किसी मुल्क में 12 तो कहीं 17 घंटे, क्यों अलग-अलग है रोज़े रखने का दौरानिया
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किसी मुल्क में 12 तो कहीं 17 घंटे, क्यों अलग-अलग है रोज़े रखने का दौरानिया

Ramazan 2023: रमजान का महीना कल से शुरू होने वाला है. इस्लाम धर्म में इस माह की बहुत फजीलत है. इस महीने में ही कुरान नाजिल हुआ. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि दुनियाभर में कहीं 12 घंटे तो 17 घंटे रोजा क्यों है.

किसी मुल्क में 12 तो कहीं 17 घंटे, क्यों अलग-अलग है रोज़े रखने का दौरानिया

Ramazan 2023: रमज़ान की सबसे बड़ी इबादत रोज़ा ही है, सुबह सूरज निकलने के पहले से लेकर सूरज डूबने तक कुछ न खाने पीने को रोज़ा कहते हैं. रोज़े का वक़्त 12 से 17 घंटे तक हो सकता है. ये अलग अलग शहर और मुल्क के मुताबिक़ बदलता रहता है. जैसे दुनिया के शुमाली मुल्क में रोज़े 12 घंटे के होते हैं. न्यूज़ीलैंड में रहने वाले रोज़ेदार औसतन 12 घंटे का रोज़ा रहते हैं. क्योंकि 12 घंटे के दरमियान सूरज निकल कर डूब जाता है. वहीं इसके बरअक्स शुमाली मुल्क में रोज़े औसतन 17 घंटे के होते हैं. जैसे आईसलैंड. ग्रीानलैंड वग़ैरा में रहने वाले रोज़ेदार 17 घंटे से ज़्यादा का रोज़ा रखते हैं. हमारे मुल्क हिंदुस्तान समेत अरब मुल्कों में औसतन 14 घंटे का रोज़ा रखा जाता है.

हर साल 10 दिन पहले क्यों शुरु हो जाता है रमज़ान

रमज़ान हर बार पिछले साल के मुक़ाबले 10 से 11 दिन पहले शुरू होता है. इसकी वजह ये है कि इस्लामी कैलेंडर क़मरी-हिजरी कैलेंडर पर मबनी है. यानी इस्लामी कैलेंडर चांद देखकर तय किया जाता है. चांद किसी महीने में 30 तारीख़ को निकलता है तो किसी महीने की 29 तारीख़ को दिखाई देता है. नया चांद दिखते ही महीने का कैलेंडर बदल जाता है. दुनिया में जो कैलेंडर आम हैं वो शम्सी कैलेंडर कहे जाते हैं. यानी ये कैलेंडर सूरज पर आधारित हैं. क़मरी कलैंडेर शम्सी कैलेंडर से छोटा होता है. इसलिए हर साल उर्दू महीने अपनी पिछली तारीख़ों के मुक़ाबले 10 से 11 दिन पहले शुरू हो जाते हैं.

सलमाने फ़ारसी ने रमज़ान के बारे में ये बताया

रमज़ान की बड़ी ही अज़मतो फज़ीलत है. इस महीने की एक रात हज़ार महीनों से बढ़कर है. इस महीने के रोज़े रखना फ़र्ज़ है. ये रहमतो बरकत का महीना है. ये इबादतों का महीना है. ये सब्र का महीना है और सब्र का बदला जन्नत है. ये ग़मख़्वारी का महीना है और यही वो महीना है जब मोमिन बंदो के रिज़्क़ मे इज़ाफ़ा हो जाता है. ये गुनाहों से मग़फ़िरत और आतिशे जन्नत से आज़ादी का महीना है. रमज़ान तमाम महीनों का सरदार है. सहाबी-ए-रसूल हज़रत सलमान फ़ारसी से रिवायत है कि रसूले करीम स.अ. ने शाबान के आख़िरी दिनों में वाज़ फ़रमाते हुए इरशाद फ़रमाया 'ऐ लोगो ख़ुदा का महीना बरकत, रहमत और मग़फ़िरत के साथ तुम्हारी तरफ़ आ रहा है. ये महीना ख़ुदा के नज़दीक बेहतरीन महीना है. इसके अय्याम बेहतरीन अय्याम हैं. इसकी शबें बेहतरीन शबें हैं. इसकी घड़ियां बेहतरीन घड़ियां हैं. तुम्हारी सांसे ज़िक्रे ख़ुदा में पढ़ी जाने वाली तस्बीह का सवाब रखती हैं. तुम्हारी नींदे इबादत, आमाल मक़बूल और दुआएं मुस्तेजाब हैं. लिहाज़ा इस महीने से ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेफ़ादा करो'.

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रमजान से जिंदगी का हर शोबा होता है नूर

सरकारे मदीना के इस ख़ुत्बे के तनाज़ुर मे देखा जाए तो रमज़ान इन फ़ज़ीलतों की बहार लेकर हमारी ज़िदंगियों में हर साल आता है. यही वजह है कि सिर्फ़ इबादतगाहें ही नही बल्कि ज़िदंगी का हर शोबा इससे पुरनूर और बारौनक़ रहता है. इस महीने में सिर्फ़ मस्जिदें और इबादतगाहें ही आबाद नहीं होती बल्कि घर, बज़ारों और अवामी जगहों पर भी इसकी रौनक़ ख़ास तौर पर देखी जाती है. रमज़ान के इस बाबरकत महीने में हर तरफ़ रौनक छाई रहती है.

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