Aligarh Muslim University के माइनोरिटी स्टेटस पर आज फैसला, जानें पूरा मामला
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Aligarh Muslim University के माइनोरिटी स्टेटस पर आज फैसला, जानें पूरा मामला

Aligarh Muslim University: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के माइनोरिटी स्टेटस मामले में सुप्रीम कोर्ट आज फैसला सुनाने वाला है. 8 दिनों की सुनवाई के बाद आज सीजेआई की सदारत वाली बेंच इस मामले में फैसला सुनाएगी.

Aligarh Muslim University के माइनोरिटी स्टेटस पर आज फैसला, जानें पूरा मामला

Aligarh Muslim University: सुप्रीम कोर्ट आज यानी शुक्रवार को इस बात पर अपना फैसला सुनाएगा कि उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) को संविधान के आर्टिकल 30 के तहत माइनोरिटी स्टेटस मिलता है या नहीं. जिसके जरिए माइनोरिटी को यह अधिकार है कि वह अपना एजुकेशन इंस्टिट्यूट खोल सकें.

आज आएगा एएमयू पर बड़ा फैसला

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ की सदारत वाली सात जजों की संविधान पीठ आठ दिनों की सुनवाई के बाद आज इस मामले में फैसला सुनाएगी. टॉप कोर्ट इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2006 के फैसले पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि यूनिवर्सिटी अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है.

कोर्ट ने 1981 के संशोधन का किया जिक्र

कोर्ट ने 1967 के सुप्रीम कोर्ट के मामले की वैधता पर भी विचार किया, जिसमें यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे को खारिज कर दिया गया था, साथ ही एएमयू अधिनियम में 1981 के संशोधन पर भी विचार किया गया, जिसने अल्पसंख्यक दर्जा दिया था. सुनवाई के दौरान, पीठ ने 1981 के संशोधन पर फिक्र का इजहार किया था, जिसमें कहा गया था कि इसने यूनिवर्सिटी की 1951 से पहले की स्थिति को बहाल करने में "आधे-अधूरे मन से काम" किया है.

सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कही थी ये बात

1951 के संशोधन ने विश्वविद्यालय में मुस्लिम छात्रों के लिए जरूरी धार्मिक शिक्षा की जरूरत को खत्म कर दिया था. मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान कहा था कि एक बात जो हमें फिक्र में डाल रही है, वह यह है कि 1981 का संशोधन 1951 से पहले की स्थिति को बहाल नहीं करता है. दूसरे शब्दों में, 1981 का संशोधन आधे-अधूरे मन से किया गया काम है."

बीजेपी ने 1981 का अमेंडमेंट मानने से किया इंकार

इससे पहले, भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने एएमयू अधिनियम में 1981 के संशोधन को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था. इसके बजाय, उन्होंने तर्क दिया था कि अदालत को 1967 के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले का पालन करना चाहिए, जिसने फैसला सुनाया था कि क्योंकि संस्थान एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी है, इसलिए इसे माइनोरिटी इंस्टीट्यूट के रूप में कैटेगराइज नहीं किया जा सकता है.

कपिल सिब्बल ने कही ये बात

अल्पसंख्यक दर्जे के समर्थकों, जिनका प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल कर रहे हैं, का तर्क है कि विश्वविद्यालय का दर्जा संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत वैध है, जो धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रबंधन करने का अधिकार देता है. उनका यह भी तर्क है कि विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक चरित्र इस तथ्य से प्रभावित नहीं होता है कि इसके 180 गवर्निंग काउंसिल मेंबर्स में से केवल 37 मुस्लिम हैं.

1951 में खो दिया माइनोरिटी स्टेटस: तुषार मेहता

सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी थी कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, सरकार के जरिए भारी मात्रा में फंडिंग लेतीहै और यह एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी है और इसे राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया है, इसलिए इसका अल्पसंख्यक दर्जे का दावा नहीं किया जा सकता.  उन्होंने कहा कि 1951 के एएमयू अधिनियम संशोधन के बाद संस्थान ने अपना अल्पसंख्यक चरित्र त्याग दिया, खासकर तब से जब से इसे केंद्र सरकार से फंडिंग किया जाने लगा।

बता दें, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पहले एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने वाले 1981 के कानून को रद्द कर दिया था, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी. शीर्ष अदालत ने 2019 में इस मुद्दे को सात न्यायाधीशों की पीठ को भेज दिया था.

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