International Day of the Girl Child: औरतों की शिक्षा पर क्या कहता है इस्लाम? जान लेंगे तो शर्म के मारे मर जाएंगे कठमुल्ले और तालिबानी
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International Day of the Girl Child: औरतों की शिक्षा पर क्या कहता है इस्लाम? जान लेंगे तो शर्म के मारे मर जाएंगे कठमुल्ले और तालिबानी

International Day of the Girl Child: इस्लाम में औरतों की तालीम पर जोर दिया गया है. इसके बारे में हदीस और कुरान में जिक्र है. जो शख्स अपनी बेटी को पढ़ाएगा वह जहन्नम में नहीं जाएगा.

International Day of the Girl Child: औरतों की शिक्षा पर क्या कहता है इस्लाम? जान लेंगे तो शर्म के मारे मर जाएंगे कठमुल्ले और तालिबानी

International Day of the Girl Child: तालीम से इंसान में सोचने समझने की काबिलियत आती है. तालीम इंसान को बुराई से रोकती है. तालीम याफ्ता और गैर तालीम याफ्ता शख्स में इतना फर्क है जैसे एक आंख वाला शख्स और एक बिना आंख वाला शख्स. बिना आंख वाला शख्स दुनिया को नहीं देख सकता जबकि आंख वाला शख्स दुनिया को देख सकता है. अरब देशों में इस्लाम आने से पहले कई बुराईयां थीं. वहां शराबनोशी, जुल्म व ज्यादती और कत्ल आम था. इस्लाम ने इस दौर को जमाना जाहिल कहा है. कह सकते हैं कि तमाम बुराइयों की जड़ जाहिलियत है और जाहिलियत सिर्फ तालीम से दूर हो सकती है. इसलिए इस्लाम ने तालीम को सबसे बुनियादी चीज करार दिया है. 

इंसान और जनवर में फर्क
तालीम और सलीका ही वह चीज है जो इंसान और जानवर में फर्क करती है. तालीम के जरिए ही इंसान इंसानियत सीखता है. तालीम के जरिए ही इंसान ऊंचे ओहदों पर पहुंचता है और उसकी समाज में इज्जत होती है.

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नदान पढ़ेगा
इस्लाम ने औरतों को पढ़ाने लिखाने के बारे में बताया है. इस्लाम कहता है कि अगर औरत पढ़ी लिखी होगी तो आपकी नस्लों को पढ़ा लिखा कर देगी. बच्चों की परवरिश में औरत का बड़ा हाथ होता है. वह बच्चों को पढ़ाएंगी तो समाज सुधर जाएगा. इस्लाम में मां की गोद को पहला स्कूल कहा गया है. यह देखा गया है कि जहां पर औरतें पढ़ी लिखी होती हैं, उनके बच्चे पढ़े लिखे होते हैं. जिन लोगों की माएं पढ़ी लिखी नहीं हैं, उन बच्चों को पढ़ने लिखने के लिए बहुत जद्दो-जहद करनी पड़ती है.

मर्दो की होगी मदद
अगर औरत पढ़ी लिखी होगी तो वह अपने शौहर, भाई और बाप की हर तरह से मदद कर सकेगी. उनके अच्छे कामों में अच्छे मशवरे दे सकेगी. आज के दौर में भारत में हर क्षेत्र में औरतें आगे बढ़ रही हैं. इसकी वजह सिर्फ तालीम ही है.

इस्लाम में औरतों की तालीम
इस्लाम ने मर्द और औरतों में बिना फर्क किए हुए तालीम हासिल करने के बारे में बताया है. इस बारे में एक जगह इरशाद है कि "हसूल इल्म तमाम मुसलमानों पर (बिला तफरीक मर्द व जन) फर्ज है." (हदीस: इब्ने माजा). कुरान में एक जगह पर जिक्र है कि "इल्म हासिल करना हर मुसलमान पर फर्ज है." एक दूसरी जगह कुरान में अल्लाह ने कहा कि "उन से पूछो क्या जानने वाले और न जानने वाले दोनों बराबर हो सकते हैं?" इस्लाम में जहां भी तालीम हासिल करने पर जोर दिया गया है वहां मुसलमानों का जिक्र किया गया है. इसका मतलब यह है कि जितना मर्दों के लिए तालीम हासिल करना जरूरी है, उतना ही औरतों पर भी जरूरी है.

औरतों की तालीम पर हदीस
इस हदीस से साफ जाहिर है कि इस्लाम लड़कियों की तालीम पर जोर देता है. हजरत अब्दुल्लाह बिन मसऊद से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल स0. ने फरमाया कि "जिस शख्स के यहां लड़की पैदा हो और वह खुदा की दी हुई नेमतों की इस पर बारिश करे, तालीम व तरबियत और हुस्ने अदब से बहरावर करे, तो मैं खुद ऐसे सख्स के लिए जहन्नम की आड़ बन जाऊंगा (हदीस: बुखारी मुस्लिम)"

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