अमेरिका में अराजकता, दिल्ली सीमा पर अराजकता, खेल है क्या?

क्या ये महज संयोग है कि भारत में 2014 से मोदी सरकार के बनने के बाद से असहिष्णु और फासिस्ट सरकार जैसे जुमलों का चलन बढ़ाया गया है?

Written by - Rakesh Pathak | Last Updated : Jan 8, 2021, 02:27 PM IST
  • अमेरिका में भीड़ ने जो लिखा वो इतिहास की कलंक कथा थी
  • दिल्ली को घेरे बैठे कुछ बिगड़ैल नवयुवकों के हाथों में भी तिरंगा है
अमेरिका में अराजकता, दिल्ली सीमा पर अराजकता, खेल है क्या?

नई दिल्ली: अमेरिका की संसद की प्राचीर पर 'ओल्ड ग्लोरी' (Old Glory) परचम को लहराते गुंडों का समूह चढ़ा और यूएस के लोकतंत्र के माथे पर कलंक लगा गया. मुझे लगता है देश के भीतर और दुनिया में भी अमेरिका के भीतर की ऐसी अराजक तस्वीरों को देखकर कई लोगों की आंखों में चमक उठी होंगी. अराजक तत्वों की भीड़ नारेबाजी करते हुए बेहद आक्रामक तरीके से वॉशिंगटन की सड़कों से गुज़री और फिर संसद परिसर कहे जाने वाले कैपिटल की सीढ़ियों से होते हुए भीतर दाखिल हुई.

भीड़ के हाथों में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) के समर्थन वाले पोस्टर-बैनर थे. तीखी नारेबाज़ी थी 'स्टॉप द स्टील' (Stop the Steal) यानि 'चोरी को रोको' ये अलग बात थी कि ये मवालियों और गुंडों की वो फौज थी जो खुद लोकतंत्र को कत्ल करने के लिए कैपिटल की दीवारों, गलियारों और सीढ़ियों पर चढ़ी बैठी थी.

दुनिया भर के कैमरों ने असंख्य नरमुंडों को वाशिंगटन के कैपिटल बिल्डिंग (Capitol Hill) के बाहर और भीतर मचलते और दहकते देखा. सबके हाथ में द ग्रेट अमेरिका का झंडा था. लेकिन भीड़ ने जो लिखा वो अमेरिका के इतिहास की कलंक कथा थी. जिसने 4 लोगों की बलि भी ली.

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तिरंगा हाथ में लो और जो मर्जी वो करो

अब दूसरी तस्वीर पर चले आइए. दिल्ली को घेरे बैठे असंख्य किसानों और खुद को किसान कहने वाले बिगड़ैल नवयुवकों के हाथों में भी तिरंगा है. देश का मान राष्ट्रध्वज. कहने को ये एक सत्याग्रह है. कहने को ये शांतिप्रिय आंदोलन है जो चल रहा है. लेकिन ये भी एक सच्चाई है कि इन्हीं किसानों की भीड़ में बैठे अराजक तत्व छक कर शराब पीते हैं. हुड़दंग करते है और उनसे सवाल पूछने वाले रिपोर्टर्स के साथ मारपीट करते हैं और महिला रिपोर्टरों से छेड़छाड़ तक करते हैं.

ट्रैक्टर में बैठकर जब खुद को किसान कहने वाले गुंडे जब हाथों में तिरंगा लेकर हुड़दंग करते अलग-अलग जगहों से दिल्ली के बॉर्डर की तरफ बढ़ रहे थे तो यकीन मानिए इनमें और वॉशिंगटन के कैपिटल बिल्डिंग में घुसे गुंडों में भेद कर पाना मुश्किल था.

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राष्ट्रध्वज से देश की जनता का आक्रोश बताने का नेरेटिव

खेल नैरेटिव सेट करने का है. याद करिए कि अमेरिका (America) में 'ब्लैक लाइफ मैटर्स'  के नाम पर जमकर हिंसा हुई थी. डोनाल्ड ट्रंप को जवाब देते नहीं बन रहा था. कोरोना को कंट्रोल करने में पूरी तरह से फेल रहनेवाले ट्रंप की हार में एक बड़ी वजह इस बेहद संवेदनशील मसले को सही और सक्षम तरीके से डील न कर पाना भी रहा था. पर इस बात को भी बड़ी संजीदगी और ईमानदारी के साथ कबूलने की ज़रूरत है कि ब्लैक लाइफ मैटर को लेकर जो भी हिंसक और उग्र आंदोलन हुए थे उसके पीछे antifa जैसे संगठन की बड़ी भूमिका थी.

ये वामपंथियों का मोर्चा है जो अतिवादियों का गिरोह है जो सबको पर उतरकर राष्ट्रवादी धारा के खिलाफ नरेटिव गढ़ने की कोशिश करता रहा है. ध्यान रखिए ब्लैक लाइफ मैटर (Black Life Matters) के आंदोलनों के दौरान भी वैसी ही हिंसा विरोध प्रदर्शनों के दौरान की गई थी जैसी कैपिटल बिल्डिंग पर कब्ज़ा करने की कोशिश करने वाले कथित ट्रंप समर्थकों ने की थी. वामपंथियों का ये संगठन कहां से ड्राइव होता है इसे बताने की जरूरत नहीं है विचारधारा के स्तर पर एक ही देश अमेरिका के लिए और उसकी राष्ट्रवादी धारा के लिए चुनौती बन रहा है.

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अमेरिका, भारत में जो हो रहा वो संयोग या प्रयोग?

तो क्या ये महज संयोग है कि जिस राष्ट्रवादी धारा से इस्लामिक जिहाद और चीन (China) के खिलाफ अमेरिका में ट्रंप शासन बिगुल फूंक रहा था, वहां एक धीरे धीरे एक नेरेटिव सेट कर ट्रंप को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है? और क्या ये महज संयोग है कि भारत में 2014 से मोदी सरकार के बनने के बाद से असहिष्णु और फासिस्ट सरकार जैसे जुमलों का चलन बढ़ाया गया है?

और क्या ये महज संयोग है कि नागरिकता कानून, एनआरसी (NRC) पर मुस्लिमो को विक्टिम बताने पर असफल होने के बाद अब किसान को विक्टिम बताने का नेरेटिव गढ़ा जा रहा है? और क्या इसे भी महज संयोग माने की शाहीन बाग़ से लेकर किसान आंदोलन तक के पीछे अतिवादी वाममोर्चा और उसके लोग ही दिखते हैं? याद रखिए भारत की राष्ट्रवादी सरकार भी इस्लामिक जिहाद और चीन से सीधी लड़ाई लड़ रही है.

इसे बेहद गंभीरता से समझने की जरूरत है कि जब हिंदुस्तान की सेना चीन के विस्तारवाद के खिलाफ एलएसी पर डटी है, उसी दौर में चीन को सजदा करने वाले संगठन देश के भीतर अराजकता और अस्थिरता की स्थिति बनाते हैं? सवाल ये है कि अंदर और बाहर के लोग एक दूसरे के लिए विचारधारा की वफादारी तो नहीं निभा रहे? एक बार फिर कहूंगा वामपंथियों और जिहादियों की विचारधारा उम्मा वाली ही है, ये राष्ट्रवाद नहीं वामवाद और उम्मावाद में ही निष्ठा रखते हैं देश टूटे, अशांत हो या मिट जाए इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता.

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