मुग़ल-ए-आज़म के निर्देशक के आसिफ को ज़िन्दगी ने बहुत कम मोहलत दी थी, लेकिन इसके बावजूद उनकी सिर्फ एक फिल्म ने उन्हें हमेशा के लिए अमर बना दिया. दर्शक के आसिफ का नाम भी उतनी ही इज्ज़त और प्यार के साथ लेते हैं, जितना प्यार उनकी फिल्म मुग़ल-ए-आज़म को मिला है.
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भारतीय इतिहास की बेहद कामयाब फिल्मों में से एक मुग़ल-ए-आज़म और उसके चर्चित निर्देशक के .आसिफ के जिक्र के बिना भारतीय सिनेमा का स्वर्णिम इतिहास हमेशा अधूरा रहेगा. फिल्मकार के. आसिफ फिल्म मुग़ल-ए-आज़म के पर्याय बन गए. उनका नाम लेते जुबां पर स्वतः ही इस फिल्म का नाम आ जाता है. सिनेमा के संदर्भ में जब भी कला, कथा, शिल्प, संवाद,संगीत और भव्यता का जिक्र होगा, तो मुग़ल-ए-आज़म का नाम पहले पायदान पर होगा. उन्होंने दो मोहब्बत करने वालों की दास्तां को इतने करीने से पिरोया कि वह एक कालजयी कृति में तब्दील हो गई. इश्क में बगावत को इतने सलीके से रुपहले पर्दे पर शायद ही किसी ने उतारा हो. शायद यही वजह है कि दशकों बीत जाने पर भी मुग़ल-ए-आज़म का जादू अभी दर्शकों के दिलों-दिमाग पर सिर चढ़कर बोलता है.
जिंदगी ने दी कम मोहलत
14 जून 1922 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में जन्में के. आसिफ के पिता का नाम डॉ. फजल करीम और मां का नाम बीवी गुलाम फातिमा था. मशहूर कथक डांसर सितारा देवी ,अभिनेत्री निगार सुलताना और अभिनेता दिलीप कुमार की छोटी बहन अख्तर से उनके वैवाहिक रिश्ते रहे. हालांकि भारतीय फिल्म जगत का यह सितारा कम उम्र में ही 9 मार्च वर्ष 1971 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया.
फिल्मी सफर
के. आसिफ ने अपनी जिंदगी में सिर्फ दो फिल्मों का ही निर्देशन किया. वर्ष 1945 में ’फूल’ और 1960 में ’मुग़ल-ए-आज़म.’ फिल्म ’फूल’ से इन्होंने अपनी निर्देशकीय पारी की शुरुआत की थी. उनकी अंतिम फिल्म ’लव एंड गॉड’ थी, जिसे उनकी मृत्यु के पश्चात 1986 में रिलीज किया गया.
यह फिल्म अपने साथ अनगिनत किस्सों को समुगल-ए-आजम बनाने में आई थी डेढ़ कराड़ की लागत मेटे हुए है. के. आसिफ की यह जीवटता ही थी कि, उन्होंने बिना थके लगातार 14 वर्ष इस फिल्म के लिए खुद को समर्पित कर दिया. उस दरमियान बनी इस फिल्म की लागत तकरीबन डेढ़ करोड़ रुपये आई थी, जबकि उस वक्त फिल्में औसतन महज 5 से 10 लाख के बजट में बन जाया करती थी. 5 अगस्त 1960 को रिलीज हुई ’मुग़ल-ए-आज़म’ आज भी कला, निर्देशन और संगीत के लिहाज से बॉलीवुड की बेहतरीन फिल्मों में से एक है. अकबर,सलीम और अनारकली की भूमिका निभाने वाले क्रमशः पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार और मधुबाला ने अपने उत्कृष्ट अभिनय से इस फिल्म में जान डाल दी. के. आसिफ ने अपनी फिल्म में अकबर, सलीम और अनारकली जैसे पात्रों को इतने करीने से गढा़ कि, सारे किरदार अमर हो गए.
एक गाना शूट करने में आया था 10 लाख का खर्च
कई इतिहासकार अनारकली के किरदार को महज कोरी कल्पना बताते हैं. इस फिल्म के लिए पृथ्वीराज कपूर ने अपना मेहनताना महज एक रुपया लिया था, उनके द्वारा निभाया गया अकबर के किरदार को आज भी मिसाल के तौर पर याद किया जाता हैं. इस फिल्म की पटकथा और संवाद लिखने के लिए चार लोगों की टीम बनी थी- जिनमें अमनउल्लाह, वजाहत मिर्जा, कमाल अमरोही और एहसान रिजवी शामिल थे. मशहूर संगीतकार नौशाद के संगीत निर्देशन में शकील बदायूंनी का लिखा गाना ’प्यार किया तो डरना क्या’ आज भी ’मुग़ल-ए-आज़म’ का सिग्नेचर गीत हैं. लता द्वारा गाए इस गीत को फिल्माने में 10 लाख से ज्यादा रुपए खर्च किए गए थे. उन दिनों के लिए यह बहुत बड़ी रकम थी. उस समय लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी एक गाने के लिए के लिए अधिकतम 300 से 400 लेते थे, मगर बड़े गुलाम अली खां ने इस फिल्म में गाने के लिए के 25000 रुपए लिए थे. ’मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो’ गाना को नृत्य निर्देशक लच्छू महाराज के कुशल निर्देशन में फिल्माया गया था. इस फिल्म के फाइनेंसर शापूरजी पैलोनजी मिस्त्री थे.
दिलीप कुमार और मधुबाला की आपस में नहीं बनती थी
इस फिल्म के दौरान दिलीप कुमार और मधुबाला का आपसी विवाद चरम पर था. तमाम रूमानी दृश्यों में जान डाल देने वाले दोनों कलाकार इस फिल्म के निर्माण के दौरान एक दूसरे से बात तक नहीं करते थे. फिल्म मुग़ल-ए-आज़म को 1960 का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार सहित उस वर्ष का बेस्ट फिल्म फेयर अवार्ड भी दिया गया था.
2004 में ’मुग़ल-ए-आज़म’ का आया कलर प्रिंट
के. आसिफ के बेटे अकबर आसिफ के प्रयासों से फिल्म ’मुग़ल-ए-आज़म’ को ब्लैक एंड व्हाइट से कलर कर वर्ष 2004 में पुनः रिलीज किया गया, इस बार भी यह फिल्म दर्शकों द्वारा काफी पसंद की गई. भारतीय सिनेमा के 100 वर्ष पूरे होने पर ब्रिटिश एशियाई सप्ताहिक अखबार ईस्टर्न आई की जानिब से कराए गए एक सर्वेक्षण में लोगों ने ’मुग़ल-ए-आज़म’ को हिंदी की सर्वश्रेष्ठतम फिल्मों में से एक बताया था.
:- ए. निशांत
लेखक बिहार के स्वंत्र पत्रकार हैं.
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