महाशिवरात्रि(Mahashivaratri) को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. लेकिन मूल बात ये है कि महाशिवरात्रि के दिन ही मोह और अहंकार में डूबे देवताओं और धरती के प्राणियों को शिव तत्व का ज्ञान प्राप्त हुआ था. उन्हें इस समस्त सृष्टि के कारण तत्व की अनुभूति हुई थी.
परमपिता आदिदेव सदाशिव ने उत्पन्न की सृष्टि
संपूर्ण ब्रह्मांड सहित इस सृष्टि का निर्माण आदिदेव सदाशिव के संकल्प मात्र से हुआ था. उन्होंने अपने अर्द्धांग(आधे अंग) से जगदंबा को प्रकट करके ब्रह्मांड को उत्पन्न किया. बाद में इस ब्रह्मांड में सृष्टि की रचना और निर्माण का कार्य ब्रह्मा को दिया गया और पालन का कार्य श्री हरि विष्णु को.
सदाशिव और जगदंबा का आदेश प्राप्त करके दोनों अपने कार्य में तल्लीन हो गए. दोनों को अपना कार्य करते हुए लाखों वर्ष बीत गए. जिसके बाद संपूर्ण सृष्टि का यह स्वरुप सामने आया. जिसमें समुंदर, धरती, तारे, जीव जगत आदि सब कुछ था.
ब्रह्मा इस सृष्टि के रचनाकार थे और विष्णु पालनकर्ता. दोनों अपने दायित्वों का निर्वाह भली भांति कर रहे थे. लेकिन जब सृष्टि तैयार हो गई और उसका वृहत् स्वरुप दिखाई देने लगा तो ब्रह्मा और विष्णु के मन में अहंकार आने लगा.
दोनों के बीच छिड़ गया विवाद
ब्रह्मा और विष्णु में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है? ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी. इसलिए वह स्वयं को श्रेष्ठ मानते थे. भगवान विष्णु का कहना था कि रचना करने से ज्यादा कठिन है पालन करना. वह सृष्टि के पालनकर्ता हैं इसलिए वह ब्रह्मा से श्रेष्ठ हैं.
दोनों देवताओं के बीच विवाद बढ़ गया. ये विवाद इतना बढ़ा कि सृष्टि का कार्य प्रभावित होने लगा.
ब्रह्मा और विष्णु के झगड़े से सृष्टि खत्म होने का खतरा पैदा हो गया
ब्रह्मा और विष्णु दोनों को अहंकार ने घेर लिया था. दोनों के विवाद ने इतना गंभीर रुप ले लिया कि दोनो एक दूसरे पर प्रहार करने पर उतारु हो गए और बनी बनाई सृष्टि के नष्ट होने का खतरा पैदा हो गया.
इस विवाद को सुलझाने के लिए आखिरकार सृष्टि को उत्पन्न करने वाले सदाशिव को दखल देने के लिए आना पड़ा.
धरती पर प्रकट हुआ महाज्योतिर्लिंग
ब्रह्मा और विष्णु के बीच का विवाद इतना बढ़ गया कि दोनों ने एक दूसरे पर प्रहार कर दिया. लेकिन तभी उन दोनों के बीच एक विशाल ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ. जिसका तेज संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त था. इस महाज्योतिर्लिंग का आदि(शुरुआत) और अंत दिखाई नहीं दे रहा था.
ब्रह्मा और विष्णु के एक दूसरे पर किए गए शस्त्र प्रहार इस ज्योतिर्लिंग से टकराकर विफल हो गए. वह दोनों इस महान ज्योतिर्लिंग को देखकर स्तंभित(आश्चर्यचकित) रह गए. दोनों ने इस ज्योतिर्लिंग का आदि और अंत जानने का निश्चय किया.
ब्रह्मा बने हंस और विष्णु बने वाराह
ज्योतिर्लिंग का पता लगाने के लिए ब्रह्मा ने हंस का रुप धारण किया और अंतरिक्ष में ज्योतिर्लिंग के सिरे का पता लगाने के लिए निकल पड़े. उधर विष्णु जी वाराह(शूकर) का रुप धारण करके उस महान लिंग का पता लगाने के लिए नीचे की तरफ बढ़े. लेकिन दोनों ने पूरी कोशिश करने के बाद भी महाज्योतिर्लिंग का आदि और अंत तलाश नहीं कर पाए. हार थक के दोनों अपनी पुरानी जगह पर वापस लौटे.
ब्रह्मा ने किया सृष्टि का पहला अपराध
लौट कर आने के बाद श्रीहरि विष्णु ने अपने वाराह स्वरुप का त्याग किया और वास्तविक रुप धारण करके बोले कि मुझे इस महाज्योतिर्लिंग के आदि यानी शुरुआत के बारे में कुछ भी पता नहीं चला. मैं इसे तलाश करने के लिए जितना नीचे चलता गया यह ज्योतिर्लिंग उतना ही गहरा होता गया. मुझे इसका सिरा दिखाई नहीं दिया.
विष्णु जी की इस बात को सुनकर ब्रह्मा के मन में कपट आ गया. उन्होंने विष्णु जी पर हावी होने के लिए झूठ का सहारा लिया. ब्रह्मा ने कह दिया कि उन्होंने ज्योतिर्लिंग के उपरी सिरे के बारे में पता लगा लिया है. वह हंस का रुप धारण करके ज्योतिर्लिंग के उपर तक गए थे.
ब्रह्मा ने यह झूठ बोलने का साहस इसलिए किया. क्योंकि उन्हें लगता था कि उस समय सृष्टि में उनके तथा विष्णु के अतिरिक्त कोई और नहीं है.
प्रकट हुए देवाधिदेव और ब्रह्मा को दंडित किया
ब्रह्मा का झूठ विष्णु मान गए. लेकिन सृष्टिकर्ता ने इसे स्वीकार नहीं किया. वह ज्योतिर्लिंग सदाशिव के रुप में बदल गया और उन्होंने ब्रह्मा को झूठ बोलने के लिए ताड़ना दी. सदाशिव ने ब्रह्मा और विष्णु के बीच के विवाद को शांत करते हुए बताया कि तुम दोनों में विष्णु श्रेष्ठ हैं. क्योंकि उन्होंने असत्य का आश्रय नहीं लिया.
सदाशिव ने ब्रह्मा को प्रताड़ित किया और उनके शरीर से भैरव प्रकट हुए. जिन्होंने ब्रह्मा का झूठ बोलने वाला मुख उनके शरीर से अलग कर दिया. जिसके बाद पांच मुखों वाले ब्रह्मा सिर्फ चार मुखों वाले ही रह गए.
यही नहीं महादेव सदाशिव ने ब्रह्मा को श्राप भी दिया कि उनकी पूजा कहीं भी नहीं की जाएगी. लेकिन श्रीहरि को घर घर में पूजा जाएगा.
सृष्टिकर्ता और पालनकर्ता के बीच विवाद का बंटवारा करके सृष्टि को बचाने के लिए महादेव ने जिस दिन धरती पर अपनी ज्योति का प्राकट्य किया था. वह महाशिवरात्रि(Mahashivaratri) का ही दिवस था. इसके पहले दुनिया में कोई भी शिव तत्व के बारे में नहीं जानता था.
सदाशिव के इसी दिन अवतरित होने के बाद दुनिया को गूढ़ सनातन शिव रहस्य के बारे में ज्ञात हुआ. इसी दिन की याद में महाशिवरात्रि मनाई जाती है.