Allama Iqbal on Ram: राम मंदिर के उद्घाटन समारोह की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. भगवान राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा में अब चंद घड़ियां ही बची हैं. इस वक्त चारों तरफ राममय जैसा माहौल हो गया है.
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Allama Iqbal on Ram: अयोध्या में मौजूद राम मंदिर के उद्घाटन समारोह की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. भगवान राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा में अब चंद घड़ियां ही बची हैं. इस वक्त चारों तरफ राममय जैसा माहौल हो गया है. हर कोई राम की भक्ति में लीन है, ऐसे वक्त में मशहूर उर्दू शायर अल्लामा इकबाल की एक नज्म को याद किया जाना बेहद जरूरी है.
जानकारी के मुताबिक, अल्लामा इकबाल को उर्दू शायरी में मिर्जा गालिब और मीर तकी मीर जैसा शायर माना जाता है. वहीं, इकबाल के पूर्वज कश्मीरी ब्राह्मण थे, जो इस्लाम धर्म कबूल कर स्यालकोट में जा बसे, लेकिन गंगा-जमुनी तहजीब इनकी नज्मों और शेरों में खूब झलकती है. वहीं, उनकी एक नज्म लोगों को रामलला के महत्व को समझने की चिंतन पैदा करती है. इकबाल ने अपनी नज्म में राम के व्यक्तिव को बताने के लिए अहले नजर और इमाम जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है.
लबरेज़ है शराब-ए-हक़ीक़त से जाम-ए-हिंद
सब फ़लसफ़ी हैं ख़ित्ता-ए-मग़रिब के राम-ए-हिंदये हिन्दियों की फ़िक्र-ए-फ़लक-रस का है असर
रिफ़अत में आसमाँ से भी ऊँचा है बाम-ए-हिंदइस देस में हुए हैं हज़ारों मलक-सरिश्त
मशहूर जिन के दम से है दुनिया में नाम-ए-हिंदहै राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़
अहल-ए-नज़र समझते हैं इस को इमाम-ए-हिंदएजाज़ इस चराग़-ए-हिदायत का है यही
रौशन-तर-अज़-सहर है ज़माने में शाम-ए-हिंदतलवार का धनी था शुजाअ'त में फ़र्द था
पाकीज़गी में जोश-ए-मोहब्बत में फ़र्द था
वहीं अल्लामा इकबाल की शायरी में गंगा-जमुनी तहजीब की खूब झलक मिलती है. तभी तो उन्होंने लिखा, सारे जहां से अच्छा, हिन्दोंसां हमारा, हम बुलबुले हैं इसकी, यह गुलिस्तां हमारा.