क्रिसमस डे पर शिमला की क्राइस्ट चर्च पहुंचे इंग्लैड से सैलानी, हिमाचली परिधान पहन करवा रहे फोटोशूट
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क्रिसमस डे पर शिमला की क्राइस्ट चर्च पहुंचे इंग्लैड से सैलानी, हिमाचली परिधान पहन करवा रहे फोटोशूट

Merry Christmas: देशभर में आज क्रिसमस डे की धूम देखने को मिल रही है. सभी चर्चों को खास तरीके से सजाया गया है. ऐसे में शिमला के क्राइस्ट चर्च को रंग-बिरंगी लाइटिंग लाइटों से सजाया हुआ है. 

 

क्रिसमस डे पर शिमला की क्राइस्ट चर्च पहुंचे इंग्लैड से सैलानी, हिमाचली परिधान पहन करवा रहे फोटोशूट

संदीप सिंह/शिमला: हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला को यूं ही पहाड़ों की रानी नहीं कहा जाता है. यहां का खूबसूरत नजारा सभी का मन मोह लेता है. सैलानी यहां न सिर्फ बर्फबारी बल्कि 25 दिसंबर को 'क्रिसमस डे' मनाने के लिए भी पहुंचते हैं. शिमला के रिज मैदान पर स्थित क्राइस्ट चर्च सभी का मन मोह लेता है. यह चर्च रंग-बिरंगी लाइटों से सजा हुआ किसी नई नवेली दुल्हन से कम नहीं लग रहा है. ऐसे में हर साल न सिर्फ देश बल्कि हर विदेश से भी सैलानी यहां क्रिसमस मनाने पहुंचते हैं.

इस्लामी भी यहां हिमाचली परिधान पहनकर फोटो खिंचवाते हुए दिखाई देते हैं. शिमला का मॉल रोड भी सैलानियों की चहल-पहल के लिए आकर्षण का केंद्र बन जाता है. सैलानी भी शिमला की खूबसूरत वादियों, शांत और स्वच्छ आबोहवा का आनंद उठाने के लिए यहां के पर्यटक स्थलों में बड़ी तादाद में पहुंचते हैं. इस साल इंग्लैंड से भी सैलानी यहां क्रिसमस डे सेलिब्रेट करने के लिए पहुंचे हुए हैं. 

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क्यों खास है शिमला का क्राइस्ट चर्च?
बता दें, शिमला का क्राइस्ट चर्च उत्तरी भारत का दूसरा सबसे पुराना चर्च है. इसे शिमला का ताज भी कहा जाता है. इस चर्च को एंग्लीकेन ब्रिटिशन कम्युनिटी के लिए बनाया गया था. 1844 में कर्नल जेटी बोयलियो ने इसका डिजाइन तैयार किया था और 1846 में इसकी नीव रखी गई थी. करीब 10 साल बाद 1856 तक यह बनकर तैयार हो गया था. 

यहां लगीं खिड़कियों को लेकर है खास मान्यता
शिमला के क्राइस्ट चर्च में लगी पांच बड़ी खिड़कियों को लेकर मान्यता है कि यह ईसाई धर्म के विश्वास, धैर्य, उम्मीद, विनम्रता और परोपकार का प्रतीक माना जाता है.

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यह है क्राइस्ट चर्च का इतिहास
बता दें, शिमला का क्राइस्ट चर्च उत्तरी भारत का दूसरा सबसे पुराना चर्च है. इसे शिमला का ताज कहा जाता है. इसे चर्च को एंग्लीकेन ब्रिटिशन कम्युनिटी के लिए बनाया गया था. 1844 में कर्नल जेटी बोयलियो ने इसका डिजाइन तैयार किया था और 1846 में इसकी नीव रखी गई थी. करीब 10 बाद 1856 तक यह बनकर तैयार हो गया था. 

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