असम में मुस्लिम मैरिज एक्ट खत्म होने से क्या अब इस्लामी तरीके से निकाह नहीं कर पाएंगे मुसलमान ?
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असम में मुस्लिम मैरिज एक्ट खत्म होने से क्या अब इस्लामी तरीके से निकाह नहीं कर पाएंगे मुसलमान ?

Muslim Marriage in Assam: असम में मुस्लिम मैरिज एंड डायवोर्स रजिस्ट्रेशन एक्ट 1935 के निरस्त होने के बाद मुसलमान इस कंफ्यूजन में हैं कि क्या अब मुसलमान इस्लामी तरीके से निकाह नहीं कर पाएंगे? इन तमाम सवालों पर हमारे संवाददाता शरीफुद्दीन अहमद ने असम हाईकोर्ट के सीनियर वकील इलियास अहमद से बातचीत कर  मुसलमानों के आशंकाओं को दूर करने की कोशिश की है. 

अलामती तस्वीर

गुवाहाटीः हाल ही में असम सरकार ने असम मुस्लिम मैरिज एंड डायवोर्स रजिस्ट्रेशन एक्ट 1935 को खत्म कर दिया है. असम सरकार के इस फैसले का वहां की विपक्षी पार्टियां सहित देशभर के मुस्लिम संगठनों ने विरोध किया है, और इसे जल्दबाजी में उठाया गया एक कदम बताया है. विपक्ष का इल्जाम है कि असम की भाजपा सरकार इस कानून का खत्म कर हिंदू वोटों का धु्रवीकरण करना चाह रही है, जबकि सरकार का कहना है कि उसने इस कानून को खत्म कर मुस्लिम समाज में बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं पर रोक लगाने की कोशिश की है.

इस कानून के खत्म होने से सबसे ज्यादा असम और देश के मुसलमान भ्रम की स्थिति में है. इस बात को लेकर उनके अंदर चिंता और परेशानी है कि क्या अब असम के मुसलमान इस्लामी तरीके से शादी नहीं कर पाएगा? क्या वह पहले की तरह इस्लामी तरीके से निकाह और अपनी शादी की रस्में अदा नहीं कर सकते हैं ? क्या उन्हें कोर्ट जाकर शादी करनी होगी? अगर उन्हें तलाक लेना और देना हो तो इसका क्या तरीका होगा ? 

इन तमाम सवालों पर हमारे संवाददाता शरीफुद्दीन अहमद ने असम हाईकोर्ट के सीनियर वकील इलियास अहमद से बातचीत मुसलमानों के उन आशंकाओं का जबाव ढूंढने की कोशिश की है. 

वकील इलियास अहमद के मुताबिक, सरकार ने सिर्फ असम मुस्लिम मैरिज एंड डायवोर्स रजिस्ट्रेशन एक्ट 1935 को खत्म किया है न कि शरियत के मुताबिक निकाह करने के प्रावधानों पर कोई अंकुश लगाया है. इस कानून के खत्म होने का असर सिर्फ इतना पड़ेगा कि अब लोग अपने विवाह और तलाक को सरकार द्वारा नियुक्त काजी के पास रजिस्ट्रेशन नहीं करा पाएंगे. अब शादी या तलाक का रजिस्ट्रेशन सिर्फ परिवार अदालतों या एसडीएम कोर्ट में किया जा सकेगा. इस फैसले के तहत अब 18 साल की लड़की और 21 साल से कम उम्र के किसी लड़के की न तो शादी होगी और न उनका रजिस्ट्रेशन होगा. हालांकि, मुस्लिम जोड़ों का शरियत के मुताबिक निकाह या दूसरे किसी रस्मों-रिवाज में कोई तब्दीली नहीं की गई है.

लोग पहले की तरह ही घर में काजी या मौलाना से निकाह पढ़वा सकेंगे, बस उसका रजिस्ट्रेशन सरकारी अदालतों में कराना होगा. निकाह के पहले तय होने वाली मेहर की रकम पर भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा. लोग पहले की तरह ही मेहर तय कर निकाह कर सकेंगे. इसी तरह तलाक का मामला भी पहले की तरह ही निपटाया जाएगा. बस अब कोई तीन तलाक नहीं दे पाएगा और तलाक के बाद इसका रजिस्ट्रेशन परिवार या फिर अन्य सरकारी अदालतों में होगा. 

रिपोर्ट: गुवाहाटी से शरीफ उद्दीन अहमद 

 

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