‘अल्लाह’ और ‘मोहम्मद’ लिखे ऊंची कीमतों के बकरे पर क्या है मुफ्ती की राय ?
Advertisement
trendingNow,recommendedStories0/zeesalaam/zeesalaam1251032

‘अल्लाह’ और ‘मोहम्मद’ लिखे ऊंची कीमतों के बकरे पर क्या है मुफ्ती की राय ?

इस्लामी मामलों के जानकारों ने ऐसे ‘अल्लाह’ और ‘मोहम्मद’ वाले बकरों और इसे उंची कीमतों पर खरीदने को न सिर्फ दिखावा और आडंबर बताया है, बल्कि इससे लोगों को बचने की सलाह दी है. 

अलामती तस्वीर

नई दिल्लीः हर साल बकरीद में बकरा मंडी में सबसे महंगे बकरे और बकरे पर लिखे 'अल्लाह’ और 'मोहम्मद’ की खबरें आती है. अल्लाह और मोहम्मद लिखे बकरे को लोग उंची कीमतों पर खरीद लेते हैं और फिर ऐसी खबरें सुर्खियां बन जाती है. शनिवार को भी दिल्ली के मीना बाजार में बकरीद से पहले बिक्री के लिए लाए गए सैकड़ों बकरों में से तीन बकरे ऐसे हैं, जिन पर बाकायदा कीमत का टैग लगा है और इनकी कीमत लाखों में है. बकरों के मालिकों ने दावा किया कि इन पर पाक शब्द ‘अल्लाह’ और ‘मोहम्मद’ की इबारत है. हालांकि, इस्लामी मामलों के जानकारों ने ऐसे ‘अल्लाह’ और ‘मोहम्मद’ वाले बकरों और इसे उंची कीमतों पर खरीदने को न सिर्फ दिखावा और आडंबर बताया है, बल्कि इससे लोगों को बचने की सलाह दी है. 

15 लाख का एक बकरा 
दिल्ली के मीना बाजार में बकरे के मालिक गुड्डू खान ने अपने एक बकरे की कीमत 30 लाख रुपये तय की है. उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर से आये गुड्डू ने कहा कि ये अनोखे बकरे हैं, जो और कहीं नजर नहीं आएंगे. अन्य दो बकरे गुड्डू के भाई और भतीजे के हैं, जिन्होंने प्रत्येक की कीमत 15 लाख रुपये तय की है. गुड्डू के भतीजे अकील खान ने कहा, मुझे यकीन है कि मुझे इसके लिए 15 लाख रुपये मिल जाएंगे.’’ अकील ने बताया कि पिछले साल भी उसने 12 लाख रुपये में एक बकरा बेचा था. उन्होंने कहा कि कल भी यहां एक बकरा 35 लाख रुपये में बिका था.

लोग धन की नुमाईश से परहेज करें
बकरों की इन कीमतों और उनकी नुमाईश पर इस्लामी मामलों के जानकार डॉ. शमशुद्दीन नदवी कहते हैं, ’’इस्लाम में दिखावा और आडंबर के लिए कोई जगह नहीं है. किसी बकरे के खाल पर 'अल्लाह’ या 'मोहम्मद’ लिखे जैसी आकृति उभर आने से कुछ नहीं होता है. यह महज एक इत्तेफाक है. इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि वह बकरा या जनवार और बकरे से खास हो गया या उसकी कुर्बानी करने से ज्यादा सबाब (पुण्य) हासिल होगा.’’ नदवी कहते हैं, ’’अल्लाह बंदो का नेक इरादा और अपने प्रति प्रेम देखता है, न कि उसकी दौलत और उसकी नुमाईश. अगर कुर्बानी में दौलत की नुमाईश और दिखावा शामिल होगा तो कुर्बानी भी दुरुस्त नहीं होगी. लोग धन की नुमाईश से परहेज करें.’’
नदवी आगे कहते हैं, ’’हमारा मुस्लिम समाज भी नैतिक रूप से भ्रष्ट हो चुका है. किसी ईमान वाले शख्स, ईमाम और मौलानाओं के दिलों में पूरा कुरान बसता है, लेकिन लोग उनकी इज्जत नहीं करते हैं. वहीं, अगर बकरे की खाल पर अल्लाह, मोहम्मद या चांद की आकृति उभर आती है, तो इसे देखकर लोग पागल हो जाते हैं! यह इस कौम की जाहलियत और ईमान के खोखलेपन की निशानी है.   
समाज में जरूरतमंद लोगों पर खर्च करें पैसे 
मौलाना अबरार इस्लाही कहते हैं, ’’कुरान के 15वें खंड के सूरह बनी इस्राइल का हवाला देते हुए कहते हैं, ’’शाहखर्ची या फिजूलखर्जी करने वाले को शैतान का भाई बताया गया है, इसलिए ईमान वालों को ऐसे दिखावों से हमेशा दूर रहना चाहिए.’’ मौलाना अबरार कहते हैं, ’’हमारे समाज में ऐसे लोग हैं, जिन्हें दो वक्त का खाना, कपड़ा, बीमार पड़ने पर इलाज और पढ़ाई के लिए पैसे नहीं है. इसलिए हमें 30 लाख का बकरा खरीदने के बजाए, ऐसे जरूरतमंद लोगों पर पैसे खर्च करने चाहिए.’’ मौलाना अबरार के मुताबिक, कुर्बानी का मकसद अल्लाह की तरफ लौटना है. उसके बताए रास्ते को फॉलो करना है. उससे प्रेम का इजहार करना है और यह जताना है कि बंदों को अल्लाह से जो प्रेम है, वह प्रेम दुनिया के हर प्रेम पर भारी है. इंसान अल्लाह के प्रेम में अपना सर्वसव न्यौछावर करने को तैयार है.  

सरकार और कानून से छिपाकर दी गई कुर्बानी नहीं है जायज 
मुफ्ती इरफान अहमद कहते हैं, कुर्बानी के लिए भेंड़, बकरा, उंट, बैल, भैंस जैसे जानवरों को सही माना गया है. इसमें शर्त ये है कि कोई भी जानवर साल भर से कम आयु का न हो और वह हष्ट-पुष्ट हो. बीमार, कमजोर या किसी शारीरिक अपंगता से ग्रस्त जानवर की कुर्बानी देना जायज नहीं है. अगर संभव हो तो कुर्बानी के जानवारों को खुद पाला जाए. इरफान अहमद आगे कहते हैं, ’’ भारत में गौवंश की कुर्बानी देना भी जायज नहीं है. अगर किसी जानवर से किसी धर्म की आस्था जुड़ी हो तो उनका कुर्बानी देना इस्लाम की नैतिकता के खिलाफ होगा.’’ इरफान अहमद ने कहा, ’’  प्रतिबंधित जानवरों की सरकार और कानून से छुपकर दी गई कुर्बानी कबूल भी नहीं होगी. लोगों को इससे परहेज करना चाहिए.’’ वहीं कुर्बानी के गोश्त को लेकर भी मुफ्ती इरफान अहमद ने कहा कि इसे बांटने में किसी तरह का लालच और मोह करने के बजाए खुले दिल से इसे गरीबों में तकसीम करना चाहिए. कुर्बानी के गोश्त पर असली हक उन गरीब और मिसकीन लोगों का ही है, जो कुर्बानी देने में सक्षम नहीं हैं    

Zee Salaam

Trending news