मालेगांव विस्फोट 2008: आरोपी समीर कुलकर्णी को स्पेशल कोर्ट से मिला झटका
Advertisement
trendingNow,recommendedStories0/zeesalaam/zeesalaam1661199

मालेगांव विस्फोट 2008: आरोपी समीर कुलकर्णी को स्पेशल कोर्ट से मिला झटका

अदालत ने कहा-मुकदमा चलाने पर मंजूरी की वैधता को टुकड़ों में तय नहीं किया जा सकता है. मुल्जिम अंतिम जिरह के दौरान मुकदमा चलाने की मंजूरी के बारे में अपनी शिकायतें उठा सकता है. 

अलामती तस्वीर

मुंबईः एक निचली अदालत ने 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में गुरुवार को कहा है कि गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत किसी के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी की वैधता के बारे में फैसला पूरे सबूतों पर विचार करने के बाद ही किया जा सकता है. राष्ट्रीय अन्वेषण एजेंसी (NIA) के मामलों की स्पेशल कोर्ट ने एक आरोपी की याचिका का निपटारा करते हुए यह टिप्पणी की है. हालांकि, अदालत ने कहा कि भी मुल्जिम अंतिम जिरह के दौरान मुकदमा चलाने की मंजूरी के बारे में अपनी शिकायतें उठा सकता है.

गौरतलब है कि मुंबई से लगभग 200 किमी दूर स्थित नासिक जिले के मालेगांव में 29 सितंबर, 2008 को एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल में रखे विस्फोटक में धमाके से छह लोगों की मौत हो गई थी और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे. इस मामले में मुकदमे का सामना कर रहे आरोपियों में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, सुधाकर द्विवेदी, मेजर रमेश उपाध्याय (Retired), अजय रहीरकर, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी शामिल हैं और ये सभी इस वक्त जमानत पर बाहर हैं.  
उल्लेखनीय है कि यूएपीए के तहत, कोई भी अदालत केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना किसी भी अपराध का संज्ञान नहीं ले सकती है. आरोपियों में से एक समीर कुलकर्णी ने दलील दी थी कि यूएपीए के तहत उस पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है, क्योंकि मंजूरी देने वाले प्राधिकार के बयान से पता चलता है कि मंजूरी अवैध थी. 

स्पेशल एनआईए कोर्ट के न्यायाधीश ए के लाहोटी ने कहा कि उनके पहले के न्यायाधीश ने 2018 में कहा था कि मामले में मंजूरी के आदेश वैध थे. न्यायाधीश लाहोटी ने बंबई हाई कोर्ट (Bombay High Court) में इस मुद्दे को उठाए जाने का जिक्र किया था. होईकोर्ट ने कहा था कि ‘‘शीर्ष अदालत ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) द्वारा दिए गए इस सुझाव को स्वीकार किया है कि उक्त मुद्दे पर सुनवाई के वक्त विचार किया जा सकता है.’’

न्यायाधीश ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा 304 गवाहों से पूछताछ के बाद कुलकर्णी ने अपनी याचिका दायर की है. आदेश में कहा गया है कि मंजूरी की वैधानिकता या वैधता का फैसला संपूर्ण साक्ष्य पर विचार करने के बाद ही किया जा सकता है. न्यायाधीश ने कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाहों का बयान खत्म नहीं हुआ, एक अन्य मंजूरी देने वाले प्राधिकार की जांच जारी है और मंजूरी के लिए प्रस्ताव भेजने वाले जांच अफसर का बयान भी नहीं हुआ है. अदालत ने कहा, ‘‘इसलिए मुझे विशेष लोक अभियोजक द्वारा उठाए गए बिंदु में तथ्य नजर आता है कि सभी सबूतों के पूरा होने से पहले मंजूरी के बिंदु को अलग से तय नहीं किया जा सकता है.’’ जज ने कहा, ‘‘टुकड़ों में मंजूरी के मुद्दे पर विचार और निर्णय नहीं लिया जा सकता है तथा इसे तय करने के लिए पूरे साक्ष्य पर विचार करना होगा, जो अभी खत्म नहीं हुआ है. ’’

Zee Salaam

Trending news