असम के मोकीबुल हुसैन प्रारंभिक शिक्षा एक मदरसे से लेने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर साइंस में बीटेक हैं. वह संघ का ड्रेस पहनते हैं, नियमित तौर पर शाखा में जाते हैं. हाल में उनकी हत्या की सुपारी देने का एक वीडियो वायरल होने के बाद वह सुर्खियों में आ गए हैं.
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गुवाहाटी / शरीफ उद्दीन अहमद: आम तौर पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानी आरएसएस की छवि एक मुस्लिम विरोधी संगठन के तौर पर बनी हुई है, और मुसलमान इस संगठन से सीधे तौर पर जुड़ने से परहेज करता है. लेकिन असम के ग्वालपाड़ा जिले के जलेश्वर में रहने वाले एक मुसलमान मोकीबुल हुसैन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के समर्पित कार्यकर्ता हैं. इसमें खास बात यह है कि मोकीबुल हुसैन बचपन में मदरसा के छात्र रहे हैं. यानी वह संघ के कार्यकर्ता होने के साथ ही एक पक्के मुसलमान भी हैं. वह कहते हैं संघ की बहुत-सी बातें हमें इस्लाम के आखिरी नबी मुहम्मद साहब की सुन्नतों की तरह लगती है, इसलिए मैं संघ को पंसद करता हूं.
हालांकि, मोकीबुल के लिए संघ का स्वयं सेवक होना इतना आसान भी नहीं है, पिछले कुछ सालों में उनपर छह बार जानलेवा हमले हो चुके हैं और हर बार वह बच गए हैं. अभी हाल में वह एक बार फिर चर्चा में इसलिए आ गए हैं कि उनको मारने की कुछ लोग साजिश रच रहे थे. यहां तक कि एक सुपारी किलर से पांच लाख रुपये में सौदा भी तय हो गया था, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.
जान मारने की सुपारी देने का वीडियो वायरल
वायरल वीडियो में एक मदरसा का मौलाना, कांग्रेस का एक स्थानीय नेता, भाजपा का एक पूर्व नेता और एक सुपारी किलर को आपस में बात करते सुना जा सकता है. इसमें साफ कहा गया है कि मारने के बाद किलर को पुलिस से स्पोर्ट दिलाया जाएगा. वीडियो वायरल होने के बाद मोकीबुल हुसैन ने स्थानीय पुलिस थाने में अपनी जान को खतरा बताते हुए सातवीं बार केस दर्ज कराया है, जिसके बाद पुलिस ने मौलाना मुनीर उद्दीन को गिरफ्तार कर लिया है, और बाकी आरोपियों की तलाश कर रही है.
17 सालों से संघ से जुड़े हैं मोकीबुल
मोकीबुल के संघ का स्वयं सेवक बनने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है. वह संघ से पिछले 17 सालों से जुड़े हुए हैं. सुबह में वह नियमित तौर पर शाखा भी जाते हैं और पूरे एक घंटे का वहां अभ्यास भी करते हैं. मोकीबुल बताते हैं कि असम के वह अकेले मुसलमान हैं, जो सीधे तौर पर संघ से जुड़े हैं, जबकि देशभर में उनके तरह दो मुसलमाने और हैं, जो संघ के कार्यकर्ता है. उनमें से एक हरियाणा में हैं और दूसरे कश्मीर में हैं. यह वह मुसलमान हैं, जो संघ के राष्ट्रीय मुस्लिम मंच जैसे सहायक संगठनों के बजाए सीधे संघ से जुड़े हैं.
दिल्ली यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर साइंस में बीटेक हैं मोकीबुल
मोकीबुल हुसैन दिल्ली यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर साइंस में बीटेक हैं. वर्ष 2007 में पढ़ाई पूरी करने के बाद वह वापस असम चले गए थे और वहां कॉन्ट्रेक्टर का काम करने लगे. वह सरकारी निर्माण कार्य का ठेका लेते हैं. खास बात यह है कि मोकीबुल की प्रारंभिक शिक्षा एक मदरसे में हुई है. कक्षा 9 तक उन्होंने मदरसे में ही शिक्षा हासिल की है. मोकीबुल के स्वयं सेवक बनने पर उसके परिवार में कोई विरोध नहीं है. उनकी बीवी एक ग्रजुएट हैं. मकीबुल के पांच अन्य भाईयों में कोई डॉक्टर, कोई इंजीनियर है तो कोई सरकारी नौकरी में है.
इलाके के लोग करते हैं समर्थन
मोकीबुल जिस इलाके में रहते हैं, वहां एक समाजिक संगठन भी चलाते हैं. उन्होंने कहा, "मेरे इलाके में घोर गरीबी और अशिक्षा है. हम लोगों के उत्थान की बात करते हैं. उन्हें शिक्षा और रोजगार से जोड़ते हैं. मेरे संगठन में 300 से अधिक मुस्लिम युवा जुड़ चुके हैं, जो भाजपा के अलावा कांग्रेस और एआईयूडीएफ से भी ताल्लुक रखते हैं, लेकिन देश और समाज के नाम पर वह एक साथ मिलकर काम करते हैं.’’ इलाके के लोग मोकीबुल के इस काम के लिए उनकी तारीफ करते हैं और उनका खुलकर समर्थन भी करते हैं.
शाखा में कभी नहीं सुनी मुस्लिम विरोधी बातें
क्या संघ की शाखा में मुस्लिम विरोधी बातें होती हैं, इस सवाल पर मोकीबुल कहते हैं, "ऐसा मैंने पिछले 17 सालों में एक बार भी नहीं देखा. वहां राष्ट्र, समाज और व्यक्तिव निर्माण पर जोर दिया जाता है. मैं मदरसे का छात्र रहा हूं, जहां मुझे हदीस में सिखाया गया था कि किसी अफवाह पर तबतक यकीन न करो जब तक उसकी तस्दीक खुद से न कर लो. शाखा में जाने के बाद मैंने संघ को लेकर उन प्रचलित धारणों को सही नहीं पाया जो उसके बारे में लोग बातें करते हैं या आरोप लगाते हैं.’’
संघ की शिक्षाएं मुझे नबी की सुन्न्त जैसी लगती है
मोकीबुल ने कहा, "संघ की शिक्षाएं मुझे नबी की सुन्न्त जैसी लगती है. संघ कहता है अपने राष्ट्र से प्रेम करों, कुरान भी कहता है जिस वतन में रहो उससे मोहब्बत करो. कुरान अपने अख्लाक सही करने की बात कहता है, संघ भी यही शिक्षा देता है. संघ और कुरान दोनों समाज की फिक्र करने की तरबीयत देता है. इस्लाम कहता है खाना जमीन पर बैठकर दस्तरखान लगाकर खाओ, पानी बैठकर पियो...संघ भी कहता है खाना जमीन पर बैठकर खाओ, दस्तरखान लगाकर खाओ और पानी हमेशा बैठकर पियो. इस्लाम गैर-बराबरी को खत्म करता है, संघ भी आज इसकी शिक्षा दे रहा है.’’
मदरसे बड़ा काम कर रहे हैं, लेकिन कुछ गलत राह पर भी हैं
क्या असम के मदरसों में सही में आतंकवादी गतिविधियां होती है, इस सवाल पर मोकीबुल कहते हैं, "मैं मदरसा का छात्र रहा हूं. मदरसे गरीब घरों के बच्चों में शिक्षा का अलख जगाने का बड़ा काम कर रहे हैं, लेकिन इस तथ्य से आप इंकार नहीं कर सकते हैं कि कुछ मदरसे गैर-कानूनी गतिविधियों में लिप्त हैं. वहां के लोग बिल्कुल अलग तरीके से बात करते हैं. उनके इरादे नेक नहीं होते हैं. उन्हें समझना होगा कि हम सबस पहले हिन्दुस्तानी हैं फिर असमी हैं. उन्हें गलत लोगों और संगठनों के झांसे में आने से बचना होगा. असम का मुस्लिम समाज घोर गरीबी और अशिक्षा के दलदल में फंसा हैं. हम सबको मिलकर पहले उसपर काम करना होगा.’’
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