मुरादाबाद दंगाः आखिर क्या हुआ था उस दिन, क्या मुसलमानों ने ही बहाया अपने कौम का खून?
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मुरादाबाद दंगाः आखिर क्या हुआ था उस दिन, क्या मुसलमानों ने ही बहाया अपने कौम का खून?

नई दिल्लीः दो दिन पहले उत्तर प्रदेश की विधानसभा में मुरादाबाद दंगों से जुड़ी एक रिपोर्ट पेश की गई है, जिसके बाद 40 साल पुराना यह दंगा एक बार फिर चर्चा का केंद्र बन गया है.

अलामती तस्वीर

नई दिल्लीः दो दिन पहले उत्तर प्रदेश की विधानसभा में मुरादाबाद दंगों से जुड़ी एक रिपोर्ट पेश की गई है, जिसके बाद 40 साल पुराना यह दंगा एक बार फिर चर्चा का केंद्र बन गया है. इस रिपोर्ट के पेश होने के बाद जहां विपक्ष ने इसपर हंगामा किया वहीं, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि इस रिपोर्ट से कई चेहरों के नकाब उतर जाएंगे. 
गौरतलब है कि यूपी विधानसभा में मानसून सत्र के दूसरे दिन मुरादाबाद दंगों की एसआईटी जांच रिपोर्ट सदन में पेश की गई थी. 43 साल पहले मुरादाबाद में हुए दंगों की जांच रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद सदन में हंगामा मच गया. इन भीषण दंगों में करीब 83 लोग मारे गए थे, और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. उस वक्त राज्य में वीपी सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार थी. ये दंगा ईद के दिन शुरू हुआ था और इस वजह से कई दिनों तक इलाके में कर्फ्यू लगा रहा था. लेकिन इस हिंसा के 43 साल बाद भी पीड़ितों को इंसाफ नहीं मिला. 

योगी ने कहा, जांच रिपोर्ट से कई चेहरे होंगे बेनकाब 
दंगों की रिपोर्ट जांच आयोग ने नवंबर 1983 में सरकार को सौंप दी थी, लेकिन सरकार ने कभी इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया. पिछले दिनों योगी आदित्यनाथ सरकार ने इस रिपोर्ट का सार्वजनिक करने का फैसला लिया था. हालांकि इसे लेकर काफी सियासत हो रही है. सपा और कांग्रेस ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक किए जाने पर विरोध जताया है. मुस्लिम लीग ने भी जांच रिपोर्ट पर सवाल उठाया है. 

43 साल पहले ईद के दिन क्या हुआ था ? 
मुरादाबाद दंगे से जुड़ी 496 पेज की रिपोर्ट के मुताबिक, 13 अगस्त 1980 की सुबह 50,000 से ज्यादा लोग ईद की नमाज अदा करने के लिए ईदगाह में जमा हुए थे. भीड़ इतनी बड़ी थी कि ईदगाह में जगह न मिलने पर लोग सड़कों पर नमाज के लिए आ गए थे. नमाज के दौरान ईदगाह से करीब 200 मीटर दूर वाल्मीकि बस्ती से सड़कों पर एक सुअर के कथित तौर पर आ जाने के बाद बाहर हंगामा मच गया.

जब लोगों ने मौके पर मौजूद पुलिस से पूछा कि उन्होंने सुअरों को अंदर क्यों आने दिया, तो पुलिसकर्मियों ने कथित तौर पर उन्हें डांटते हुए कहा कि सुअरों से सुरक्षा करना उनका काम नहीं है. इसके बाद लोगों ने पुलिस पर पथराव करना शुरू कर दिया. एक पत्थर एसएसपी रैंक के एक अफसर के सिर पर भी लगा था.  
प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि अफसर जैसे ही वह बेहोश हुआ, पुलिस ने ईदगाह के मुख्य द्वार से कथित तौर पर गोलीबारी शुरू कर दी. इससे लोग ईदगाह के दूसरे दरवाजे से सुरक्षित स्थानों पर भागने लगे और वहां भगदड़ मच गई.

पुलिस की गोलीबारी से नाराज भीड़ ने ईदगाह से कुछ सौ मीटर दूर गलशाहीद में निकटतम पुलिस चौकी में कथित तौर पर तोड़फोड़ की और आग लगा दी. वहां दो कांस्टेबलों की मौत हो गई. 

क्या कहते हैं हादसे के चश्मदीद 
ईदगाह से सटे मोहल्ले में रहने वाले मोहम्मद नबी तब 32 साल के थे. वो कहते हैं, “हम सभी भागने की कोशिश कर रहे थे. कुछ लोग अपने बच्चों को कंधे पर उठाकर भाग रहे थे. कई लोगों को कुचल दिया गया. कुछ लोगों को बिजली के तार से करंट लग गया. यहां कम से कम 150 लोगों की मौत हो गई. मैंने लाशों को अपने हाथों से उठाया है.
मोहल्ला के एक दर्जी इंतेजार हुसैन (65) ने बताया कि गोलियों की आवाज से उनकी नींद खुली और उन्होंने खून से लथपथ लोगों को इधर-उधर भागते देखा. जैसे ही उन्होंने बगल की मस्जिद में शरण ली, एक गोली उनके सिर से गुजर गई. उन्होंने कहा, “मैं भाग्यशाली हूं जो बच गया. न्याय को भूल जाइए, पुलिस स्टेशन में एक भी मुकदमा दर्ज नहीं हुआ.“

दंगे की रिपोर्ट में किसे बताया गया है दोषी 
रिपोर्ट के मुताबिक, ईदगाह और अन्य स्थानों पर गड़बड़ी पैदा करने के लिए कोई भी सरकारी अधिकारी या कर्मचारी या हिंदू उत्तरदायी नहीं था. डॉक्टर शमीम अहमद के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग और डॉक्टर हामिद हुसैन उर्फ डॉक्टर अज्जी के समर्थकों और भाड़े के व्यक्तियों ने यह हिंसा भड़काई थी. खुद के लिए समर्थन हासिल करने के लिए वाल्मीकि समाज और पंजाबी हिंदुओं पर इस दंगे का दोष लगाया गया था. 

मुस्लिम आंखे खोले 
मुस्लिम समाज के जफर नकवी का कहना है कि इस रिपोर्ट का सार्वजनिक होना जरूरी था. कम से कम मुसलमानों को भी समझना चाहिए कि कैसे धर्म के ठेकेदार वोट बैंक के नाम पर जो खुद मुस्लिम हैं, इस तरह के दंगे करवाते हैं. जिस तरह से इसमें मुस्लिम शमीम खान का नाम आया है. मुसलमान इस चीज को जरूर देखें और अभी भी वक्त है आंखें खोलने का. 

रिपोर्ट का भाजपा उठाना चाहती है फायदा 
इस मामले में बसपा विधायक विधान मंडल दल के नेता उमा शंकर ने कहा कि हम लोग का दुर्भाग्य है कि यह रिपोर्ट इतने साल बाद पेश हुई है. इस रिपोर्ट को पहले ही पेश होकर सच सबके सामने आना चाहिए था. भाजपा के लिए कोई नई बात नहीं है. जब चुनाव आता है, इस तरह की रिपोर्ट को वह पेश करती है.
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से जब सवाल किया गया कि क्या इस वक्त यह रिपोर्ट पेश होना जरूरी था, तो उन्होंने कहा कि 2024 के चुनाव आने वाले हैं. इस तरह की और भी रिपोर्ट आएंगी. 

:- अतीक अहमद की रिपोर्ट

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