CWG 2022: आखिर क्यों अंतर्राष्ट्रीय खेलों में सिल्वर जीतने वालों से ज्यादा खुश होते हैं ब्रॉन्ज विनर्स

Commonwealth Games 2022: बर्मिंघम में खेले जा रहे 22वें राष्ट्रमंडल गेम्स समाप्त हो गये हैं और भारतीय खिलाड़ियों ने 88 सालों के इतिहास का अपना सबसे बेहतरीन प्रदर्शन किया है. भारतीय टीम ने कॉमनवेल्थ गेम्स से तीरंदाजी और शूटिंग के खेल हट जाने के बावजूद 61 पदक जीते और पदकों के मामले में अपना चौथा बेस्ट प्रदर्शन किया.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Aug 9, 2022, 12:03 PM IST
  • ब्रॉन्ज जीतने वाले लगते हैं ज्यादा खुश
  • इस वजह से दुखी नजर आते हैं सिल्वर मेडलिस्ट
CWG 2022: आखिर क्यों अंतर्राष्ट्रीय खेलों में सिल्वर जीतने वालों से ज्यादा खुश होते हैं ब्रॉन्ज विनर्स

Commonwealth Games 2022: बर्मिंघम में खेले जा रहे 22वें राष्ट्रमंडल गेम्स समाप्त हो गये हैं और भारतीय खिलाड़ियों ने 88 सालों के इतिहास का अपना सबसे बेहतरीन प्रदर्शन किया है. भारतीय टीम ने कॉमनवेल्थ गेम्स से तीरंदाजी और शूटिंग के खेल हट जाने के बावजूद 61 पदक जीते और पदकों के मामले में अपना चौथा बेस्ट प्रदर्शन किया. ऐसे में अगर तीरंदाजी और शूटिंग के खेल शामिल होते तो इसमें कोई शक नहीं है कि भारत 2010 के कॉमनवेल्थ खेलों की सफलता से आगे भी निकल सकता था.

ब्रॉन्ज जीतने वाले लगते हैं ज्यादा खुश

समापन समारोह के बाद कॉमनवेल्थ में हिस्सा लेने वाले और पदक जीतने वाले खिलाड़ियों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर ट्रेंड हो रही हैं. इसमें खिलाड़ी पदक के साथ पोज देते और तिरंगे का साथ जीत का जश्न मनाते नजर आ रहे हैं. हालांकि इन तस्वीरों में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाले खिलाड़ी सिल्वर हासिल करने वालों की तुलना में ज्यादा खुश नजर आ रहे हैं. यह देखकर आप सवाल पूछ सकते हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है कि किसी भी अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट में सिल्वर जीतने वाला खिलाड़ी या टीम तीसरे नंबर पर रहने वाले खिलाड़ी या टीम से कम खुश क्यों नजर आती है. इसका जवाब मनोवैज्ञानिक है.

दरअसल सिल्वर जीतने वाला खिलाड़ी हमेशा टॉप पर आने का दावेदार होता है हालांकि फाइनल मैच उसकी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं जाता और इसी वजह से वो गोल्ड से चूक जाता है. वहीं ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाले खिलाड़ी को तीसरे पायदान को हासिल करने के लिये ही चुनौती पेश करनी पड़ती है और वो खुद को पहले ही रेस से बाहर मान चुका होता है लेकिन इसके बावजूद जब वो पदक जीतने में कामयाब होता है तो उसकी खुशी चेहरे पर झलकती है.

इस वजह से दुखी नजर आते हैं सिल्वर मेडलिस्ट

जबकि सिल्वर जीतने वाले खिलाड़ी की खुशी से ज्यादा उसके पहले पायदान को हासिल न कर पाने की निराशा उसके चेहरे पर नजर आती है. यही वजह है कि जब भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई खिलाड़ी सिल्वर जीतता है तो वो ब्रॉन्ज जीतने वालों से कम खुश नजर आता है.

उदाहरण के लिये बर्मिंघम खेलों में जब आप पदक तालिका देखते हैं और 22 गोल्ड के साथ 16 सिल्वर नजर आता है तो आपके मन में विचार उठता है कि अगर ये 16 सिल्वर गोल्ड में तब्दील हो जाते तो हम पदक तालिका में शायद पहले या दूसरे पायदान पर काबिज हो सकते थे. लेकिन आप यह विचार ब्रॉन्ज मेडल विजेता के लिये नहीं लाते हैं.

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