नई दिल्ली. आरबीआई द्वारा रेपो रेट में इजाफे के बाद देश के कई प्रमुख बैंकों ने ग्राहकों के लिए अपनी लोन दरों को बढ़ा दिया है. बैंकों के इस कदम से बढ़ती हुई महंगाई में आम जनता पर ईएमआई चुकाने का बोझ भी बढ़ने वाला है.
बता दें कि बीते 8 जून तो आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने रेपो रेट में इजाफे का ऐलान किया था. भारतीय रिजर्व बैंक ने बढ़ती हुए महंगाई को काबू में करने के लिए एक बार फिर से रेपो रेट में बढ़ोतरी करने का फैसला किया था. आरबीआई ने रेपो रेट में 0.5 फीसदी की इजाफा किया है, जिसके बाद रेपो रेट 4.9 फीसदी का हो गया है.
आरबीआई के इस फैसले से तमाम तरह के कर्ज जैसे होम लोन, पर्सनल लोन और वहान लोन का पहले के मुकाबले और अधिक महंगा होना तय माना जा रहा था. आरबीआई द्वारा रेपो रेट में इजाफे के ऐलान के ठीक अगले दिन यानी 9 जून से ही देश के कई प्रमुख बैंकों ने ग्राहकों के लिए लोन को महंगा करना शुरू कर दिया है.
आईसीआईसीआई, बैंक ऑफ बड़ौदा, पंजाब नेशनल बैंक और बैंक ऑफ इंडिया समेत कुछ बैंकों ने ग्राहकों के लिए लोन को महंगा कर दिया है.
बैंकों द्वारा किए जा रहे महंगे कर्ज के बीच आपके लिए यह समझना भी जरूरी हो जाता है कि आखिर रेपो रेट क्या है जिनके घटने और बढ़ने का सीधा असर हमारी जेब पर देखने को मिलता है. बात करते हैं रेपो रेट की
क्या है रेपो रेट
रेपो रेट वह दर होती है जिस पर वाणिज्यिक बैंक, देश के केंद्रीय बैंक से पैसा उधार लेते हैं. यहां वाणिज्यिक और केंद्रीय बैंक के अंतर को भी समझना जरूरी है. वाणिज्यिक बैंक वह बैंक होते हैं जहां हम अपने सामान्य बैंकिंग कामों के लिए जाते हैं. इन्हीं बैंकों में हमारा खाता होता है. और लोन आदि कामों के लिए भी हमारी निर्भरता इन्हीं बैंकों पर होती है.
भारतीय स्टेट बैंक, एचडीएफसी बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा जैसे बैंक हमारे देश में कॉमर्शियल बैंकों के कुछ उदाहरण हैं. वहीं केंद्रीय बैंक वह बैंक होता है जो देश में बैंकिंग व्यवस्था का संचालन करता है. देश की मौद्रिक नीति भी केंद्रीय बैंक के द्वारा ही तय की जाती है.
इन बैंकों में किसी का खाता नहीं होता है. यह बैंक वाणिज्यिक बैंकों को लाइसेंस प्रदान करने, उनकी निगरानी करने और उनको लोन देने जैसे काम करता है. जिस वजह से इसे बैंकों का बैंक भी कहते हैं. भारतीय रिजर्व बैंक हमारे देश का केंद्रीय बैंक ही है.
अब हम रेपो रेट पर वापस आते हैं. देश में जब महंगाई ज्यादा बढ़ती है तो उसे काबू में करने के लिए केंद्रीय बैंक रेपो रेट को बढ़ा देता है. अब आपके मन में यह सवाल जरूर उठा होगा कि आखिर रेपो रेट का महंगाई से क्या संबंध है?
दरअसल जब रेपो रेट को बढ़ाया जाता है तो वाणिज्यिक बैंको को आरबीआई से मिलने वाला लोन भी महंगा हो जाता है, जिस वजह से बैंक अपने ग्राहकों को भी महंगा लोन देते हैं. यानी यहां पर इकोनॉमिक्स का डिमांड एंड सप्लाई वाला नियम लागू होता है.
इसे आप आसानी से इस इस तरह भी समझ सकते हैं कि अगर देश में लोगों के पास पैसा कम है तो वे खरीददारी भी कम करेंगे. जिससे बाजार में सामान खरीदने वालों की संख्या घटेगी यानी बाजार में डिमांड घटेगी और जब डिमांड घटती है तो सप्लाई अपने आप बढ़ जाती है. तो इकोनॉमिक्स यानी अर्थशाष्त्र के नियम के अनुसार बाजार में जब भी सामानों की संख्या यानी सप्लाई ज्यादा होती है और खरीददार कम होते हैं तो कीमत अपने आप कम हो जाती है.
तो इस उदाहरण से समझ सकते हैं कि कैसे रेपो रेट बढ़ने से महंगाई घटती और बढ़ती है. और क्यों हमको मिलने वाला लोन महंगा हो जाता है.
रेपो रेट बढ़ने से होता है यह फायदा
हालांकि रेपो रेट बढ़ने से हमेशा केवल नुकसान ही नहीं होता है. रेपो रेट बढ़ने से एफडी जैसे बचत साधनों में निवेश करने वालों को फायदा होता है. रेपो रेट में इजाफे के बाद अक्सर ही यह देखा जाता है कि बैंक अपने ग्राहकों को एफडी पर ज्यादा ब्याज का फायदा देते हैं.
दरअसल रेपो रेट बढ़ने के बाद लोन लिए हुए ग्राहकों द्वारा बैंकों को ज्यादा ब्याज प्राप्त होता है. प्राप्त होने वाले इसी अधिक ब्याज के लाभ का एक हिस्सा बैंक अपने ग्राहकों को भी देता है. यानी जब बैंक के पास ब्याज का अधिक पैसा आता है तो वह भी अपने ग्राहकों को ब्याज के रूप में इसका लाभ देता है.
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