"उपराष्ट्रपति, राज्यपाल और कुलपति जैसे पद के लिए सहिष्णुता का मुखौटा पहनते हैं मुसलमान"
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"उपराष्ट्रपति, राज्यपाल और कुलपति जैसे पद के लिए सहिष्णुता का मुखौटा पहनते हैं मुसलमान"

Union minister S P Singh Baghel remrks against Muslims: केंद्रीय मंत्री एस पी सिंह बघेल ने संघ द्वारा आयोजित एक पत्रकार सम्मान समारोह में मुसलमानों पर निशाना साधते हुए कहा कि इस समाज में सहिष्णु लोगों की तादाद मुट्ठी भर है, और जों हैं वह भी सरकार में बड़े पद पाने के लिए सिर्फ सहिष्णुता का नाटक करते हैं.  

केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह बघेल

नई दिल्लीः केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह बघेल ने मुसलमानों को लेकर एक बेहद ही आपत्तिजनक बयान दिया है. बघेल ने कहा है कि देश में सहिष्णु मुसलमानों को उंगलियों पर गिना जा सकता है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वह मुट्ठी भर मुसलमान भी सहिष्णुता का मुखौटा पहनकर इसलिए रहते हैं ताकि उन्हें उपराष्ट्रपति, राज्यपाल या कुलपति जैसे बड़े पद पर बैठने का मौका मिल सके. उन्होंने कहा कि मुस्लिम समुदाय के ऐसे तथाकथित बुद्धिजीवियों का असली चेहरा उनका अपना कार्यकाल पूरा करने या सेवानिवृत्त होने के बाद सामने आ जाता है. 
केंद्रीय कानून और न्याय राज्य मंत्री ने सोमवार को देव ऋषि नारद पत्रकार सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए यह टिप्पणी की थी. वह पत्रकारों को पुरस्कार देने के लिए आरएसएस के मीडिया विंग इंद्रप्रस्थ विश्व संवाद केंद्र द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे. 

भारत को इस्लामी कट्टरवाद से लड़ना चाहिए
केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह बघेल ने कहा कि सहिष्णु मुसलमानों को उंगलियों पर गिना जा सकता है. मुझे लगता है कि उनकी संख्या हजारों में भी नहीं है और, वह भी सार्वजनिक जीवन में सहिष्णु का मुखौटा पहनकर जीने का नाटक करते हैं, क्योंकि उन्हें उपराष्ट्रपति, राज्यपाल या कुलपति बनना होता है. केंद्रीय मंत्री की यह टिप्पणी सूचना आयुक्त उदय माहुरकर द्वारा कार्यक्रम में दिए गए अपने भाषण के बाद आई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत को इस्लामी कट्टरवाद से लड़ना चाहिए, लेकिन इसके लिए सहिष्णु मुसलमानों को साथ लेना होगा. अपने शासन के दौरान मुगल सम्राट अकबर के हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने के प्रयासों का उल्लेख करते हुए, माहुरकर ने दावा किया कि अकबर ने हिंदू-मुस्लिम एकता हासिल करने की पूरी कोशिश की थी. 

भारत के बुरे दिन 1192 ईस्वी में शुरू हुए
वहीं, बघेल ने माहुरकर की टिप्पणी को खारिज करते हुए अकबर के प्रयासों को महज “रणनीति“ करार दिया और इल्जाम लगाया कि मुगल बादशाह की जोधाबाई से शादी उनकी “राजनीतिक रणनीति“ का हिस्सा थी. उन्होंने कहा, “यह उनके दिल से नहीं निकला था. अन्यथा, चित्तौड़गढ़ का नरसंहार नहीं होता.’’ उन्होंने कहा, “मुगल काल में औरंगजेब के कर्मों को देखें. कभी-कभी, मुझे आश्चर्य होता है कि हम कैसे जीवित रहे." बघेल ने कहा कि भारत के बुरे दिन 1192 ईस्वी में शुरू हुए जब मुहम्मद गौरी ने राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया था. 

तलवार से ज्यादा “गंडे-ताबीज“ से हुआ है धर्मांतरण 
बघेल ने इस दौरान धर्मांतरण का भी मुद्दा उठाया और आरोप लगाया कि जिन लोगों को “गंडे-ताबीज“ (ताबीज) के माध्यम से दूसरे धर्म में परिवर्तित किया गया है, उनकी संख्या तलवार के नीचे वालों की तुलना में कहीं और ज्यादा है. चाहे वह ख्वाजा ग़रीब नवाज़ साहब हों, हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया, या सलीम चिश्ती ... आज भी, हमारे समुदाय के लोग बड़ी संख्या में वहां बच्चे, नौकरी, टिकट (चुनाव लड़ने के लिए), मंत्री पद, राज्य मंत्री से पदोन्नति के लिए जाते हैं. मंत्री ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों को लगता है कि चूंकि वे इतने लंबे समय तक 'शासक’ रहे, तो वे ’प्रजा’ कैसे बन सकते हैं? बघेल ने कहा, “अगर वे मदरसे में पढ़ेंगे तो उर्दू, अरबी और फारसी सीखेंगे. सारा साहित्य अच्छा है, लेकिन इस तरह के अध्ययन से वे पेश-इमाम बन जाएंगे, और अगर वे भौतिकी और रसायन विज्ञान पढ़ते हैं, तो वे अब्दुल कलाम बनेंगे." 

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