Rishi Panchami Festival: सिरमौर जिला के गिरीपार जनजातीय क्षेत्र में हर त्योहार की तरह ऋषि पंचमी पर्व भी खास अंदाज में मनाया जाता है. इस पर्व पर रात्रि जागरण के दौरान देवता के गुरों की शक्तियां हैरान करने वाली होती हैं.
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ज्ञान प्रकाश/पांवटा साहिब: सिरमौर जिला के गिरीपार जनजातीय क्षेत्र का हर त्योहार विचित्र और दिलचस्प है. जनजातीय क्षेत्र में कुछ स्थानों पर ऋषि पंचमी पर्व मनाया जाता है. यह पर्व गणेश चतुर्थी के अगले दिन महासू देवता के दिवालयों में मनाया जाता है. इस पर्व में रात्रि जागरण के दौरान देवता के गुरों की शक्ति हैरान करने वाली होती है. देवता के गुर धधकते शोलों के साथ खेलते हैं और आग में कूदते हैं. दिलचस्प बात यह होती है कि आग से किसी को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचता है. शिलाई क्षेत्र के नावणा गांव से ऐसी हैरान करने वाली तस्वीरें देखने को मिलीं.
आग से खेलते देवता के गुर कभी शोलों को हाथ में उठाते हैं तो कभी जलती आग का धुआं मुंह में लेते हैं. इतना ही नहीं ये देवता के गुर इन शोलों के बीच भी कूद जाते हैं. शिलाई क्षेत्र के नावणा गांव में हर साल ऋषि पंचमी पर्व मनाया जाता है. महासू देवता का यह पर्व सदियों से लोगों की आस्था और क्षेत्र में देव शक्तियों के साक्षात विराजमान का प्रमाण हैं. देवता के गुरों में इस पर्व के अवसर पर विचित्र शक्ति प्रवेश करती है. शक्ति के प्रवेश का प्रमाण यह है कि आग से इन गुरों को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है.
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गिरिपार जनजातीय क्षेत्र के लोग अक्सर ऐसी तस्वीर देखते हैं, लेकिन अन्य लोगों के लिए यह तस्वीर हैरान करने वाली हैं. ऋषि पंचमी के अलावा कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन यानी गुग्गा नवमी के दिन भी देवालयों में ऐसा ही नजारा देखने को मिलता है. अच्छी बात यह है कि इन परंपराओं और शक्तियों के आगमन पर आधुनिकता लेश मात्र का भी असर नजर नहीं आता है. इस क्षेत्र में आज भी यह त्यौहार प्राचीन मान्यताओं के अनुसार ही मनाए जाते हैं. क्षेत्र के युवा परंपराओं के ध्वजवाहक बने हुए हैं.
स्थानीय लोगों का मानना है कि इस क्षेत्र में आज भी देवी शक्तियां विराजमान हैं, वही शक्तियां लोगों की आपदाओं और काल आदि से रक्षा करती हैं. गुग्गा नवमी और ऋषि पंचमी पर इन शक्तियों को साक्षात देखा जा सकता है. लोगों का कहना है कि जिन गुरों में देवताओं की हवा आती है, उन्हें आग भी कोई नुकसान नहीं पहुंच पाती.
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ऋषि पंचमी त्यौहार जनजातीय क्षेत्र के ऐसे गांव में मनाया जाता है, जहां महासू देवता के मंदिर हैं. इस अवसर पर यहां रात्रि जागरण भजन कीर्तन और भंडारे के साथ-साथ नाच गाना और उल्लास होता है. पर्व का हिस्सा बनने के लिए दूर-दूर से लोग इन गांव में पहुंचते हैं. देवता के गुरों से अपनी समस्याओं के समाधान पूछते हैं और सुखी जीवन का आशिर्वाद लेते हैं.
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