तूफान में उड़ा शख्स 23 साल बाद जिंदा वापस लौटा घर; देखकर रोने लगे परिवार के लोग!
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तूफान में उड़ा शख्स 23 साल बाद जिंदा वापस लौटा घर; देखकर रोने लगे परिवार के लोग!

ओडिशा में साल 1999 में चक्रवाती तूफान में लगभग 10 हजार लोगों की मौत हो गई थी. इस सुपर साइक्लोन के बाद लापता एक शख्स को परिवार के लोगों ने मृत मान लिया था, लेकिन 23 साल वह शख्स जिंदा वापस घर लौट आया.

 

अलामती तस्वीर

कोलकाताः फिल्मों में ऐसी कहानियां आपने खूब देखी होंगी जब फिल्म का नायक या कोई पात्र मरने के 20 साल बाद जिंदा वापस घर लौट आता है या सालों से गायब उसकी याददाश्त अचानक वापस आ आती है. फिल्मों की काल्पनिक कहानियां कई बार इंसानों के वास्तविक जिंदगी में भी घट जाती है, जैसा के ओडिशा के एक शख्स के साथ हुआ.  
 23 साल पहले ओडिशा में आए एक चक्रवाती तूफान के बाद लापता हुआ एक 80 साल का बुजुर्ग आदमी आखिरकार अपने परिवार के पास वापस लौट आया है. 
दरअसल, 1999 में ओडिशा में आए इस चक्रवातह तूफान में 10,000 से ज्यादा लोगों की जानें चली गई थी. इस चक्रवात के असर से कृतिचंद्र बराल नामक एक शख्स की याददाश्त चली गई और वह आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम के बंदरगाह शहर में फुटपाथ पर रहने लगा. 

एक जनप्रतिनिधि रोज देने लगा उन्हें खाना 
ए.जे. स्टालिन, उस वक्त ग्रेटर विशाखापत्तनम के नगरसेवक थे. उन्होंने जब उस शख्स को फुटपाथ पर देखा तो उन्हें तरस आ गया और वह उसे हर दिन खाना देने के लिए आने लगे. स्टालिन की कार रुकने की आवाज सुनकर कृतिचंद्र बराल फुटपाथ के एक कोने से दौड़कर आते और खाने का पैकेट लेकर चले जाते. यह सिलसिला कई सालों तक चलता रहा. 
एक दिन नगरसेवक ने वहां पहुंचकर हमेशा की तरह अपनी कार रोकी और हॉर्न बजाया, लेकिन कृतिचंद्र बराल नहीं आए. स्टालिन के काफी खोजबीन के बाद वह काफी बीमार हालत में मिले. इसके बाद, स्टालिन ने मिशनरीज ऑफ चौरिटी से संपर्क कृतिचंद्र की देखभाल करने का जिम्मा उसे दे दिया. रफ्ता-रफ्ता उसकी सेहत  में सुधार होने लगा, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद उसकी याददाश्त वापस नहीं लाई जा सकी.

एक शहर का नाम बार-बार लेते थे कृतिचंद्र 
कृतिचंद्र कभी-कभी आंध्र प्रदेश के एक शहर श्रीकाकुलम का नाम बार-बार लेते रहते थे. यह देखते हुए मिशनरीज ऑफ चौरिटी ने उन्हें अपने यहां से ट्रांसफर कर श्रीकाकुलम के पास एक सेंटर में शिफ्ट करा दिया. जब वे मिशनरियों के साथ गांवों में जाते तो वह उसको भी साथ ले जाते रहे. एमओसी को उम्मीद थी कि कभी न कभी उस इलाके में कोई उन्हें पहचान लेगा, लेकिन सालों तक ऐसा नहीं हो सका. 

बंगाल रेडियो क्लब से हुई गुमनाम शख्स की पहचान 
पश्चिम बंगाल रेडियो क्लब (डब्ल्यूूबीआरसी) के सचिव अंबरीश नाग बिस्वास ने कहा, ’’कुछ दिनों पहले, मुझे एमओसी से एक कॉल आया था. हमने पहले भी उनके कुछ लोगों के परिवारों का पता लगाने में संगठन की मदद की थी, जिनकी वे देखभाल कर रहे थे. वे अब चाहते थे कि हम इस शख्स के परिवार का पता लगाने में उनकी मदद करें. हमें तब उसका नाम भी नहीं जानते थे. हमारी टीम ने नेटवर्क में टैप कर एक व्यापक खोज-बीच अभियान चलाने  के बाद, आखिरकार पाटीग्राम, बामनाला, पुरी में कृतिचंद्र बराल के परिवार का पता लगा लिया.’’ 

पिता के जिंदा होने की खबर सुनकर रोने लगे बेटे 
गौरतलब है कि बराल के तीन बेटे हैं. उनमें से एक की आंखों की रौशनी चली गई है. बराल के दो अन्य लड़के अपने पिता की तस्वीर देखकर हैरान रह गए और फिर दहाड़ें मारकर रोने लगे. वे एक संपन्न परिवार से ताल्लुक रखतें हैं, और उन्होंने बताया कि कैसे उनके पिता चक्रवात के बाद लापता हो गए थे. काफी तलाश करने के बाद जब वह नहीं मिले, तो उन्होंने उन्हें मृत मान लिया था. नाग बिस्वास के मुताबिक, पिता के जिंदा होने की जानकारी मिलने के बाद बराल के बेटे ओडिशा के ब्रह्मपुर स्थित एमओसी सेंटर पहुंच गए, जहां जरूरी औपचारिकताओं के बाद उनके पिता को घर वापस ले जाने की इजाजत दे दी गई. डॉक्टरों के मुताबिक, कृतिचंद्र बराल को चक्रवात के दौरान कोई गहरी चोट लगी होगी, जिसका असर उनके दिमाग पर पड़ा और उनकी याददाश्त चली गई.
 

Zee Salaam

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