Farmer News: हमीरपुर का गांव हरनेड़ प्राकृतिक खेती में मिसाल बना रहा है. यहां बड़े पैमाने पर प्राकृतिक खेती की जा रही है. प्राकृतिक खेती कर रहे एक किसान ने बताया कि वह किसी भी प्रकार की रासायनिक खाद या केमिकलयुक्त कीटनाशक का प्रयोग नहीं कर रहे हैं.
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अरविंदर सिंह/हमीरपुर: मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व में हिमाचल सरकार प्राकृतिक खेती को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दे रही है. प्रदेश के अधिक से अधिक किसानों को इसके लिए प्रेरित व प्रोत्साहित कर रही है. प्राकृतिक खेती शुरू करने के लिए प्रदेश सरकार ने सिर्फ अनुदान का ही प्रावधान नहीं किया है, बल्कि इस खेती से उगाई जाने वाली फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य भी घोषित किया है जो रासायनिक खेती से पैदा की गई फसलों के मुकाबले कहीं अधिक है.
प्रदेश सरकार के इन प्रयासों के परिणाम स्वरूप आज कई किसान प्राकृतिक खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं. हमीरपुर की ग्राम पंचायत बफड़ीं के गांव हरनेड़ के सभी किसानों ने प्राकृतिक खेती को अपनाने का संकल्प लिया है. अब यह गांव एक आदर्श गांव के रूप में उभरने लगा है. बता दें, गांव हरनेड़ के सभी 62 किसान परिवारों की लगभग 264 बीघा भूमि को 'प्राकृतिक खेती, खुशहाल किसान योजना' के तहत प्राकृतिक खेती के अंतर्गत लाने के लिए शुरुआती चरण में 26 किसानों को 2-2 दिन का प्रशिक्षण प्रदान करने के साथ किसानों को प्रशिक्षण के लिए कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर भी भेजा गया.
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वर्तमान मे गांव के 59 किसान परिवार लगभग 218 बीघा भूमि पर पूरी तरह प्राकृतिक खेती कर रहे हैं. किसान हर सीजन में केवल एक ही फसल उगाने की बजाय एक साथ कई फसलें उगा रहे हैं. गांव के प्रगतिशील किसान ललित कालिया ने बताया कि आत्मा परियोजना के अधिकारियों की प्रेरणा से उन्होंने पालमपुर में प्रशिक्षण प्राप्त किया और सबसे पहले 4 कनाल जमीन पर प्राकृतिक खेती शुरू की. उन्होंने कहा कि अब वह अपनी पूरी जमीन पर प्राकृतिक खेती ही कर रहे हैं. वह किसी भी प्रकार की रासायनिक खाद या केमिकलयुक्त कीटनाशक का प्रयोग नहीं कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि वह प्राकृतिक खेती के लिए बीजामृत, जीवामृत, द्रेकास्त्र, अग्निस्त्र और अन्य सामग्री स्वयं घर पर ही तैयार कर रहे हैं.
आत्मा प्रोजेक्ट के निदेशक डॉ. नितिन कुमार शर्मा ने बताया कि खरीफ सीजन में वह मक्की के साथ-साथ कोदरा, मंढल और कौंगणी जैसे मोटे अनाज, दलहनी फसलें जैसे-कुल्थ, माश और रौंगी, तिलहनी फसल के रूप में तिल और कचालू, अरबी, अदरक और हल्दी उगा रहे हैं. उन्होंने कहा कि रबी सीजन में वह गेहूं के साथ सरसों, चना और मटर इत्यादि भी लगा रहे हैं. इसके साथ ही कहा कि गांववासी अब जहरमुक्त खेती के साथ-साथ कई ऐसे पौष्टिक मोटे अनाज व अन्य पारंपरिक फसलों के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं जोकि लुप्त होने की कगार पर पहुंच गई थीं.
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उन्होंने कहा कि अब प्रदेश सरकार ने प्राकृतिक खेती से तैयार फसलों के लिए अलग से न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया है जो कि सामान्य दामों से काफी ज्यादा है. उन्होंने कहा कि अभी खत्म हो रहे खरीफ सीजन की मक्की को गांव हरनेड़ के किसानों ने 30 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचा है, जबकि पहले मक्की को सामान्यत प्रति किलो 18 से 20 रुपये तक ही दाम मिलता था. इसके साथ ही कहा कि इस प्रकार जिला हमीरपुर का यह छोटा सा गांव हरनेड़ प्राकृतिक खेती में एक आदर्श गांव बनकर उभर रहा है जो प्रदेश सरकार के प्रोत्साहन के कारण ही यह संभव हो पाया है.
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