असम में बाल विवाह के खिलाफ चलाई जा रही मुहिम में गिरफ्तारियों के डर से अबतक तीन लोगों ने आत्महत्या कर ली है जबकि महिलाएं इन गिरफ्तारियों के विरोध में अब सड़कों पर उतर रही है. वहीँ, विरोध के बावजूद सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि यह अभियान 2026 के विधानसभा चुनाव तक जारी रहेगा.
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नई दिल्ली / गुवाहाटी: असम में बाल विवाह के खिलाफ चलाई जा सरकारी रही मुहिम अब लोगों के लिए जी का जंजाल बन गई है. पुलिस सालों पहले संपन्न हुए विवाह का भी अब रिकॉर्ड खंगाल रही है और दो-तीन- पांच बच्चों के बाप को भी इस कानून में गिरफ्तार कर रही है. पुलिस ने अब तक जहां हजारों लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाल चुकी है, वहीं हजारों नौजवान और पुरुष गिरफ्तारी के डर से अपना घर-बार छोड़कर फरार हैं और उनके पत्नियां और बच्चें घर में उनकी राह देख रहे हैं. वहीं, पुलिस कार्रवाई के डर से लोग आत्महत्या तक करने को मजबूर हो रहे हैं. मंगलवार को धुबरी जिले में एक शख्स ने पुलिस के डर से अपना गला काटकर आत्महत्या कर ली. इससे पहले भी दो महिलांए पुलिस कार्रवाई के डर से आत्महत्या कर चुकी हैं.
गिरफ्तारी से डरकर दो बच्चों के पिता ने की आत्महत्या
पुलिस के मुताबिक, असम के धुबरी जिले के गौरीपुर थाना अंतर्गत बराईबारी गांव पंचायत के बाघमारा गांव के निवासी बाड़ू प्रमाणिक के बेटे कासिम अली प्रमाणिक ने बाल विवाह की थी. उसी के डर से उसने धारदार हथियार से अपने गले को खुद ही काट कर अपनी जान ले ली. कासिम अली के दो छोटे बच्चे भी हैं. घर के लोगों ने बताया कि पिछले कई दिनों से कासिम अली प्रमाणिक बाल विवाह और अपनी गिरफ्तारी को लेकर चिंतित था और आखिरकार उसने परेशान होकर आत्महत्या कर ली. बाल विवाह और पुलिस गिरफ्तारी से डरकर असम में आत्महत्या की यह तीसरी घटना है. लेकिन पिछले दो मामलों में आत्महत्या करने वाली महिलाएं थी. गोलागंक में एक 23 साल की महिला अपने पति और ससुर की गिरफ्तारी से आहत होकर आत्महत्या कर ली थी.
यह अभियान 2026 तक जारी रहेगा
गौरतलब है कि असम में शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व वाली असम सरकार ने राज्य में बाल विवाह के खिलाफ कार्रवाई करने का फैसला किया है. 14 साल से कम उम्र की लड़कियों से शादी करने वालों पर पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज किया जा रहा है, जबकि 14 से 18 साल की लड़कियों से शादी करने वालों पर बाल विवाह निषेध कानून, 2006 के तहत मुकदमा चलाया जा रहा है. सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि यह अभियान 2026 के विधानसभा चुनाव तक जारी रहेगा. हालांकि, इस कार्रवाई की विपक्ष ने आलोचना की है और राज्य भर में विभिन्न स्थानों पर प्रभावित परिवारों के तरफ से विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है.
जान देना किसी समस्या का समाधान नहीं हैः इलियास अहमद
उधर, खुदाई खिदमतगार नामक संगठन के असम प्रांत के सद्र एडवोकेट इलियास अहमद ने कासिम अली प्रमाणिक के आत्महत्या के घटना को लेकर तीव्र प्रतिक्रिया जाहिर की है. उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि अगर इस तरह से घटना अगर रोज सामने आएंगी तो हालात बद से बदतर हो जाएंगे. इस मामले में सरकार को जल्द से जल्द मुल्जिमों को जमानत देने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए. वहीं, इलियास अहमद ने लोगों से अपील की है कि वह गिरफ्तारियों से डरने और घबराने के बजाए अपने वकीलों से कानूनी सलाह लेकर इस समस्या का हल निकाले, जान देना किसी समस्या का समाधान नहीं है.
विरोध में सड़कों पर उतरी महिलाएं
वहीं, दूसरी तरफ अपने पतियों की गिरफ्तारी के विरोध में महिलाएं विरोध- प्रदर्शन पर उतर आई हैं. वह कोर्ट और पुलिस थानों में धरना दे रही हैं. महिलाएं अपने परिवार के कमाने वाले इकलौते सदस्यों की गिरफ्तारी का विरोध कर रही हैं. गौरतलब है कि असम में बाल विवाह में शामिल होने के इल्जाम में 3,000 से ज्यादा व्यक्तियों की गिरफ्तारी ने नागरिक समाज को दो धड़ों में बांट दिया है. एक वर्ग का कहना है कि महज कानून के दम पर इस समस्या को हल नहीं किया जा सकता है, जबकि एक वर्ग का तर्क है कि कम से कम अब कानून के डर से इस कुरीति पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी.
निजी जिंदगी में दखल देने का सरकार को कोई हक नहींः घोष
मानवाधिकार वकील देबस्मिता घोष ने कहा कि एक बार शादी हो जाने के बाद कानून इसे वैध मानता है और ऐसी शादी से हुए बच्चों को सभी कानूनी अधिकार मिलते हैं. कानून कहता है कि बाल विवाह तभी अमान्य है जब वह शख्स जिला अदालत में याचिका दायर करता है, जो शादी के वक्त नाबालिग था और अगर याचिकाकर्ता नाबालिग है तो याचिका उसके गार्जियन के जरिए दायर की जा सकती है.’’ घोष ने कहा कि अगर ऐसा शख्स याचिका दायर करता है जो शादी के वक्त नाबालिग था तो यह उस शख्स के बालिग होने के दो साल के अंदर याचिका दायर की जानी चाहिए. ताजा मामले में ज्यादातर गिरफ्तारियों में दंपति अब बालिग होंगे और अगर उन्होंने अपनी शादी रद्द करने क लिए कोई याचिका दायर नहीं की तो सरकार को उनकी निजी जिंदगी में दखल देने का कोई हक नहीं है.’’
बलपूवर्क कानून लागू कर नहीं मिटती कोई बुराई
इस मामले में मशहूर विद्वान मनोरमा शर्मा ने कहा कि बाल विवाह बंद होने चाहिए, लेकिन यह एक सामाजिक बुराई है, कानून एवं व्यवस्था की कोई समस्या नहीं है. सेवानिवृत्त प्रोफेसर शर्मा ने कहा, ‘‘महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं और रोजी-रोटी के साधनों पर ध्यान देकर इसे खत्म किया जा सकता है, न कि अतीत में हो चुकी किसी घटना में बलपूर्वक कानून लागू करके.’’ वहीं, बाल अधिकार कार्यकर्ता एम. दास क्वेह ने कहा, ‘‘राज्य सरकार निश्चित तौर पर एक मजबूत संदेश देना चाहती है कि बाल विवाह बंद होने चाहिए, लेकिन उसे ऐसी कार्रवाई के बाद होने वाले प्रदर्शनों पर भी ध्यान देना चाहिए.’’
गुवाहाटी से शरीफ उद्दीन अहमद की इनपुट के साथ
Zee Salaam