Bihar News: बिहार के सरकारी मदरसों में पढ़ाए जाने वाली एक किताब में एक शब्द "काफिर" को लेकर NCPCR ने सवाल उठाया था. उन्होंने कहा था कि ये शब्द के लिए खतरा है. हालांकि, अब बिहार सरकार और मदरसा बोर्ड ने इस सवाल का जवाब दिया है.
Trending Photos
Bihar News: बिहार सरकार से फंडिंग मदरसों में पढ़ाए जाने वाली किताब तालीमुल-इस्लाम पर विवाद बढ़ता जा रहा है. इस किताब के एक लेसन में गैर-मुस्लिम को 'काफिर' बताए जाने पर सवाल उठाया गया है और कहा है कि यह लेसन राष्ट्र के लिए ख़तरा है. हालांकि, जिस काफिर शब्द को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं उसको लेकर के मदरसा बोर्ड और अल्पसंख्यक मंत्री ने जवाब दिए हैं.
दरअसल, राष्ट्रीय बाल संक्षरण आयोग ( NCPCR ) के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने 'X' पर पोस्ट करते हुए किताब पर आपत्ति उठाई थी. उन्होंने तालिमुल-इस्लाम समेत कई किताबों पर सवाल उठाए थे. हालांकि, इस किताब को लेकर अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री ज़मा खान ने बड़ा बयान देते हुए इनकार कर दिया है .
वहीं, बिहार मदरसा बोर्ड के सेक्रेटरी और प्रशासक ने साफ़ कहा की यह किताब पढ़ाई जाती है और यह पाकिस्तान से नहीं बल्कि राजधानी दिल्ली से छपकर आई है. उन्होंने इस किताब को लेकर कहा कि इस किताब में दिन-ईमान की बातें कही गई हैं. इसके लेसन पर किसी को कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह SCERT और NCERT के सिलेबस के मुताबिक है.
बिहार में 1973 मदरसे सरकारी फंडिंग से चलाई जाती है; BMSEB
मदरसा बोर्ड के सचिव अब्दुल सलाम अंसारी ने कहा की बिहार में करीब 1973 के आसपास मदरसे हैं जो सरकार के फंड से चलाई जाती है. इन मदरसों में हिन्दू बच्चे भी पढ़ते हैं जिनकी जानकारी बाल संरक्षण आयोग (NCPCR ) को भेज दी गई है . पर यह इल्जाम गलत है की तालिमुल-इस्लाम पाकिस्तान से छपवाकर मंगवाई जाती है.
'काफिर' शब्द का क्या है अर्थ?
इस पूरे विवाद के पीछे 'काफिर' शब्द है, जो तामिमुल इस्लाम किताब के पेज नंबर तीन पर है. इस किताब को क्लास में 2 में पढ़ाई जाती है. काफिर शब्द का मतलब यहां पर लिखा गया है "जो खुदा को नहीं मानते" यानी जो ईश्वर,भगवान, खुदा पर विश्वास नहीं करते अर्थात नास्तिक. लेकिन इसके बाद भी इस शब्द को गलत तरीके से लोगों के बीच पेश किया जा रहा है. वहीं, बिहार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमा खान ने मदरसा में सिलेबस पर हो रहे विवाद के मामले में मदरसों को क्लीन चिट दे दी है.