'मोहब्बत अपने लिए जिन को मुंतख़ब कर ले', सलीम कौसर के शेर
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'मोहब्बत अपने लिए जिन को मुंतख़ब कर ले', सलीम कौसर के शेर

Saleem Kausar Poetry: सलीम कौसर ने उर्दू के शेर को बहुत ही आम-फहम जबान में पेश किया है. आज हम आपके सामने पेश कर रहे हैं उर्दू के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले शायरों शुमार सलीम कौसर को शेर.

'मोहब्बत अपने लिए जिन को मुंतख़ब कर ले', सलीम कौसर के शेर

Saleem Kausar Poetry: सलीम कौसर उर्दू के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले शायरों में शुमार होते हैं. सलीम कौसर की पैदाइश सन् 1945 को पानीपत भारत में हुई. बंटवारे के वक़्त सलीम का परिवार पाकिस्तान चला गया. इन्होंने बहुत से टीवी सीरियल के लिए गाने लिखे. 'मोहब्बत एक शजर है', 'ये चिराग है तो जला रहे' वगैरह इनकी बेहतरीन किताबें हैं. इनकी ग़ज़ल 'मैं ख़याल हूँ किसी और का, मुझे सोचता कोई और है' बहुत मशहूर है.

तुम ने सच बोलने की जुरअत की 
ये भी तौहीन है अदालत की 

पुकारते हैं उन्हें साहिलों के सन्नाटे 
जो लोग डूब गए कश्तियाँ बनाते हुए 

कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए 
वो सो गया है मुझे ख़्वाब से जगाते हुए 

साए गली में जागते रहते हैं रात भर 
तन्हाइयों की ओट से झाँका न कर मुझे 

क़दमों में साए की तरह रौंदे गए हैं हम 
हम से ज़ियादा तेरा तलबगार कौन है 

ख़ामोश सही मरकज़ी किरदार तो हम थे 
फिर कैसे भला तेरी कहानी से निकलते 

साँस लेने से भी भरता नहीं सीने का ख़ला 
जाने क्या शय है जो बे-दख़्ल हुई है मुझ में 

मुझे सँभालने में इतनी एहतियात न कर 
बिखर न जाऊँ कहीं मैं तिरी हिफ़ाज़त में 

अभी हैरत ज़ियादा और उजाला कम रहेगा 
ग़ज़ल में अब के भी तेरा हवाला कम रहेगा

क़ुर्बतें होते हुए भी फ़ासलों में क़ैद हैं 
कितनी आज़ादी से हम अपनी हदों में क़ैद हैं 

मोहब्बत अपने लिए जिन को मुंतख़ब कर ले 
वो लोग मर के भी मरते नहीं मोहब्बत में 

कुछ इस तरह से वो शामिल हुआ कहानी में 
कि इस के बाद जो किरदार था फ़साना हुआ 

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