2020 Delhi riots SC says We dont believe in unnecessarily keeping people behind bars: सुप्रीम कोर्ट दिल्ली दंगों के दौरान आरोपी बना गए छात्र कार्यकर्ता नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा के जमानत के विरोध में दिल्ली सरकार की अपील पर सुनवाई कर रही थी.
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नई दिल्लीः 2020 के उत्तर पूर्वी दिल्ली के सांप्रदायिक दंगों के एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि हम बिना जरूरत के लोगों को सलाखों के पीछे रखने में यकीन नहीं रखते हैं. सुप्रीम कोर्ट दिल्ली हाईकोर्ट के 15 जून, 2021 के फैसले को चुनौती देने वाली दिल्ली पुलिस की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कार्यकर्ता नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा को सांप्रदायिक हिंसा से संबंधित मामले में जमानत दी गई थी. इन सभी पर नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध- प्रदर्शन के दौरान सांप्रदायिक हिंसा फैलाने का आरोप है.
हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि जमानत पर तीनों कार्यकर्ताओं की रिहाई में इस वक्त कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है. बाद में सरकारी वकील ने तुषार मेहता ने तर्क दिया था कि उस वक्त हुए दंगों के दौरान 53 लोग मारे गए थे और 700 से ज्यादा लोग घायल हुए थे, जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति और अन्य गणमान्य व्यक्ति राष्ट्रीय राजधानी में थे.
हाईकोर्ट ने कहा था, ये लोकतंत्र के लिए दुखद दिन होगा
दिल्ली पुलिस ने उच्च न्यायालय के फैसलों का विरोध करते हुए कहा था कि उच्च न्यायालय द्वारा की गई व्याख्या आतंकवाद के मामलों में अभियोजन पक्ष को कमजोर करेगी. उच्च न्यायालय ने उन्हें यह कहते हुए जमानत दे दी थी कि असंतोष को दबाने की चिंता में राज्य ने विरोध के अधिकार और आतंकवादी गतिविधि के बीच की रेखा को धुंधला कर दिया है, और अगर इस तरह की मानसिकता को बल मिलता है, तो यह 'लोकतंत्र के लिए दुखद दिन' होगा. कलिता, नरवाल और तनहा 24 फरवरी, 2020 को भड़के सांप्रदायिक दंगों से संबंधित मामलों में आरोपी हैं.
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