'ज़िन्दगी और ज़माने की कशमकश पहले भी थी', पढ़े हरिवंश राय बच्चन की चुनिंदा कविताएं
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'ज़िन्दगी और ज़माने की कशमकश पहले भी थी', पढ़े हरिवंश राय बच्चन की चुनिंदा कविताएं

Harivansh Rai Bachchan: हरिवंश राय बच्चन के पूर्वज अमोढ़ा उत्तर प्रदेश के थे. बाद में वे इलाहाबाद में जा बसे. उन्हें बचपन में प्यार से 'बच्चन' कहा जाता था. जिसका मतलब होता है छोटा बच्चा. इसी से उनका नाम बच्चन पड़ गया.

'ज़िन्दगी और ज़माने की कशमकश पहले भी थी', पढ़े हरिवंश राय बच्चन की चुनिंदा कविताएं

Harivansh Rai Bachchan: हिंदी के महान कवि हिरवंश राय बच्चन की आज पुण्यतिथि है. उनका जन्म 27 नवंबर 1907 को हुथा था जबकि उनका निधन 18 जनवरी 2003 में हुआ था. बॉलीवुड के दिग्गज कलाकार अमिताभ बच्चन उनके बेटे हैं. हिरवंश राय बच्चन ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी पढ़ाई. वह भारत के विदेश मंत्रालय में हिंदी के जानकार रहे. वह राज्यसभा में सदस्य के बतौर चुने गए. उनकी सबसे मशहूर किताब मधुशाला है. आज उनकी पुण्यतिथि पर पेश कर रहे हैं उनकी लिखी हुई कुछ बेहतरीन कविताएं. पढ़ें.

नीड़ का निर्माण फिर-फिर,

नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!

वह उठी आँधी कि नभ में
छा गया सहसा अँधेरा,
धूलि धूसर बादलों ने
भूमि को इस भाँति घेरा,

रात-सा दिन हो गया, फिर
रात आ‌ई और काली,
लग रहा था अब न होगा
इस निशा का फिर सवेरा,

रात के उत्पात-भय से
भीत जन-जन, भीत कण-कण
किंतु प्राची से उषा की
मोहिनी मुस्कान फिर-फिर!

नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!

वह चले झोंके कि काँपे
भीम कायावान भूधर,
जड़ समेत उखड़-पुखड़कर
गिर पड़े, टूटे विटप वर,

हाय, तिनकों से विनिर्मित
घोंसलो पर क्या न बीती,
डगमगा‌ए जबकि कंकड़,
ईंट, पत्थर के महल-घर;

बोल आशा के विहंगम,
किस जगह पर तू छिपा था,
जो गगन पर चढ़ उठाता
गर्व से निज तान फिर-फिर!

नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!

क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों
में उषा है मुसकराती,
घोर गर्जनमय गगन के
कंठ में खग पंक्ति गाती;

एक चिड़िया चोंच में तिनका
लि‌ए जो जा रही है,
वह सहज में ही पवन
उंचास को नीचा दिखाती!

नाश के दुख से कभी
दबता नहीं निर्माण का सुख
प्रलय की निस्तब्धता से
सृष्टि का नव गान फिर-फिर!

नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!

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आजादी का गीत

हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल

चांदी, सोने, हीरे मोती से सजती गुड़िया
इनसे आतंकित करने की घडियां बीत गई
इनसे सज धज कर बैठा करते हैं जो कठपुतले
हमने तोड़ अभी फेंकी हैं हथकडियां

परम्परागत पुरखो की जागृति की फिर से
उठा शीश पर रक्खा हमने हिम-किरीट उजव्व्ल
हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल

चांदी, सोने, हीरे, मोती से सजवा छाते
जो अपने सिर धरवाते थे अब शरमाते
फूल कली बरसाने वाली टूट गई दुनिया
वज्रों के वाहन अम्बर में निर्भय गहराते

इन्द्रायुध भी एक बार जो हिम्मत से ओटे
छत्र हमारा निर्मित करते साठ-कोटी करतल
हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल

क्यों पैदा किया था? 

ज़िन्दगी और ज़माने की
कशमकश से घबराकर
मेरे बेटे मुझसे पूछते हैं कि
हमें पैदा क्यों किया था?
और मेरे पास इसके सिवाय
कोई जवाब नहीं है कि
मेरे बाप ने मुझसे बिना पूछे
मुझे क्यों पैदा किया था?

और मेरे बाप को उनके
बाप ने बिना पूछे उन्हें और
उनके बाबा को बिना पूछे उनके
बाप ने उन्हें क्यों पैदा किया था?

ज़िन्दगी और ज़माने की
कशमकश पहले भी थी,
आज भी है शायद ज्यादा…
कल भी होगी, शायद और ज्यादा…

तुम ही नई लीक रखना,
अपने बेटों से पूछकर
उन्हें पैदा करना।

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