नई दिल्ली: पिछले कुछ वक्त से महिलाओं में गर्भाशय निकलवाने का ट्रेंड सामने आ रहा है. अब हेल्थ एक्सपर्ट्स ने इस बढ़ते ट्रेंड पर अपनी चिंता जाहिर की है. खास तौर पर भारत में काफी कम उम्र की महिलाओं के अपने गर्भाशय निकलवाने के कई केस सामने आ चुके हैं. इससे उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ पर काफी बुरा असर देखने को मिल रहा है.
हिस्टेरेक्टॉमी के ट्रेंड पर हेल्थ एक्सपर्ट्स ने जताई चिंता
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बुधवार को गर्भाशय निकलवाने (हिस्टेरेक्टॉमी) के बढ़ते ट्रेंड पर चिंता व्यक्त की है. विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में बहुत कम उम्र की महिलाओं में भी गर्भाशय निकलवाने के मामले बहुत अधिक सामने आ रहे हैं, जो उनके शारीरिक, सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य का बोझ डाल सकते हैं. भारत सरकार में डीडीजी अमिता बाली वोहरा ने कहा कि जब महिलाओं के स्वास्थ्य की बात आती है तो परिवार हमारे समाज में प्रमुख फैसले लेने वाले होते हैं. इसलिए परिवारों को ऐसे मुद्दों के बारे में जागरूक करने की जरूरत है ताकि महिलाओं को बेहतर चिकित्सा सलाह मिलने में मदद मिल सके.
ज्यादातर युवा महिलाएं निकलवा रहीं गर्भाशय
अमिता बाली वोहरा ने देश में अनावश्यक हिस्टेरेक्टॉमी के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए आयोजित कार्यक्रम में कहा कि ज्यादातर युवा महिलाएं गर्भाशय निकलवा रही हैं. इन महिलाओं को शिक्षित और मार्गदर्शन करने के लिए दिशानिर्देश होने चाहिए.
जागरूकता के लिए चलाया जा रहा कार्यक्रम
अमिता बाली वोहरा ने देश में अनावश्यक हिस्टेरेक्टॉमी के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए आयोजित कार्यक्रम में कहा कि ज्यादातर युवा महिलाएं गर्भाशय निकलवा रही हैं. इन महिलाओं को शिक्षित और मार्गदर्शन करने के लिए दिशानिर्देश होने चाहिए. यह कार्यक्रम राष्ट्रव्यापी अभियान 'प्रिजर्व द यूटरस' के हिस्से के रूप में आयोजित किया गया था.
क्या है कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य
'प्रिजर्व द यूटेरस' अभियान का मुख्य उद्देश्य महिलाओं और स्त्रीरोग संबंधी रोगों के प्रबंधन के आधुनिक और वैकल्पिक तरीकों के बारे में जागरूकता पैदा करना और हिस्टेरेक्टॉमी के प्रभाव के बारे में जागरूकता पैदा करना है ताकि महिलाएं सशक्त बने. रिपोर्ट के अनुसार, हिस्टेरेक्टॉमी यानी गर्भाशय निकलवाने के बाद कई महिलाएं पीठ दर्द, योनि स्राव, कमजोरी, यौन स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करती हैं. कम उम्र में गर्भाशय निकलवाने से हृदय रोग, स्ट्रोक और ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा अधिक बढ़ जाता है. इसके अलावा महिलाओं को मानसिक स्वास्थ्य की भी परेशानी होती है.
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