नई दिल्लीः चंद्र !!!! प्रजापति दक्ष की दहाड़ से सभा सन्न हो गई. क्रोधित प्रजापति अपने सिंहासन से नीचे उतर आए अपराधियों की तरह खड़े चंद्र को धिक्कार भरी नजरों से देखा. कुछ पल के ही मौन के बाद वह फिर से गरजे, तुमने मेरी 27 पुत्रियों के साथ छल किया?
इतना साहस तुम्हें कैसे आया? क्या तुम नहीं जानते, मैं प्रजापति हूं. तुम्हें यज्ञ का भाग मेरे ही कारण मिलता है. आकाश में दमक रही तुम्हारी दीप्ति मेरे ही आदेश से है. फिर भी तुमने ऐसा किया? तुमने क्यों मेरी अन्य पुत्रियों को दुख दिया.
चंद्र पर क्रोधित थे दक्ष
आकाश में स्वच्छ चांदनी फैलाने वाला चंद्रमा आज दक्ष की सभा में अपराधी बनकर खड़ा था. एक तरफ दक्ष पुत्री रोहिणी अपने पिता के इस व्यवहार पर शोक कर रही थी तो अन्य 26 चंद्र पत्नियां भी दूसरी ओर बिलखती खड़ी थीं. सभा में खुसुर-फुसुर हो रही थी, आखिर चंद्र और रोहिणी ने किया क्या है, क्या अपराध है इनका?
दरबारी ये प्रश्न एक-दूसरे से कर ही रहे थे कि इतने में चंद्र ने साहस बटोर कर कहा-
मैंने कोई अपराध नहीं किया है पिता प्रजापति. मैंने सिर्फ प्रेम किया है. मैं रोहिणी से प्रेम करता हूं.
यह था दक्ष के क्रोध का कारण
दक्ष ने दांत भींचते हुए कहा- क्या कहा तुमने, प्रेम? क्या तुम भूल गए कि रोहिणी के अतिरिक्त मेरी 26 पुत्रियां भी तुम्हारे प्रेम की अधिकारी थीं? तुम्हारा प्रेम एक के प्रति नहीं हो सकता. चंद्र ने कहा- हां वे मेरी पत्नियां हैं, लेकिन मेरा प्रेम रोहिणी से है. दक्ष ने रोहिणी से चंद्र को समझाने के लिए कहा- लेकिन चंद्र ने एक बार फिर कह दिया- आप अपनी पुत्रियों का विवाह मुझसे कर चुके हैं, लेकिन उन्हें प्रेम देने का अधिकार मेरा है. अधिकार की बात सुनकर दक्ष बौखला उठे.
तुम मेरे सामने अधिकार की बात करते हो. ये बड़बोला पन इसी रूप पर है न, ठीक है, मैं तुम्हारा यह रूप ही छीनता हूं. जाओ चंद्र मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि आज से तुम्हारा नाश होने लगेगा. तुम क्षय हो जाओगे. मैं तुम्हारा अस्तित्व ही समाप्त करूंगा. तुम्हारे भीतर मेरे क्रोध की अग्नि जलेगी जो तुम्हें राख कर देगी. दक्ष ने मंत्रों से शब्दों को भेदकर चंद्रमा को श्राप दे दिया. सन्न सभा के बीच चंद्र मूर्छित होकर गिर पड़े.
चंद्रमा को मिला श्राप तो महादेव ने दी मुक्ति
चंद्रमा क्षयरोग से ग्रस्त होकर धूमिल हो गए. उनकी दीप्ति जाती रही. ये देखकर ऋषि-मुनि परेशान हुए और ग्रहमंडल में उछल-पुथल हो गई. तब ब्रह्मदेव ने चंद्र के जीवनदान का उपाय बताया. उन्होंने रोहिणी से कहा- निराश मत हो. तुम दोनों का यह कष्ट संसार के लिए कल्याण का मार्ग बनेगा.
तुम और चंद्र प्रभास क्षेत्र जाओ, वहां शिवलिंग बनाकर प्रदोष व्रत का पालन करो. हर माह कि त्रयोदशी को प्रदोष व्रत कहते हैं. चंद्र ने ब्रह्म देव की बात मानी और प्रभास क्षेत्र (जिसे आज सोमनाथ कहते हैं) में तप किया. महादेव ने इस व्रत और तप से प्रसन्न होकर चंद्र को न सिर्फ आरोग्य का वरदान दिया, बल्कि उन्हें अपने शीष पर भी धारण किया.
2021 का पहला प्रदोष व्रत आज
2021 की शुरुआत के साथ आज नए साल का पहला प्रदोष व्रत है. हालांकि हिंदू पंचांग के अनुसार यह पौष माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी है. एक माह में दो त्रयोदशी (शुक्ल व कृष्ण पक्ष) की होती हैं. दोनों की ही अपनी मान्यताएं हैं.
चंद्रमा ने प्रदोष व्रत का पहले पालन कर संसार को इस व्रत का महत्व सिद्ध करके दिखाया था. सभी तरह के दोष मिटाने वाला यह प्रदोष व्रत कलुयग के इस कलिकाल के लिए अति मंगलकारी है. चंद्र देव की इस पावन कथा के पठन और श्रवण से आरोग्य और उन्नति का लाभ होता है. ऊर्जा और सकारात्मकता बनी रहती है.
प्रदोष व्रत में ऐसे करें पूजन
इस दिन सुबह स्नान करने के बाद भगवान शिव का अभिषेक करें. पंचामृत का पूजा में प्रयोग करें. धूप दिखाएं और भगवान शिव को भोग लगाएं. इसके बाद व्रत का संकल्प लें. फिर शिव चालीसा और शिव मंत्र का जाप करें.
भगवान शिव को शमी, बेल, चावल, धूप, दीपक, फल और सुपारी चढ़ाएं. इसके बाद शिव मंत्र ‘ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः’ का जाप करें. यह मंत्र अतिफलदायी होता है.
प्रदोष व्रत 10 जनवरी, रविवार को शाम 04 बजकर 52 मिनट पर प्रारंभ होगा और 11 जनवरी, सोमवार को दोपहर 02 बजकर 32 मिनट पर समाप्त होगा.
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