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मुहर्रम में क्यों बनाया जाता है ताजिया? इसका चलन कब और कहां से शुरू हुआ; जानें सब कुछ

What is Taziya: मोहर्रम में ही हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी. उनकी याद में ताजिया रखी जाती है. इस खबर में हम आपको बता रहे हैं कि ताजिया क्या है?

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इस महीने की 22 तारीख को मोहर्रम है. मोहर्रम में पैगंबर मोहम्मद स0 के नवासे इमाम हुसैन की शहादत का गम मनाया जाता है.

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मोहर्रम में जहां मातम और मजलिस होती है वहीं लोग इस दिन ताजिया भी रखते हैं. भारत में शिया और सुन्नियों के अलावा हिंदू भी बड़ी तादाद में ताजिया रखते हैं. 

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ताजिया मस्जिद के मीनार के जैसी एक आकृति होती है. इसे बांस से बनाया जाता है. इसके बाद इसे रंगीन कागज और प्लास्टिक से सजाया जाता है. 

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ताजिया को मोहर्रम से चंद घंटों पहले रखा जाता है. इसके बाद मुहर्रम के दिन इसे दफना दिया जाता है. 

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माना जाता है कि ताजिया हजरत इमाम हुसैन के रौजे की शबीह है. कुछ लोग मानते हैं कि 14वीं सदी के बादशाह तैमूर लंग इमाम हुसैन से बेहद अक़ीदत रखते थे. 

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एक बार उनकी तबियत खराब हो गई. इसकी वजह से वह इराक़ के शहर कर्बला नहीं जा सके, तो उन्होंने इमाम हुसैन के रौज़े की तरह एक छोटा रौज़ा बनावाय जिसे ताज़िया कहा गया. 

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यह भी माना जाता है कि हज़रत ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती जब हिंदुस्तान आए तो उन्होंने भी अजमेर में एक इमामबाड़ा बनवाया और ताज़िया रखा. तभी से भारत में ताजिया रखने का चलन बना.