SYL नहर का विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है. काफी समय से यह मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. अब इस मुद्दे पर भिवानी-महेंद्रगढ़ से सांसद चौधरी धर्मबीर सिंह ने पंजाब सरकार पर निशाना साधा है.
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राजेश खटारिया/फिरोजपुर: पंजाब और हरियाणा के बीच काफी समय से चला आ रहा SYL Canal का मुद्दा गरमाता जा रहा है. इस मामले में भिवानी-महेंद्रगढ़ से सांसद चौधरी धर्मबीर सिंह ने रविवार को स्थानीय तोशाम बाईपास स्थित भाजपा कार्यालय में एसवाईएल मुद्दे को लेकर पत्रकारों से बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद पंजाब सरकार द्वारा एसवाईएल (SYL) नहर के निर्माण को लेकर सकारात्मक कदम ना उठाना निंदनीय है. ऐसा करके पंजाब सरकार हरियाणा के साथ खिलवाड़ कर रही है. एसवाईएल के पानी पर हरियाणा का पूरा हक है. सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने अंतिम फैसले में हरियाणा के हक को सही माना है. ऐसे में यह साफ है कि पंजाब हरियाणा के हक पर कुंडली मारकर बैठा है.
पंजाब का कोई हक नहीं कि वो हरियाणा का पानी रोके-सांसद चौधरी धर्मबीर सिंह
सांसद चौधरी धर्मबीर सिंह ने कहा कि एसवाईएल के मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल को आम आदमी पार्टी का मुखिया होने के नाते पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की खिंचाई करनी चाहिए, ताकि हरियाणा को पानी मिल सके. उन्होंने कहा कि जब माननीय सुप्रीम कोर्ट ने एसवाईएल को लेकर हरियाणा के हक में फैसला दे दिया है तो पंजाब का कोई हक नहीं बनता कि वह हरियाणा के पानी को रोक सके.
पंजाब सरकार अपना रही ढुलमुल रवैया
इसके अलावा उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार को हरियाणा राज्य से पानी मिलता है. दिल्ली के हिस्से का पानी देने में हरियाणा जरा भी कोताही नहीं बरतता. हद तो इस बात की है कि पंजाब पानी नहीं देने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को भी दरकिनार करने से नहीं झिझक रहा. पंजाब के साथ कई दौर की वार्ता भी की जा चुकी है, लेकिन पंजाब सरकार और इसके अफसर लगातार ढुलमुल रवैया अपनाए हुए हैं और मामले को लंबा खींच रहे हैं.
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हरियाणा प्यासा रहकर दिल्ली को दे रहा पानी
सांसद चौधरी धर्मबीर सिंह ने कहा कि अरविंद केजरीवाल अपने गांव खेड़ा में जाकर देखें कि वहां पर पानी की क्या व्यवस्था है. ऐसे में एसवाईएल के निर्माण को लेकर पंजाब सरकार को अपनी विधानसभा में एक प्रस्ताव पास करना चाहिए, जिसमें वह यह कहे कि पानी को लेकर पंजाब राज्य सरकार नहीं, बल्कि केंद्र सरकार उचित फैसला ले. उन्होंने कहा कि एक ओर तो दिल्ली की आप सरकार हरियाणा से ज्यादा पानी की मांग करती है दूसरी ओर पंजाब की आप सरकार हरियाणा को इसके हिस्से का पानी नहीं देती, जबकि पंजाब और दिल्ली दोनों ही राज्यों में आम आदमी पार्टी की सरकार है. इसके बावजूद खुद प्यासा रहकर हरियाणा अपने हिस्से से दिल्ली को पानी पिलाता है, लेकिन पंजाब पानी की एक भी बूंद नहीं छोड़ रहा, जो हरियाणा के हितों पर सरासर कुठाराघात है.
हरियाणा को हर साल उठाना पड़ रहा नुकसान
सांसद ने कहा कि हरियाणा को एसवाईएल का पानी ना मिलने के कारण हरियाणा को 10 लाख एकड़ क्षेत्र को सिंचित नहीं किया जा सका, जिसके कारण हरियाणा को हर साल 42 लाख टन खाद्यान्न का नुकसान उठाना पड़ रहा है. अगर 1981 के समझौते के अनुसार 1983 में एसवाईएल नहर बन जाती तो हरियाणा 130 लाख टन अतिरिक्त खाद्यान्न व दूसरे अनाज का उत्पादन करता, जिससे राज्य को कृषि पैदावार के रूप में 19 हजार 500 करोड़ रुपये का लाभ मिलता. इस पानी के न मिलने से दक्षिणी हरियाणा में भूजल स्तर भी काफी नीचे जा रहा है.
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सांसद ने कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साल 2002 में हरियाणा के पक्ष में फैसला सुनाया था और पंजाब को एसवाईएल कनाल एक साल के अंदर बनाने के निर्देश दिए थे, वहीं वर्ष 2004 में पंजाब की याचिका के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले को कायम रखा और याचिका खारिज कर दी. इसके बाद पंजाब ने कानून पास करके हरियाणा के साथ एसवाईएल नहर परियोजना के समझौते को रद्द कर दिया. शीर्ष न्यायालय का इस पूरे मामले पर कहना है कि प्राकृतिक संसाधनों को आपस में साझा किया जाना चाहिए, इसलिए दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री आपस में समस्या का समाधान निकालें.
कोई भी राज्य या शहर यह नहीं कह सकता कि केवल उसे ही पानी की जरूरत है. बड़ा दृष्टिकोण रखते हुए पानी जैसे प्राकृतिक संसाधन को आपस में साझा करना चाहिए. पंजाब पुनर्गठन अधिनियम ए-1966 के प्रावधान के अंतर्गत भारत सरकार के आदेश 24 मार्च 1976 के अनुसार हरियाणा को रावी-ब्यास के फालतू पानी में से 3.5 एमएएफ जल का आबंटन किया गया था. एसवाईएल कैनाल का निर्माण कार्य पूरा ना होने की वजह से हरियाणा केवल 1.62 एमएएफ पानी का इस्तेमाल कर रहा है. पंजाब अपने क्षेत्र में एसवाईएल कैनाल का निर्माण कार्य पूरा न करके हरियाणा के हिस्से के लगभग 1.9 एमएएफ जल का गैर कानूनी ढंग से उपयोग कर रहा है.
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