'ओ मेरे मसरूफ़ ख़ुदा, अपनी दुनिया देख ज़रा', नासिर काजमी के शेर
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'ओ मेरे मसरूफ़ ख़ुदा, अपनी दुनिया देख ज़रा', नासिर काजमी के शेर

Nasir Kazmi Poetry: गजल के बारे में नासिर काजमी लिखते हैं कि "ग़ज़ल का अहवाल दिल्ली का सा है. ये बार-बार उजड़ी है और बार-बार बसी है, कई बार ग़ज़ल उजड़ी लेकिन कई बार ज़िंदा हुई और इसकी विशिष्टता भी यही है कि इसमें अच्छी शायरी हुई है.”

 

'ओ मेरे मसरूफ़ ख़ुदा, अपनी दुनिया देख ज़रा', नासिर काजमी के शेर

Nasir Kazmi Poetry: नासिर काज़मी 8 दिसंबर 1925 ई. को अंबाला में पैदा हुए. उनका असल नाम सय्यद नासिर रज़ा काज़मी था. नासिर ने पांचवीं जमात तक अंबाला के स्कूल में शिक्षा प्राप्त की. नासिर ने छटी जमात नेशनल स्कूल पेशावर से, और दसवीं का इम्तिहान मुस्लिम हाई स्कूल अंबाला से पास किया. उन्होंने बी.ए के लिए लाहौर गर्वनमेंट कॉलेज में दाख़िला लिया था, लेकिन विभाजन की वजह से उनको तालीम छोड़नी पड़ी. वह गरीबी में पाकिस्तान पहुंचे थे. नासिर ने कम उम्र ही में ही शायरी शुरू कर दी थी.

ओ मेरे मसरूफ़ ख़ुदा 
अपनी दुनिया देख ज़रा 

उस ने मंज़िल पे ला के छोड़ दिया 
उम्र भर जिस का रास्ता देखा 

मुझे ये डर है तिरी आरज़ू न मिट जाए 
बहुत दिनों से तबीअत मिरी उदास नहीं 

दिल धड़कने का सबब याद आया 
वो तिरी याद थी अब याद आया 

आज देखा है तुझ को देर के बअ'द 
आज का दिन गुज़र न जाए कहीं 

वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का 
जो पिछली रात से याद आ रहा है 

आरज़ू है कि तू यहाँ आए 
और फिर उम्र भर न जाए कहीं 

भरी दुनिया में जी नहीं लगता 
जाने किस चीज़ की कमी है अभी 

कौन अच्छा है इस ज़माने में 
क्यूँ किसी को बुरा कहे कोई 

बुलाऊँगा न मिलूँगा न ख़त लिखूँगा तुझे 
तिरी ख़ुशी के लिए ख़ुद को ये सज़ा दूँगा 

नए कपड़े बदल कर जाऊँ कहाँ और बाल बनाऊँ किस के लिए 
वो शख़्स तो शहर ही छोड़ गया मैं बाहर जाऊँ किस के लिए 

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