Parliament Attack: 13 दिसंबर 2001 का दिन भारत के लिए काले दिनों में शुमार होता है. इसी दिन संसद पर आतंकी हमला हुआ, जिसमें कई लोगों की जान चली गई. पूरी खबर पढ़ें.
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Parliament Attack: 13 दिसंबर 2001 का दिन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काले चैप्टर के तौर याद किया जाता है. इस दिन भारतीय संसद, जो भारत के लोकतांत्रिक ढांचे का मुख्य स्तंभ है, उस पर आतंकी हमला हुआ. यह घटना न केवल देश की सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती देती है, बल्कि यह आतंकवाद के खिलाफ भारत की प्रतिबद्धता का भी इम्तिहान था. इस हमले में 9 लोगों की जान गई थी. आज इस हमले की बरसी है और इस मौके पर हम आपको इस हमले के बारे में पूरी जानकारी देने वाले हैं.
13 दिसंबर 2001 के संसद हमले में 9 लोग शहीद हुए थे. जिनमें से 5 पुलिस की जवान थे जिनके नाम मुख्तार अहमद, रामपाल, ओमप्रकाश, नाथी राम और धरमपाल था. वहीं सीआरपीएफ की महिला कांस्टेहल कमलेश कुमारी, संसद के स्टाफ जय भगवान और गजरात सिंह भी इसमें शहीद हुए थे.
इस हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान में मौजूद आतंकी संगठनों जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा ने ली थी, इन संगठनों का मकसद भारत में अस्थिरता पैदा करना और भारतीय लोकतंत्र को चोट पहुंचाना था. पार्लियामेंट पर हमला का मेन टारगेट मेंबर ऑफ पार्लियामेंट थे.
पार्लियामेंट पर हमला 13 दिसंबर 2001 को सुबह 11:30 बजे हुआ. उस समय संसद का विंटर सेशन चल रहा था, और संसद भवन के अंदर कई प्रमुख मंत्री, सांसद, और स्टाफ सदस्य मौजूद थे.
हमलावरों ने एक कार में सवार होकर संसद के अंदर एंट्री की. उन्होंने कार पर वीआईपी स्टिकर लगाकर सुरक्षा कर्मियों को चकमा दिया. संसद के गेट नंबर 1 के पास पहुंचते ही उन्होंने अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी। इस हमले में पांच आतंकवादी शामिल थे, जो भारी मात्रा में हथियार और विस्फोटक लेकर आए थे.
हमले के दौरान संसद भवन के अंदर और आसपास सुरक्षा के लिए तैनात दिल्ली पुलिस, सीआरपीएफ, और संसद सुरक्षा स्टाफ ने तुरंत मोर्चा संभाला. उन्होंने आतंकवादियों को संसद भवन के अंदर घुसने से रोका और एक घंटे की लड़ाई में सभी पांच आतंकियों को मार गिराया. इस मुठभेड़ में दिल्ली पुलिस के पांच जवान, सीआरपीएफ की एक महिला जवान, और संसद के गार्ड सहित कुल नौ लोग शहीद हो गए.
मारे गए आतंकियों के नाम मोहम्मद, राणा, हामज़ा, हैदर और अशरफ था. ये सभी आतंकवादी पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े हुए थे.
हमले के तुरंत बाद सुरक्षा एजेंसियों ने मामले की जांच शुरू की. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने चार लोगों को गिरफ्तार किया गया. जिसमें मोहम्मद अफजल गुरु, एसएआर गिलानी, शौकत हुसैन गुरु और नवजोत संधू (आफशां गुरु) शामिल थे. इन पर आतंकवादियों की मदद करने और साजिश रचने का आरोप लगाया गया. अदालत ने शुरुआती सुनवाई में एसएआर गिलानी और नवजोत संधू को बरी कर दिया गया, जबकि अफजल गुरु और शौकत हुसैन गुरु को दोषी ठहराया गया.
मोहम्मद अफजल गुरु को 2002 में ट्रायल कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई. दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने इस सजा को बरकरार रखा. हालांकि, उनकी फांसी पर कई सालों तक राजनीति और कानूनी प्रक्रिया चलती रही. आखिर में 9 फरवरी 2013 को अफजल गुरु को तिहाड़ जेल में फांसी दी गई.
इस हमले के बाद भारत-पाकिस्तान संबंधों में तनाव आ गया है. इस हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक संबंध काफी तनाभरे हो गए. भारत ने पाकिस्तान से सीमा पार आतंकवाद पर कार्रवाई करने की मांग की. इसके साथ ही संसद और अन्य महत्वपूर्ण संस्थानों की सुरक्षा को और मजबूत किया गया.