Chattisgarh News: छत्तीसगढ़ के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ईडी को खास सलाह दी है. इसके साथ ही कोर्ट ने होम मिनिस्ट्री के जरिए संसद में दी गई जानकारी का भी जिक्र किया है. ईडी ने पिछले 10 सालों में 5 हजार कस दर्ज किए गए हैं. पढ़ें पूरी खबर
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Chattisgarh News: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को ईडी से अपने अभियोजन और सबूतों की क्वालिटी पर ध्यान फोकस करने के लिए कहा है .न्यायमूर्ति सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और उज्ज्वल भुइयां की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने ईडी से कहा "आपको अभियोजन और सबूत की क्वीलिटी पर ध्यान देने की जरूरत है. उन सभी मामलों में जहां आपक संतुष्ट है कि प्रथम दृष्टया केस बनता है. आपको उन केस पर ध्यान देने की जरूत है.
ईडी मामलों के आंकड़ों पर केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा संसद में दिए गए एक बयान का हवाला देते हुए बेंच ने कहा कि 10 सालों में दर्ज किए गए 5,000 मामलों में से 40 में दोषसिद्धि हुई है. अब कल्पना कीजिए." सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी छत्तीसगढ़ के एक बिजनेसमैन सुनील कुमार अग्रवाल के जरिए दायर जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए आई, जिन्हें कोयला परिवहन पर अवैध लेवी से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया गया था.
पीठ ने ईडी की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू से कहा, "इस मामले में, आप कुछ गवाहों और हलफनामों के जरिए दिए गए बयानों पर जोर दे रहे हैं. इस तरह के मौखिक सबूत... कल, भगवान जाने कि वह व्यक्ति इसके साथ खड़ा होगा या नहीं. आपको कुछ वैज्ञानिक जांच करनी चाहिए. "
मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी की जांच आयकर विभाग की एक शिकायत से उपजी है जो जून 2022 में विभाग के जरिए की गई छापेमारी के बाद दर्ज की गई थी. यह मामला एक कथित घोटाले से संबंधित है जिसमें सीनियर नौकरशाहों, व्यापारियों, राजनेताओं और बिचौलियों से जुड़े एक कार्टेल के जरिए छत्तीसगढ़ में परिवहन किए गए प्रत्येक टन कोयले के लिए ₹25 का अवैध लेवी वसूला जा रहा था.
जांच एजेंसी ने अपने दूसरे पूरक आरोपपत्र में आरोप लगाया कि आईएएस अधिकारी रानू साहू, जो घोटाले के दौरान कोरबा जिले की कलेक्टर थीं, उन्होंने सूर्यकांत तिवारी और उनके सहयोगियों के जरिए कोयला ट्रांसपोर्टरों और जिला खनिज निधि (डीएमएफ) अनुबंधों से अवैध लेवी राशि इकट्ठा करने में मदद की और उनसे भारी रिश्वत ली. छत्तीसगढ़ के व्यवसायी अग्रवाल को पिछले साल इस मामले में गिरफ्तार किया गया था.
8 अप्रैल को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने उनकी अंतरिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद उन्होंने न्यायालय के आदेश को चुनौती देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया था. 19 मई को शीर्ष अदालत ने अग्रवाल को अंतरिम जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया, बशर्ते कि वह जमानत बांड भरें. बुधवार को शीर्ष अदालत ने व्यवसायी को अंतरिम जमानत देते हुए अपने पहले के आदेश को निरपेक्ष बना दिया.