Josh Malihabadi Hindi Shayari: जोश मलिहाबादी (Josh Malihabadi) ने ऑल इंडिया रेडियो (All India Radio) में काम किया. सरकारी पत्रिका 'आजकल' में बतौर इडिटर रहे. उनकी बेहतरीन नज्मों में 'मेहतरानी', 'मालिन' और 'जामुन वालियां' शामिल हैं.
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Josh Malihabadi Hindi Shayari: जोश मलिहाबादी (Josh Malihabadi) उर्दू के मशहूर शायरों में से एक हैं. उनकी पैदाइश 5 दिसंबर 1898 को उत्तर प्रदेश के मलिहाबाद में हुई. जोश लखनऊ 20वीं सदी के सबसे बड़े शायरों में शुमार होते हैं. उनको साहित्य और तालीम के शोबे में साल 1954 में पद्म भूषण से नवाजा गया. बताते हैं कि जोश मलिहाबादी के यहां सारी ऐश व इशरत थी लेकिन उन्हें आला तालीम नहीं मिल सकी. उनकी तालीम मदरसे में हुई.
इस दिल में तिरे हुस्न की वो जल्वागरी है
जो देखे है कहता है कि शीशे में परी है
वो करें भी तो किन अल्फ़ाज़ में तेरा शिकवा
जिन को तेरी निगह-ए-लुत्फ़ ने बर्बाद किया
फ़ुग़ाँ कि मुझ ग़रीब को हयात का ये हुक्म है
समझ हर एक राज़ को मगर फ़रेब खाए जा
बिगाड़ कर बनाए जा उभार कर मिटाए जा
कि मैं तिरा चराग़ हूँ जलाए जा बुझाए जा
दुनिया ने फ़सानों को बख़्शी अफ़्सुर्दा हक़ाएक़ की तल्ख़ी
और हम ने हक़ाएक़ के नक़्शे में रंग भरा अफ़्सानों का
अब दिल का सफ़ीना क्या उभरे तूफ़ाँ की हवाएँ साकिन हैं
अब बहर से कश्ती क्या खेले मौजों में कोई गिर्दाब नहीं
पहचान गया सैलाब है उस के सीने में अरमानों का
देखा जो सफ़ीने को मेरे जी छूट गया तूफ़ानों का
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इधर तेरी मशिय्यत है उधर हिकमत रसूलों की
इलाही आदमी के बाब में क्या हुक्म होता है
बादबाँ नाज़ से लहरा के चली बाद-ए-मुराद
कारवाँ ईद मना क़ाफ़िला-सालार आया
जितने गदा-नवाज़ थे कब के गुज़र चुके
अब क्यूँ बिछाए बैठे हैं हम बोरिया न पूछ
हर एक काँटे पे सुर्ख़ किरनें हर इक कली में चराग़ रौशन
ख़याल में मुस्कुराने वाले तिरा तबस्सुम कहाँ नहीं है
सिर्फ़ इतने के लिए आँखें हमें बख़्शी गईं
देखिए दुनिया के मंज़र और ब-इबरत देखिए
इतना मानूस हूँ फ़ितरत से कली जब चटकी
झुक के मैं ने ये कहा मुझ से कुछ इरशाद किया?
हाँ आसमान अपनी बुलंदी से होशियार
अब सर उठा रहे हैं किसी आस्ताँ से हम
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