परमात्मा से मिलकर संपूर्ण हो जाइए, तभी मिलेगा असली आनंद

हम सभी अपने आप में अधूरापन या खालीपन सा महसूस करते हैं. यही हमारे दुख का कारण भी होता है, लेकिन इसका समाधान हम बाहरी सुखों में तलाश करते हैं. लेकिन क्या ये हमारी अपूर्णता का स्थायी समाधान है.  

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Feb 1, 2020, 06:06 PM IST
    • क्यों हम अपने अंदर खालीपन का एहसास करते हैं
    • क्या है इस अधूरेपन का समाधान
    • खालीपन का समाधान बाहर तलाश करना असंभव
    • परमात्मा से मिले बिना पूर्णता संभव नहीं
    • परिपूर्ण परमात्मा से मिलकर ही हम हासिल कर सकते हैं पूर्णता का आनंद
परमात्मा से मिलकर संपूर्ण हो जाइए, तभी मिलेगा असली आनंद

खाली घड़े को नदी में डुबोएं जब तक घड़ा खाली रहेगा उसमें से आवाज आती रहेगी लेकिन जैसे ही घड़ा भर जायेगा आवाज आनी बंद हो जाएगी. अब चाहे वो सदियों तक नदी में पड़ा रहे उसमें से कोई आवाज आने वाली नहीं हैं.

कच्चे घी को कड़ाहे में डालकर आग पर रख दें. जब तक घी कच्चा रहेगा तब तक आवाज आती रहेगी जैसे ही घी सिद्ध हो जाएगा आवाज आनी बंद हो जाएगी. अब वह आग पर रखे-रखे पूरी तरह भस्म ही क्यों न हो जाए पर उसमें से आवाज नहीं आएगी. सिद्ध घी में कच्ची पूरी डालें जब तक पूरी कच्ची रहेगी तब तक फड़फड़ाती रहेगी, आवाज करती रहेगी. जैसे ही पूरी सिद्ध हो जाएगी उसका भड़भड़ाना, फड़फड़ाना बंद हो जाएगा.

उसी प्रकार जब तक मनुष्य आधा-अधूरा होता है काल की कढ़ाई पर चढ़ा हुआ, कर्म के घी में पड़ा हुआ स्वभावतः बस फड़फड़ाता और बडबड़ाता रहता है. जैसे ही सिद्ध (परिपक्व) होता है शांत हो जाता है.

यही विशेष गुण ईश्वर का है, ग्रहण करने योग्य ईश्वर खुद भी परम शांत हैं और अपने भक्तों को भी परम-शांति देने वाले हैं. पूर्णता में ही अलौकिक आनंद है. पूर्णता तो उसी से मिलेगी जो स्वयं पूर्ण है. 

इस भाव की सटीक व्याख्या वृहदारण्यक उपनिषद के इस श्लोक में की गई है- 

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥ 

अर्थ: वह परब्रह्म परमात्मा सभी प्रकार से सदा सर्वदा परिपूर्ण है. यह जगत भी उस परब्रह्म से पूर्ण ही है, क्योंकि यह पूर्ण उस पूर्ण पुरुषोत्तम से ही उत्पन्न हुआ है. इस प्रकार परब्रह्म की पूर्णता से जगत पूर्ण होने पर भी वह परब्रह्म परिपूर्ण है.  उस पूर्ण में से पूर्ण को निकाल देने पर भी वह पूर्ण ही शेष रहता है.

अपने अधूरेपन या खालीपन को दूर करके पूर्णता को प्राप्त करना है तो परिपूर्ण परमात्मा में स्वयं को लीन करिए. उसके अतिरिक्त इस संसार में कुछ भी पूर्ण नहीं है.

एक बार जिसने इस पूर्णता का आनंद उठा लिया उसे दुनिया का हर रस फीका लगेगा.   

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