क्या अंतरधार्मिक विवाह कानूनों के बहाने मुसलमानों को किया जा रहा है परेशान; SC करेगी जांच
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क्या अंतरधार्मिक विवाह कानूनों के बहाने मुसलमानों को किया जा रहा है परेशान; SC करेगी जांच

Are Muslims being harassed on the pretext of inter religious marriage laws SC will investigate: धर्मांतरण संबंधी राज्यों के कानूनों के विरुद्ध याचिकाओं पर दो जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी. गैर सरकारी संगठनों ने भाजपा शासित राज्यों के ऐसे कानूनों को चुनौती दी है और इसमें इल्जाम लगाया गया है कि इसकी आड़ में सरकार मुसलमानों को निशाना बना रही है.   

 क्या अंतरधार्मिक विवाह कानूनों के बहाने मुसलमानों को किया जा रहा है परेशान; SC करेगी जांच

नई दिल्लीः देश में अंतरधार्मिक विवाह की वजह से होने वाले धर्मांतरण पर रोक लगाने के लिए भाजपा शासित राज्यों द्वारा बनाए जा रहे विवादास्पद कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट दो जनवरी को सुनवाई करेगा. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की बेंच अधिवक्ता विशाल ठाकरे और एनजीओ ‘सिटिजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस’ की जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करेगी. सुप्रीम कोर्ट जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर भी सुनवाई करेगा, जिसे उसने पिछले साल याचिकाओं में एक पार्टी बनने की इजाजत दी थी.

धर्मांतरण कानूनों को दी गई है चुनौती 
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दावा किया था कि मुल्कभर में इन कानूनों के तहत बड़ी तादाद में मुस्लिमों को परेशान किया जा रहा है. शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड रिपोर्ट के मुताबिक, अभी तक केंद्र या किसी राज्य ने कोई जवाब नहीं दिया है, जिन्हें वाद में एक पार्टी बनाया गया है. शीर्ष अदालत ने 17 फरवरी, 2021 को एनजीओ को इजाजत दी थी कि हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश को उसकी लंबित याचिका में पक्षकार बनाया जाए. इस याचिका के जरिए अंतरधार्मिक शादियों की वजह से धर्मांतरण पर नियंत्रण वाले राज्यों के विवादास्पद कानूनों को चुनौती दी गई है.

ये कानून अंतरधार्मिक विवाह और धर्म बदलने पर लगाते हैं रोक 
सुप्रीम कोर्ट ने छह जनवरी, 2021 को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के ऐसे कुछ नए कानूनों का परीक्षण करने पर रजामंदी जताई थी. हालांकि, उस वक्त कोर्ट ने कानूनों के विवादास्पद प्रावधानों पर रोक लगाने से मना कर दिया था, और याचिकाओं पर हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों को नोटिस जारी किए थे. एनजीओ ने पिछली सुनवाई में कहा था कि हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश दोनों को उसकी याचिका में पक्षकार बनाया जाए, क्योंकि उन्होंने भी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की तर्ज पर कानून बनाए हैं. उत्तर प्रदेश का विवादास्पद अध्यादेश न सिर्फ अंतरधार्मिक विवाहों से संबंधित है, बल्कि सभी धर्मांतरणों से भी जुड़ा है, और किसी दूसरे धर्म को अपनाना चाह रहे शख्स के लिए विस्तार से प्रक्रिया रेखांकित करता है.

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