आलू का हब कहे जाने वाले ऊना में अब आलू की खेती कम होने की कगार पर आ गई है. किसानों का कहना है कि उन्हें उनकी फसल का उचित दाम नहीं मिल पाता है. इन किसानों ने सरकार से गुहार लगाते हुए कहा कि उनकी फसल का समर्थन मूल्य तय किया जाए.
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राकेश मल्ही/ऊना: हिमाचल प्रदेश का जिला ऊना आलू का हब कहा जाता है, क्योंकि यहां के ज्यादातर किसान आलू की खेती करते हैं. उत्तर भारत की मंडियों में भी ऊना के आलू की डिमांड इतनी ज्यादा है कि पंजाब हरियाणा और यूपी के व्यापारी खरीदारी के लिए आलू की फसल की पिटाई से पहले ही यहां आकर डेरा डाल लेते हैं.
अच्छी गुणवत्ता के बाद भी किसान क्यों चिंतित?
बता दें, ऊना के आलू अपने गोल्डन कलर, मोटाई और अपने स्वाद के लिए जाने जाता है. ऊना जिला में किसान 1500 हेक्टेयर भूमि पर आलू की पैदावार करते हैं, लेकिन इस बार ये किसान आलू की फसल के उचित दाम ना मिलने के कारण काफी चिंतित हैं. किसानों की मानें तो आलू की फसल के लिए उन्होंने महंगे बीज लेकर आलू की फसल उगाई है, लेकिन इस बार आलू की फसल के उन्हें अच्छे दाम नहीं मिल रहे हैं.
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किसानों से सरकार से लगाई गुहार
किसानों का कहना है कि बाहर से आने वाले व्यापारी अपनी मर्जी के दाम पर ही आलू खरीदते हैं. ऐसे में उन्हें फसल का उचित दाम नहीं मिल पाता है. किसानों ने सरकार से गुहार लगाई है कि आलू का समर्थन मूल्य तय किया जाए ताकि उन्हें आलू की फसल के उचित दाम मिल सकें. किसानों की मानें तो महंगे बीज और महंगी लेबर के जरिए अब आलू की खेती में ज्यादा मुनाफा नहीं दिखता है, इसलिए अगर सरकार आलू का समर्थन मूल्य तय कर दे तो आलू की खेती में उनको फायदा होने की उम्मीद है.
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क्या कहते हैं कृषि विभाग के अधिकारी?
वहीं कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ऊना के आलू की उत्तर भारत की मंडियों में डिमांड ज्यादा होने के कारण बाहर के व्यापारी ऊना आकर इसकी खरीदारी करते हैं. ऊना में आलू की अलग-अलग किस्मों की खेती की जाती है. उन्हें उम्मीद है कि ऊना जिला में इस बार 22,500 मैट्रिक टन आलू की पैदावार होने होगी.
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