सिरमौर में हर घर नल योजना की खुली पोल, महिलाएं और स्कूली बच्चे पानी ढ़ोने को हुए मजबूर
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सिरमौर में हर घर नल योजना की खुली पोल, महिलाएं और स्कूली बच्चे पानी ढ़ोने को हुए मजबूर

मानसून में तेज बारिश के कारण जहां कई जगहों पर बाढ़ जैसे हालात बने हुए हैं. वहीं सिरमौर में एक ऐसा गांव भी है जहां लोग घर के कामकाग से लेकर पीने के पानी तक के लिए तरस रहे हैं. 

सिरमौर में हर घर नल योजना की खुली पोल, महिलाएं और स्कूली बच्चे पानी ढ़ोने को हुए मजबूर

ज्ञान प्रकाश/सिरमौर: सिरमौर जिले के दूरदराज श्रीकयारी गांव के लोग बरसात के मौसम में भी पीने के पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. गांव की पेयजल स्कीम की पाइप टूट गई है जबकि सप्लाई टैंक में घास उगी हुई है. हालात यह हैं कि गांव के लोगों यहां तक कि स्कूल को बच्चों को भी बरसाती पानी के सोर्स से सिर पर पानी ढोना पड़ रहा है. गांव में यह स्थिति आज से नहीं बल्कि पिछले 3 साल से बनी हुई है.

सरकार की योजना पर उठे सवाल
गांव के यह हालात सरकार की 'हर घर में नल' योजना की पोल खुलते हैं. दुर्गम क्षेत्र श्रीकयारी गांव में लाचारी का आलम यह है कि यहां पिछले 3 साल से गांव की महिलाओं का ज्यादातर समय पानी ढोने में ही बीत जाता है. गांव के बच्चे भी स्कूल से आते हैं तो पानी ढोने के काम में लग जाते हैं. महिलाएं घर के काम, परिजनों और पशुओं के पीने के पानी की जरूरत के लिए दिनभर मशक्कत करती हैं.

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ग्रामीण कई बार कर चुके हैं शिकायत

स्थानीय लोगों का कहना है कि सरकारी सिस्टम को करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद भी व्यवस्थाओं को दुरुस्त करना नहीं आता है और न ही उन्हें लोगों की लाचारी और मजबूरी नजर आती है. सभी ग्रामीण जल शक्ति विभाग से कई बार शिकायत कर चुके है. उनका कहना है हम सभी व्यवस्था को दुरुस्त करने की मांग करते-करते थक चुके हैं, लेकिन भारी भरकम सरकारी अमला तमाम सुविधाओं के बावजूद भी लोगों की प्यास बुझाने में नाकाम है. 

स्कूल के बच्चे भी पानी ढ़ोने को हुए मजबूर
जल शक्ति विभाग के अधिकारियों और नेताओं से बार-बार शिकायत की गई है, लेकिन पाइप लाइनों को नहीं जोड़ा जा रहा है. विभाग की लापरवाही से हालात बद से बदतर हो गए हैं. वाटर सप्लाई टैंक के फिल्टर पर मिट्टी जमा हो गई है और घास उग गई है. पेयजल की समस्या से ग्रामीण ही नहीं बल्कि स्कूल के बच्चे भी परेशान हो रहे हैं. स्कूल के बच्चों को भी काफी दूर से पानी ढोकर लाना पड़ता है और स्कूल की जरूरतों को पूरा करना पड़ रहा है.

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