सऊदी अरब के मक्का में पैदा हुए थे आज़ाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद
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सऊदी अरब के मक्का में पैदा हुए थे आज़ाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद

India's first Education Minister Moulana Abdul Kalam Azad Birthday: आज़ाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री और महान स्वतंत्रता सेनानी  मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का आज जन्म दिन है. वह 11 नवंबर, 1888 को सऊदी अरब के मक्का शहर में पैदा हुए थे, भारत आकर उन्होंने आज़ादी की लड़ाई में अपनी भूमिका निभाई और देश के आज़ाद होने के बाद पहले शिक्षा मंत्री बने. 

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद

India's first Education Minister Moulana Abdul Kalam Azad Birthday: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में अहम किरदार निभाने वाले और आज़ाद भारत के पहले यूनियन एजुकेशन मिनिस्टर मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का आज ही के दिन यानी 11 नवंबर, 1888 को सऊदी अरब के मक्का शहर में जन्म हुआ था.  मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का असली नाम अबुल कलाम मोहिद्दीन खैरुद्दीन था. उनके वालिद मौलाना खैरुद्दीन और मां आलिया थीं. अबुल कलाम आज़ाद अफग़ान उलेमाओं के ख़ानदान से ताल्लुक रखते थे. उनकी माँ अरबी मूल की थीं और उनके पिता मोहम्मद खैरुद्दीन ईरानी मूल के थे. उनका परिवार कोलकाता में रहता था. भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के1857 के वक़्त मोहम्मद खैरुद्दीन का परिवार कलकत्ता छोड़ कर मक्का चला गया था. वहीँ पर मौलवी मोहम्मद खॅरूद्दीन की मुलाकात अपनी होने वाली पत्नी यानी आज़ाद की माँ से हुई थी. मोहम्मद खैरूद्दीन 1890 में भारत लौट आये थे. उस वक़्त मौलवी मौहम्मद खैरूद्दीन को कलकत्ता सहित देश का आला दर्जे का दानिश्वर माना जाता था.

आज़ाद जब सिर्फ 11 साल के थे तभी उनकी माँ का देहांत हो गया. आज़ाद की आरंभिक शिक्षा इस्लामी तौर तरीकों से हुई थी. उनके पिता और बाद में अन्य विद्वानों ने पढ़ाया था. उन्होंने कभी किसी विद्यालय/विश्वविद्यालय में दाखिला नहीं लिया था.  आज़ाद उर्दू, फ़ारसी, हिन्दी, अरबी और अंग्रेजी़ के विद्वान थे. इस्लामी शिक्षा के अलावा उन्हें इतिहास और  गणित की शिक्षा भी अन्य मौलानाओं से हासिल की थी. 

तेरह साल की उम्र में ही उनका विवाह ज़ुलैखा बेग़म से हो गया था. वे सलाफी (देवबन्दी) विचारधारा के करीब थे और उन्होंने क़ुरान के अन्य भावरूपों पर लेख भी लिखे हैं. वे आधुनिक शिक्षावादी सर सैय्यद अहमद खाँ के विचारों से सहमत थे. 

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने बारह साल की छोटी सी उम्र में 'नैरंग-ए-आलम' नामक मासिक मैगज़ीन शुरू की थी. तेरह साल की उम्र में उन्होंने साहित्यिक आलोचना पर लेख लिखे, जिसके लिए उन्हें एक महान विद्वान, कवि और बुद्धिजीवी के रूप में सराहा गया, और इसी से उनकी पहचान बनी.  

मौलाना अबुल कलाम ने 1904 में अखिल भारतीय मुस्लिम शैक्षिक सम्मेलन और अखिल भारतीय मुस्लिम संपादकों के सम्मेलन में हिस्सा लिया. उन्हें अपने शुरुआती दिनों में मुस्लिम लीग की विचारधारा काफी पसंद थी. उनका मानना ​​था कि ब्रिटिश हुकूमत को शिकस्त देने के लिए सशस्त्र संघर्ष ही वाहिद उपाय है. उस दौर में उन्होंने अपने कई क्रांतिकारी संगठन शुरू किए. लेकिन, 1920 जनवरी से उन्होंने क्रांतिकारी का रास्ता छोड़ दिया, जब उनकी पहली मुलाकात महात्मा गांधी से हुई. तब से उन्होंने अहिंसा आंदोलन का समर्थन किया.

खिलाफत और असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा लेकर उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में प्रवेश किया. उन्होंने कई विद्वत्तापूर्ण पुस्तकें लिखीं और विदेशी शासन के खिलाफ लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए 'अल हिलाल', 'अल बलाग' और दीगर अख़बारों और कई उर्दू पत्रिकाएँ प्रकाशित कीं. उनका मकसद भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को मजबूत करना और लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित करना था.

ब्रिटिश सरकार ने उनकी पत्रिकाओं पर कई बार पाबन्दी लगाई थी. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान, उन्होंने मुल्क के कई जेलों में 10 साल और सात महीने की सजा काटी थी. उन्होंने 1923 में दिल्ली में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन की सदारत की, उस वक़्त उनकी उम्र सिर्फ 35 साल की थी. उन्होंने 1927 में मुस्लिम लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच समझौते में भी बेहद ख़ास भूमिका निभाई थी. मौलाना अबुल कलाम 1939 में एक बार फिर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सद्र बने और 1948 तक उस ओहदे पर बने रहे. आजादी के बाद वे उत्तर प्रदेश राज्य के रामपुर जिले से 1952 में सांसद चुने गए और मुल्क के पहले शिक्षा मंत्री बने. उन्होंने अलगाववादी विचारधारा का कड़ा विरोध किया और ऐलान किया कि हिंदू और मुसलमानों के बीच आपसी भाईचारा और सद्भाव मुल्क की आज़ादी से भी ज्यादा अहम है. आज़ादी के बाद वे आज़ाद हिंदुस्तान के पहले शिक्षा मंत्री बने और शिक्षा के क्षेत्र में रचनात्मक और सृजनात्मक कार्यक्रम और योजनाएँ लागू कीं. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान और आज़ादी के बाद के दौर में भी मौलाना अबुल कलाम आज़ाद हिंदू और मुसलमानों के बीच सद्भावना के हिमायती रहे. 22 फ़रवरी, 1919 को उनकी मृत्यु हो गई. 

पीएम मोदी ने आजाद को दी श्रद्धांजलि 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को कांग्रेस के साबिक सद्र और जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी मौलाना अबुल कलाम आजाद को उनकी जयंती पर खिराज-ए- अकीदत पेश की. 
मोदी ने एक्स पर कहा कि भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद को  ज्ञान के प्रकाश स्तंभ के रूप में और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका के लिए याद किया जाता है. प्रधानमंत्री ने कहा, "वे एक गहन विचारक और विपुल लेखक भी थे. हम एक विकसित और सशक्त भारत के लिए उनके दृष्टिकोण से प्रेरित हैं."

 

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