पाकिस्तानी क्रिकेट कमेंटेटर की इकलौती संतान को भारत में मिली नई ज़िन्दगी; मां ने अदा किया शुक्रिया!
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पाकिस्तानी क्रिकेट कमेंटेटर की इकलौती संतान को भारत में मिली नई ज़िन्दगी; मां ने अदा किया शुक्रिया!

Bone Marrow Transplant : कराची के रहने वाले क्रिकेट उद्घोषक सिकंदर बख्त की बेटी अमायरा सिकंदर खान का नारायणा अस्पताल में बीएमटी की मदद से अस्थि मज्जा प्रतिरोपण किया गया था. ऑपरेशन के बाद मरीज अब सामान्य हो रही है. 

अमायरा सिकंदर खान अपनी माँ सदफ के साथ

बेंगलुरुः एक पाकिस्तानी क्रिकेट कमेंटेटर सिकंदर बख्त (Pakistani cricket commentator) की दो साल की बेटी अमायरा सिकंदर खान (Amyra Sikandar Khan) का बेंगलुरु के नारायण हेल्थ सिटी अस्पताल (Narayana Health city hospital) में सफलतापूर्वक बोन मैरो ट्रांसप्लांट (BMT) किया गया. अस्पताल के एक आधिकारी ने बुधवार को बताया कि  कराची की अमायरा सिकंदर खान का इलाज म्यूकोपॉलीसेकेराइडोसिस (Mucopolysaccharidosis) टाइप-1 (एमपीएस-1) बिमारी के लिए किया गया था, जो एक दुर्लभ किस्म का रोग होता है. 

क्या होता है इस बिमारी में ? 
डॉ. सुनील भट ने कहा, ‘‘म्यूकोपॉलीसेकेराइडोसिस एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर में एक किण्वक (एंजाइम) खत्म हो जाता है. उस एंजाइम की कमी की वजह से रोगी के शरीर में कई परिवर्तन होने लगते हैं, लीवर और स्पलीन बड़ा हो जाता है. हड्डियों में भी बदलाव देखने को मिलते हैं. दरअसल, प्लीहा, रक्त कोशिकाओं के स्तर को नियंत्रित करता है. इसमें मरीज की आंखें और मस्तिष्क समेत शरीर के कई दूसरे अंग काम करना बंद कर देते हैं. ऐसी दुर्लभ बिमारी वाले ज्यादातर बच्चे 19 वर्ष की उम्र के होने तक विकलांग हो जाते हैं, और उनमें से ज्यादातर को अपनी जान गंवानी पड़ती है. इसलिए, अस्थि मज्जा प्रतिरोपण इसके संभावित उपचार में से एक माना जाता है. 

कैसे हुआ इलाज ? 
ऑन्कोलॉजी सर्विसेज और ऑन्कोलॉजी कॉलेजियम के वाइस चेयरमैन डॉ. सुनील भट ने कहा कि बीएमटी को चार महीने हो चुके हैं और जांच के बाद पता चला है कि मरीज अब सामान्य हो रहा है. डॉक्टर ने बताया कि बच्ची का कोई भाई या बहन नहीं है, इसलिए डोनर के लिए कोशिश की गई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. बाद में पिता के बोन मैरो का इस्तेमाल किया गया. बच्ची की मां सदफ खान ने बताया कि अपनी बेटी की हालत को देखते हुए उन्होंने डॉ. भट से संपर्क किया था और बेंगलुरू में इलाज कराने का फैसला लिया. बच्ची जब 18 महीने की थी तब ट्रांसप्लांटेशन किया गया था. सदफ ने कहा, अपनी बच्ची को देखकर खुश हूं. मेरे पति को पाकिस्तान से बेंगलुरु जाने के लिए वीजा और अन्य औपचारिकताओं के लिए सरकार से सहायता मिली थी. 

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