राम शब्द 'रा' (रकार) 'म' (मकार) से मिलकर बना है. इसमें से 'रा' शब्द अग्नि का स्वरूप है यह हमारे दुष्कर्मों का दाह करता है. वहीं 'म' जल तत्व का प्रतीक है. जल आत्मा की जीवात्मा पर विजय का कारक है. इस प्रकार पूरे तारक मंत्र "श्रीराम जय राम जय जय राम" का अर्थ है शक्ति से परमात्मा पर विजय.
'राम' शब्द का यौगिक स्वरुप
योग शास्त्र में 'रा' वर्ण को सौर ऊर्जा का कारक माना गया है. यह हमारी रीढ़ रज्जु के दायीं ओर स्थित पिंगला नाड़ी में स्थित है. जहां से शरीर में पौरुष ऊर्जा का संचार होता है. वहीं 'म' वर्ण को चंद्र ऊर्जा का कारक अर्थात् स्त्रीलिंग माना गया है. यह ऊर्जा रीढ़ रज्जु के बायीं ओर स्थित इड़ा नाड़ी में प्रवाहित होती है.
इसीलिए श्वास और निःश्वास तथा निरंतर रकार 'रा' और मकार 'म' का उच्चारण करते रहने के कारण दोनों नाड़ियों में प्रवाहित ऊर्जा में सामंजस्य बना रहता है.
पापों को भस्म करता है 'राम' का उच्चारण
अध्यात्म विज्ञान में माना गया है कि जब व्यक्ति 'रा' शब्द का उच्चारण करता है तो इसके साथ-साथ उसके आंतरिक पाप बाहर आ जाने के कारम अंतःकरण निष्पाप हो जाता है. अभ्यास में भी 'रा' को इस प्रकार उच्चारित करना होता है कि पूरी श्वांस बाहर निकल जाए. 'रा' के उच्चारण से शरीर में रिक्तता का अनुभव होता है. इस स्थिति में पेट बिल्कुल पिचक जाता है. 'रा' का केवल उच्चारण मात्र ही नहीं करना है. इसे लंबा खींचना है रा...s...s...s और फिर 'म' का उच्चारण करें. 'म' शब्द बोलते ही दोनों होठ स्वतः एक ताले के समान बंद हो जाते हैं और इस प्रकार वाह्य विकार के पुनः अंतःकरण में प्रवेश पर बंद होठ रोक लगा देते हैं.
राम नाम अथवा मंत्र जपते रहने से मन और मस्तिष्क पवित्र होते हैं और व्यक्ति अपने पवित्र मन में परब्रह्म परमेश्वर के अस्तित्व को अनुभव करने लगता है. घोर कलिकाल में राम नाम का उच्चारण मात्र दैहिक, दैविक और भौतिक सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति दिलाता है.