कोविड वैक्सीन की बूस्टर डोज लेने का बना रहे हैं प्लान? जरूर पढ़ें ये खबर

कोरोना वैक्सीन की बूस्टर डोज को लेकर लंदन के साइंटिस्ट ने दावा किया है कि इससे नुकसान ज्यादा और फायदा कम है. जर्नल में रिसर्च छपी है. भारत में भी वैक्सीन पर रिसर्च करने वाले बूस्टर ना लेने की सलाह दे रहे हैं. 2 हफ्ते में 15 लाख से ज्यादा लोगों ने इस डॉक्टर की सलाह सुनी.

Written by - Pooja Makkar | Last Updated : Oct 12, 2022, 05:02 PM IST
  • बूस्टर डोज- नुकसान ज्यादा, फायदा कम!
  • कोरोना वैक्सीन की अब कोई जरूरत नहीं?
कोविड वैक्सीन की बूस्टर डोज लेने का बना रहे हैं प्लान? जरूर पढ़ें ये खबर

नई दिल्ली: लंदन के मशहूर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. असीम मल्होत्रा ने कोरोना की वैक्सीन को लेकर अपनी राय बदल दी है. हाल ही में उन्होंने सबूतों के साथ यह जानकारी साझा की कि क्यों कोरोना वैक्सीन की बूस्टर डोज लेने की अब कोई जरूरत नहीं है. उनके इस शोध को यूट्यूब पर दो लाख लोग और ट्विटर पर 11 लाख लोग सुन चुके हैं.

कोरोना वैक्सीन की बूस्टर डोज से नुकसान!
वैक्सीन को लेकर डॉ. असीम मल्होत्रा का शोध जर्नल ऑफ इन्सुलिन रेजिस्टेंस नाम की पत्रिका में छपा है. इस रिसर्च में यह बताया गया है कि कोरोनावायरस इनकी बूस्टर डोज से होने वाले नुकसान आपको अस्पताल पहुंचा सकते हैं, जबकि अब कोरोनावायरस की बीमारी आपको अस्पताल पहुंचाएगी, इस बात की आशंका बेहद कम रह गई है.

डॉ. असीम मल्होत्रा ने 2021 में कोरोनावायरस वैक्सीन की दोनों दोस्त ली थी और वह लोगों को भी वैक्सीन लगवाने की सलाह दे रहे थे, लेकिन कुछ समय के बाद उनके पिता कैलाश चंद की अचानक हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई. डॉ. मल्होत्रा हैरान थे कि ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि उनके पिता बेहद फिट इंसान थे, इसके बाद डॉ. असीम ने वैक्सीन से होने वाले नुकसान पर विस्तृत रिसर्च करना शुरू किया.

डॉक्टर मल्होत्रा के रिचर्स में किया गया ये दावा
डॉक्टर मल्होत्रा के मुताबिक कोरोना वैक्सीन की वकालत करने वाले ड्रग रेगुलेटर असल में किसी ना किसी रूप में फार्मास्यूटिकल कंपनियों से जुड़े होते हैं. दुनियाभर में ड्रग रेगुलेटर को 60 फीसदी से ज्यादा फंड करने वाली भी फार्मा कंपनियां ही होती हैं. इसीलिए ट्रायल के बाद जो नतीजे सामने आते हैं, उन्हें तोड़ मरोड़ कर पेश किया जाता है. जैसे कि फायदों को बढ़ा चढ़ाकर और नुकसान को कम आंख कर बताया जाता है. हालांकि वैक्सीन की डीटेल रिसर्च करने के बाद यह समझ में आता है कि बहुत से लोगों को वैक्सीन की जरूरत ही नहीं है.

एम्स में भारत बायोटेक की कोरोना वैक्सीन को वैक्सीन पर रिसर्च करने वाले डॉक्टर संजय राय भी मानते हैं कि कुछ मामलों में वैक्सीन ने फायदा कम और नुकसान ज्यादा किया है. डॉक्टर राय के मुताबिक दूसरी लहर आते-आते भारत में 70 फीसदी से ज्यादा आबादी कोरोनावायरस से संक्रमित हो चुकी थी.

इसका मतलब यह हुआ कि उन्हें नेचुरल इंफेक्शन हुआ और उनके शरीर में कोरोनावायरस के इंफेक्शन के खिलाफ नेचुरल लड़ना यानी एंटीबॉडी बनाना भी सीख लिया और इस नेचुरल एंटीबॉडी से बड़ी कोई भी दवा कोई भी लैब नहीं बना सकती, इसीलिए कोरोनावायरस की बूस्टर डोज की जरूरत अब लगभग ना के बराबर है.

जितनी उम्र कम, वैक्सीन उतनी नुकसानदायक!
डॉक्टर राय के मुताबिक बेहद बूढ़े लोग चाहे, तो बूस्टर लगवा सकते हैं लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी सावधान किया है कि उम्र जितनी कम है, वैक्सीन उतना नुकसान कर सकती है. उसकी वजह यह है कि बच्चों और युवाओं में इम्यून सिस्टम बेहद सक्रिय होता है.

ऐसे में अगर किसी युवा को पहले से कोरोनावायरस का संक्रमण हो चुका है और उसके ऊपर से वह बूस्टर डोज भी लगवा लेता है तो उसके शरीर में हाइपर इम्यून रिस्पांस पैदा हो सकता है, जब शरीर के सेल्स आपस में लड़ने लग जाए. इसीलिए बूस्टर डोज लगवाने में बहुत लोगों को फायदा कम और नुकसान ज्यादा होने की आशंका बनी हुई है.

हालांकि कोरोनावायरस की बीमारी के बाद हार्ट अटैक के मामलों में दुनिया भर में इजाफा देखा गया है, लेकिन वैज्ञानिक तौर पर और पुख्ता तौर पर वैक्सीन को नकारने वाली कोई बड़ी तर्कसंगत रिसर्च अभी नहीं आई है. इसीलिए अगर आप भी कोरोनावायरस की बूस्टर डोज को लेकर असमंजस में है तो अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लें और अपने विवेक का इस्तेमाल भी करें.

भारत में अब तक 21 करोड़ 54 लाख 93 हजार बूस्टर डोज लगाई जा चुकी है और यह रफ्तार कोरोनावायरस की वैक्सीन से होने वाले नुकसान की आशंकाओं की वजह से ही काफी कम चल रही है. हालांकि लंदन से आई इस रिसर्च को बहुत आलोचनाएं भी झेलनी पड़ी है और कई फोरम पर वर्ल्ड हेल्थ काउंसिल में जारी की गई इस रिसर्च और प्रेजेंटेशन का भारी विरोध हुआ है.

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