नई दिल्ली: होली तो हर कोई मनाता है. लेकिन क्या कभी सोचा है कि इस त्योहारों के पीछे रंग गुलाल और पकवानों का क्या उद्देश्य है?
शरद ऋतु का आखिरी त्योहार
होली का त्योहार शरद ऋतु के विस्थापन और वसंत ऋतु के आगमन के समय मनाया जाता है. ये शरद ऋतु का अंतिम त्योहार भी है. इसके बाद चैत्र नवरात्रि आती है, जिसके बाद हिंदुओं के सभी बड़े पर्व त्योहार त्योहार सावन माह अर्थात् अगस्त के बाद शुरू होते हैं. इन चार- पांच माह में कोई भी त्योहार आने वाला नहीं, केवल शादी -विवाह, और पारम्परिक उत्सवों को छोड़कर.
पकवानों और होली का संबंध
शरद ऋतु में मानव शरीर में पित्त का प्रकोप तीव्र होता है. इस कारण भूख अच्छी लगती है, जो भी आप कुछ खाते-पीते हैं सब हजम हो जाता है, शरद ऋतु में कमजोर व्यक्ति भी मोटा हो जाता है, जबकि गर्मी में स्वस्थ्य व्यक्ति भी दुबला दिखाई देने लगता है.
क्योंकि गर्मी के दिनों में शरीर में वात का संचय होने बढ़ता है. ये वात सभी रोगों का राजा है , बिना वात के शरीर में कोई भी रोग नहीं होता है. सर्दियों में ही दशहरा, दीपावली , होली आती है. इन सभी त्योहारों में देशी घी, मिठाईयां, मालपुए, गुझिया, गुलगुले, सोंठ, तुलसी, मेथी व गोंद के लड्डू , छेना , खोया , हलुआ, उडद , सोया - मेथी के परांठे आदि खूब खाये जाते हैं. क्योंकि इन सबमें घी व तेल का आधिपत्य होता है. जो कि वात का शमन करने में विशेष कार्य करता है. इसी कारण हमारी संस्कृति में इन त्योहारों पर तरह -तरह के व्यंजन व पकवान खाने की परम्परा है. क्योंकि यह आसानी से पच जाते हैं.
उबटन और मालिश का महत्व
होलिका दहन के मौके पर शरीर पर हल्दी और सरसों तेल का उबटन लगाने की परंपरा है.
शरद ऋतु में तेल की मालिश, सरसों के उबटन को मलने और व्यायाम करने से वात रोगों के निदान में मदद मिलती है.
शिशिर ऋतु (माघ -फाल्गुन ) में कफ का संचय होना शुरू हो जाता है जिसका प्रकोप वसंत ऋतु ( चैत्र-वैशाख ) में दिखाई पड़ने लगता है, इसीलिए इस ऋतु में सामान्य या गर्म पानी से स्नान किया जाता है.
होली में नदी, नहर या तालाब के किनारे रहने वाले लोग इस दिन गाय-भैसों को भी खूब नहलाते है.
सर्दी के ऋतु में सोने के पात्र में या किसी जल पात्र में सोने के आभूषण डालकर उसका जल ग्रहण करने से कफ शान्त रहता है.
आयुर्वेद के अनुसार भोजन के तुरंत बाद कफ की उत्पत्ति होती है. भोजन पचते समय पित्त का प्रकोप होता है और भोजन पचने के बाद वायु का प्रकोप आरम्भ हो जाता है. इन्हीं कारणों हमारे देश में भोजन के तुरंत बाद पान खाने की प्रथा है. जिससे कफ को शांत रखा जा सके.
होली पर कोई कीचड़ लगाए तो मना मत करें
होली के मौके पर मिट्टी, कीचड़ और रंगों को लगाने के पीछे भी कारण हैं. हमारे देश की मिट्टी के अंदर सभी प्रकार के सूक्ष्म पोषक तत्व मौजूद होते है, यह बात हमारे पूर्वजों को जीव-जंतुओं को भली-भांति पता था. शायद यही वजह है कि गाय, बैल, भैंस अपनी सींग से मुट्ठी कुरेदकर अपने सिर पर डालते हैं. अपने पैरों से मिट्टी कुरेदकर अपने शरीर के ऊपर फेंकते हैं. भैंस, हाथी, सूअर, आदि कई जानवर इन्हें कितना भी नहला-धुला दीजिये पर यह या तो अपने ऊपर मिट्टी डालेंगे या कीचड़ में लोटेंगे. गौरैया जैसी चिड़िया धूल में खेलती है. कई बार बंदरों को तुलसी , पीपल , नीम के पेड़ के नीचे की मिट्टी खाते देखा है , क्योंकि बन्दर कभी बीमार नहीं होता.
इसलिए होली के दौरान मिट्टी का प्रयोग हमें स्वस्थ बनाता है. मिट्टी हमारे शरीर के ताप को नियंत्रण करने, रोम-छिद्रों को खोलने व दूषित तत्वों को बाहर निकाल देता है.
होली के मौके पर रंगों का है अपना महत्व
रंग भी हमारे जीवन के लिए बेहद अहम हैं. बशर्ते उनमें खतरनाक केमिकल नहीं मिला हुआ हो. प्राकृतिक तरीके से तैयार रंग भी हमारे शरीर में मिट्टी की तरह औषधि का कार्य करते हैं.
लाल रंग: लाल रंग शरीर पर डालने से स्नायु तंत्र को गर्मी प्रदान मिलती है, शरीर की ऊर्जा बढ़ती है, वात व कफ रोगों में लाभकारी है.
हरा रंग: हरा रंग मानसिक प्रसन्नता के साथ मांसपेशियों और स्नायुतंत्र को स्वस्थ्य रखता है. यह बुखार, लीवर , किडनी में सूजन, त्वचा सम्बंधित रोगों, फोड़ा -फुन्सी, दाद, आंखों के रोगों, डायबिटीज, सूखी खांसी, जुकाम, बवासीर, ब्लड प्रेशर, आदि में लाभप्रद है.
पीला रंग: पेट के रोगों में लाभकारी होता है.
नारंगी रंग: यह मानसिक और इच्छाशक्ति बढ़ाने वाला रंग है. नारंगी रंग कफ सम्बंधित रोग, खांसी, बुखार, निमोनिया, सांस से सम्बंधित रोग, पेट में गैस, हृदय रोग, गठिया, खून की कमी , माँ के स्तनों में दूध की वृद्धि भी करता है.
आसमानी रंग: यह पित्त विकारों में लाभ करता है.
नीला रंग: शीतलता प्रदान करने वाला तथा कब्ज , अनिद्रा , ल्यूकोरिया में लाभकारी होता है.
इस प्रकार यह विभिन्न रंग हमारे शरीर के तंत्रों को मजबूती प्रदान कर हमें स्वस्थ्य रखते हैं. बस ध्यान रखें कि रंगों में किसी तरह का केमिकल नहीं मिला हुआ हो. वो प्राकृतिक तरीकों से तैयार किए गए हों.
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