगे कहते हैं कि अगर कोई ऐसा ये सोचकर कर भी रहा है कि इससे इस्लाम का भला होगा, तो वह इंसान सच्चे इस्लाम से दूर होगा. हमें इस्लाम की सही बातें उनतक पहुंचाने की जरूरत है. वह भटके हुए लोग हैं.     

... तो ईश्वर खुद सभी को मुसलमान बना देता 
जबरन इस्लाम धर्म कबूल कराने के सवाल पर डॉ. शमशुद्दीन नदवी, जो भारत के नदवा समेत सीरिया और लेबनान में लंबे अरसे तक रहकर इस्लाम का अध्ययन कर चुके हैं, वह कहते हैं, ’’इस्लाम में इसकी कोई जगह नहीं है. नदवी अपनी बात को समझाने के लिए कुरान की एक आयत का हवाला देते हैं,   
وَلَوْ شَآءَ رَبُّكَ لَءَامَنَ مَن فِى ٱلْأَرْضِ كُلُّهُمْ جَمِيعًا ۚ أَفَأَنتَ تُكْرِهُ ٱلنَّاسَ حَتَّىٰ يَكُونُواْ مُؤْمِنِينَ( سورہ یونس، آیت 99)

वलौ शाआ रब्बुका ल-अमना मन फिल-अरज़ी कुल्लुहुम जमीआ. अफाअंता तुकरहुंन्नासा हत्ता यकूनू मोमिनीन
ये आयत कुरान के सूरा यूनुस में मौजूद है. इस आयत का मतलब है कि ईश्वर सर्व शक्तिमान है. अगर वह चाहता तो जमीन पर रहने वाले दुनिया के सारे लोगों को एक झटके में मुसलमान बना देगा, लेकिन वह ऐसा नहीं कर रहा है. जब खुदा ने ही जबरन मुसलमान नहीं बनाया तो क्या तुम, लोगों पर ज़बरदस्ती करोगे? इस आयत का भी सीधा सा मतलब यही है कि किसी को ज़बरदस्ती इस्लाम में दाखिल नहीं कराया जा सकता है. 

नदवी कहते हैं, "ईश्वर चाहता है कि बंदा उससे सच्चा प्रेम करे, जिसमें कोई छल, प्रपंच या प्रलोभन न हो, तो किसी को धोखे या जबरदस्ती कैसे अल्लाह से प्रेम करवाया और इस्लाम में दाखिल कराया जा सकता है. हमारा काम इस्लाम की शिक्षाओं को लोगों तक पहुंचाना भर है, जिसे अच्छा लगेगा, समझ में आएगा वह मानेगा.’’ वह आगे कहते हैं, दुनिया के सारे धर्मों में सर्व शक्तिमान अदृश्य ईश्वर की अवधारणा है, जिसे समझने की जरूरत है. 

पैगंबर मोहम्मद साहब का संदेश
कुरान के अलावा जबरदस्ती धर्म परिवर्तन को लेकर पैगमंबर हज़रत मोहम्मद साहब (स.) ने भी खास संदेश दिया है. कुरान के बाद इस्लाम में सबसे ज्यादा अहमियत रखने वाली किताब 'हदीस’ में आया है हज़रत मोहम्मद साहब (स.) के जमाने में एक शख्स ने इस्लाम कुबूल कर लिया था, लेकिन जैसे-जैसे कुछ दिन गुजरे तो उस शख्स ने किन्हीं वजहों से अपने धर्म में वापस जाने की इजाज़त मांगी. हज़रत मोहम्मद साहब (स.) ने उस शख्स को खुशी-खुशी उसके पुराने धर्म वापस जाने दिया, किसी भी तरह की जबरदस्ती या लालच नहीं दिया गया.

मुगलकाल में जबरन तलवार के जोर पर इस्लाम फैलाने के आरोपों पर डॉ. शमशुद्दीन नदवी कहते हैं, "भारत राजपूत जैसे वीरों और ब्राहम्ण जैसे बुद्धिमान लोगों की धरती रही है. अगर तलवार के दम पर इस्लाम फैलाया गया होता तो वह तत्कालीन इतिहास, किस्से, कहानियों, उपन्यास, काव्यों में दर्ज होता. उसे अब लिखने और प्रचारित करने की जरूरत क्यों पड़ रही है. कोई तो इसे लिखा होता, लेकिन इसके कोई साक्ष्य नहीं मिलते हैं. और अगर कियी शासक ने ऐसा किया भी था, तो वह गैर-इस्लामिक था. हम उसका समर्थन नहीं करेंगे.’’ 

Zee Salaam

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