"इस्लाम में लिव-इन रिलेशनशिप हराम", इलाहाबाद HC ने शादीशुदा महिला की याचिका को किया खारिज
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"इस्लाम में लिव-इन रिलेशनशिप हराम", इलाहाबाद HC ने शादीशुदा महिला की याचिका को किया खारिज

 Uttar Pradesh News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप में रह रही विवाहित मुस्लिम महिला को हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है. सुरक्षा की मांग को लेकर दाखिल याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया.

 

"इस्लाम में लिव-इन रिलेशनशिप हराम", इलाहाबाद HC ने शादीशुदा महिला की याचिका को किया खारिज

Uttar Pradesh News: इलाहाबाद हाईकोर्ट से लिव इन रिलेशनशिप में रह रही शादीशुदा मुस्लिम महिला को बड़ा झटका लगा है. महिला ने अपनी सुरक्षा को लेकर हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी. लेकिन कोर्ट ने आज इस याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मुस्लिम लॉ के मुताबिक मुस्लिम महिला किसी के साथ लिव इन-रिलेशनशिप में नहीं रह सकती है.

दरअसल, मुजफ्फरनगर ( Muzaffarnagar News )  जिले की रहने वाली 44 साल की सालेहा नाम की महिला लिव इन रिलेशनशिप में अपने प्रेमी की साथ रह रही है. सालेहा पहले से विवाहिता है, लेकिन वह फिर भी मौजूदा वक्त में  लिव इन रिलेशनशिप में रह रही है. सालेहा के शादीशुदा होने के बावजूद दूसरे के साथ रहने की वजह से परिवार वाले काफी गुस्से में हैं. परिवार वाले के डर की वजह से सालेहा ने जान का खतरा जताते हुए हाईकोर्ट से सुरक्षा की गुहार लगाई थी, लेकिन कोर्ट ने इस मामले में सभी तथ्यों को समझने के बाद याचिकाकर्ता को सिक्योरिटी देने से इंकार कर दिया.

'ये इस्लाम में हराम है'

जस्टिस रेनू अग्रवाल की सिंगल बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा कि मुस्लिम महिला किसी दूसरे व्यक्ति के साथ लिव इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकती है. ये इस्लाम में हराम है, क्योंकि मुस्लिम कानून में लिव इन रिलेशनशिप में रहना जिना ( व्यभिचार ) कहलाता है. जस्टिस रेणु ने यह कहते हुए याचिकाकर्ता को सिक्योरिटी नहीं देने का आदेश दिया. 

पहले भी कोर्ट ने किया है इनकार
बता दें कि इससे पहले भी पिछले साल 26 जून को  इलाहाबाद हाईकोर्ट 29 साल की एक हिंदू लड़की और 30 साल के मुस्लिम लड़के की तरफ से दायर की गई सुरक्षा याचिका पर सुनवाई करते हुए सिक्योरिटी देने से इनकार दिया था.

 

 

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