नानी के गांव में पानी की समस्या देख Rakesh Chandra ने बदल दी लोगो की ज़िंदगी

राकेश चंद्रा मोटिवेशनल स्पीकर, फ़िलोसोफ़र, लेखक और लाइफ कोच है. सफल होने के बाद छट पूजा के लिए जब वे अपने नानी के गाँव पहुँचे तो उन्हें पता चला कि नदी में पानी ही नहीं है और गाँव के एक हिस्से में पानी की व्यवस्था ही नहीं थी लोगो को पानी के लिए एक से डेढ़ किलोमीटर तक जाना पड़ता था.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : May 3, 2024, 10:41 PM IST
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नानी के गांव में पानी की समस्या देख Rakesh Chandra ने बदल दी लोगो की ज़िंदगी

नई दिल्लीः मानवता का जीता जागता मिसाल देखने को मिला बिहार के बारेव गांव ज़िला नवादा में जहां बचपन की यादों और नानी के दुलार को जीवंत करने लोगो की पानी की तकलीफ़ देखकर राकेश चंद्रा ने अपनी संस्था सृष्टि श्री के द्वारा गांव को पीने के लिए पानी की व्यवस्था कराने के लिए अब तक 15 बोरबेल लगवाया है. 

राकेश चंद्रा मोटिवेशनल स्पीकर, फ़िलोसोफ़र, लेखक और लाइफ कोच है. सफल होने के बाद छट पूजा के लिए जब वे अपने नानी के गाँव पहुँचे तो उन्हें पता चला कि नदी में पानी ही नहीं है और गाँव के एक हिस्से में पानी की व्यवस्था ही नहीं थी लोगो को पानी के लिए एक से डेढ़ किलोमीटर तक जाना पड़ता था. वहाँ के लोग 6-7 दिन तक नहा नहीं पेट थे . राकेश चंद्रा नानी के बहुत ही क़रीब थे उन्होंने नानी के घर पर रहकर ही बचपन में पढ़ाई की उस गाँव से राकेश चंद्रा को लगाव था जिस कारण उन्होंने सामाजिक हित में अब तक 15 बोरबेल लगवाये है जो अब तक 75% गांव को कवर करता है बाक़ी कार्य अभी भी जारी है . छट पूजा में विघ्न उत्पन्न ना हो इसीलिए बोरबेल के पानी से नदी के एक हिस्से में पानी भरा जाता है . अब गर्मी में भी लोग सब्ज़ी की फसल बोते है और गाँव आज ख़ुशहाली की ओर अग्रसर है .

1 मार्च 1977 को जन्मे डॉ. राकेश चंद्रा न केवल एक अंतरराष्ट्रीय प्रेरक वक्ता और लेखक हैं, बल्कि आर सी टॉक, आर के ओवरसीज, सीएच लाइफ साइंस प्राइवेट लिमिटेड, सृष्टि श्री ट्रस्ट, धन्यवाद फाउंडेशन और इंडिया एजुकेशन फाउंडेशन के डायरेक्टर भी हैं. बिहार के एक गांव में एक साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले राकेश के पिता एक सामाजिक कार्यकर्ता और किसान है, परंतु उनकी आकांक्षाएं उन्हें 1994 में बैंगलोर ले गईं. बिहार से अपनी यात्रा के दौरान ट्रेन के बाथरूम के पास सोने सहित कठिनाइयों का सामना करने के बावजूद, वे एक महत्वपूर्ण सामाजिक प्रभाव बनाने की अपनी खोज में दृढ़ रहे. 

चुनौतियों के आगे न झुकने का विकल्प चुनते हुए, उन्होंने छोटी उम्र से ही आत्म-प्रेरणा के दर्शन को अपनाया, जिससे न केवल खुद को बल्कि अपने आस-पास के लोगों को भी प्रेरणा मिली. बैंगलोर से बी. आर्क की डिग्री प्राप्त करने के बाद, उन्होंने 2001 में लोगों को शिक्षित करने और परामर्श देने का काम शुरू किया. 

आज तक, हज़ारों लोग उनके मार्गदर्शन से लाभान्वित हुए हैं, और लाखों लोग सोशल मीडिया और टेलीविज़न पर उनके प्रेरक भाषणों से सशक्त हुए हैं. डॉ. राकेश चंद्रा की कहानी सरल, दृढ़ संकल्प और दूसरों को ऊपर उठाने के लिए अथक समर्पण की कहानी है जो लाइफ कोच के रूप में मोटिवेशन की दुनिया में नये आयाम पे जा रहे है.

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