इस गांव में नहीं है एक भी मुस्लिम परिवार, फिर भी वर्षों से मुहर्रम मनाते आ रहे हैं गांव के हिन्दू
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इस गांव में नहीं है एक भी मुस्लिम परिवार, फिर भी वर्षों से मुहर्रम मनाते आ रहे हैं गांव के हिन्दू

Hindu celebrating Muharram: कर्नाटक के बेलगावी जिले में ऐसे कई गांव हैं, जहां मुसलमानों की आबादी न होते हुए भी गांव के लोग मुहर्रम मनाने के इस परंपरा का निर्वाह करते आ रहे हैं. 

प्रतीकात्मक तस्वीर

बेलगावीः भारत में कहा जाता है कि न ईद मुसलमानों की है और न होली और दीवाली हिंदुओं का त्यौहार है, बल्कि ईद, होली और दीवाली सभी भारतीयों का त्यौहार है. यही हमारी साझी संस्कृति और समृद्ध विरासत का हिस्सा है. इसी पर हम गर्व करते हैं. यकीन न हो तो कनार्टक की ये खबर पढ़ लीजिए.  
कर्नाटक में बेलगावी जिले के एक गांव में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं रहता है, लेकिन इसके बावजूद इस गांव के हिन्दू मुहर्रम मनाते हैं. इस साल भी मंगलवार को रस्मी तौर पर इस गांव में मोहर्रम मनाया गया. गांव के स्थानीय हिंदुओं ने इसका नेतृत्व किया. गांव में यह परंपरा सालों से चलती आ रही है. उत्तरी कर्नाटक के कई गांवों में रस्मी तौर पर मोहर्रम मनाया जाता है. इसे धार्मिक सद्भावना और भाइचारे के तौर पर देखा जाता है.

दरगाह पर प्रार्थना करते हैं हिन्दू परिवार 
स्थानीय निवासियों के मुताबिक, बेलगावी जिले के सौनदत्ती तालुक के हिरेबिदानपुर गांव जैसे इस जिले में कई दूसरे गांव हैं, जहां कोई मुस्लिम परिवार नहीं होने के बावजूद कई सालों से इस परंपरा को कायम रखा गया है. यहां से करीब 50 किलोमीटर दूर करीब तीन हजार की आबादी वाले हिरेबिदानपुर गांव में ‘फकीरेश्वर स्वामी’ की एक दरगाह है जिसे गांव के हिन्दू भी पवित्र मानते हैं. एक हिंदू शख्स अपनी धार्मिक परंपराओं के मुताबिक, हर दिन दरगाह पर प्रार्थना करता है.

मौलवी के पछे रस्म अदायगी करते हैं गांव के हिन्दू 
दरगाह पर हर दिन प्रार्थना करने वाले एक हिन्दू यल्लाप्पा नाइकर के परिवार के एक शख्स ने बताया, “अन्य दिनों में हम (उपासना) करते हैं, जबकि मोहर्रम पर नज़दीकी बेविनकत्ती गांव के एक मौलवी इस्लामी रिवायतों के मुताबिक, यहां सामूहिक तौर पर दुआ करते हैं. हम सभी उनके साथ मिलकर मज़हबी रस्में अदा करते हैं.” गांव के निवासी उमेश्वर मरगल ने कहा कि फकीरेश्वर दरगाह में धार्मिक चिन्ह ‘पंजा’ स्थापित करना और पांच दिनों तक मोहर्रम मनाना यहां वर्षों से चली आ रही परंपरा है.  
 

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