Navratri special: माता का अद्भुत तीर्थस्थल, जहां रक्त ही है आशीर्वाद

ये शक्तिपीठ सतयुग से असम में स्थापित है. सतयुग में इस मंदिर के कपाट सतयुग में हर 16 साल में. द्वापरयुग में हर 12 साल में, त्रेतायुग में हर 7 साल में बंद हो जाता था लेकिन अब कलियुग में मंदिर के कपाट हर साल तीन से चार दिन के लिए बंद हो जाते है. सतयुग, त्रेतायुग और द्वापयुग में तो मंदिर के कपाट खुद ब खुद  बंद हो जाया करते थे लेकिन अब मंदिर के कपाट बंद करने पड़ते हैं.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Oct 23, 2020, 03:18 PM IST
    • माता सती के 51 शक्तिपीठों मे से एक है कामाख्या शक्तिपीठ
    • असम के गुवाहाटी में स्थित शक्तिपीठों को महापीठ कहा जाता है
    • इस शक्तिपीठ के साथ हजारों रहस्य सदियों से जुड़े रहे हैं
Navratri special: माता का अद्भुत तीर्थस्थल, जहां रक्त ही है आशीर्वाद

नई दिल्लीः संसार का सृजन शिव-शक्ति यानि की पुरुष और स्त्री के मिलन से हुआ है. इसका रहस्य का उद्घाटन खुद भगवान शिव ने किया था. भगवान शिव ने अपने अर्द्धनारीश्वर रूप मं प्रकट होकर शिव-शक्ति के सह अस्तित्व का ज्ञान भी संसार को दिया था. उन्होंने संसार को बताया कि शक्ति या स्त्री तत्व संसार में जागृत अवस्था में हमेशा  विद्यमान है जबकि शिव यानि पुरुष तत्व सुशुप्त अवस्था में रहता है.

शक्ति मस्तिष्क है तो शिव हृदय. शक्ति के इसी जागृत अवस्था का बोध हमें माता सती के शक्तिपीठों और उनकी दस महाविद्याओं के रूप में होता है. माता सती के 51 शक्तिपीठों मे से एक है कामाख्या शक्तिपीठ. असम के गुवाहाटी में स्थित शक्तिपीठों को महापीठ कहा जाता है. इस शक्तिपीठ के साथ हजारों रहस्य सदियों से जुड़े रहे हैं.

माता का रक्त ही आशीर्वाद

ये शक्तिपीठ सतयुग से असम में स्थापित है. सतयुग में इस मंदिर के कपाट सतयुग में हर 16 साल में. द्वापरयुग में हर 12 साल में, त्रेतायुग में हर 7 साल में बंद हो जाता था लेकिन अब कलियुग में मंदिर के कपाट हर साल तीन से चार दिन के लिए बंद हो जाते है. सतयुग, त्रेतायुग और द्वापयुग में तो मंदिर के कपाट खुद ब खुद  बंद हो जाया करते थे लेकिन अब मंदिर के कपाट बंद करने पड़ते हैं. इन दिनों मंदिर से थोड़ी दूर बहती ब्रहमपुत्र नदी के पानी का रंग लाल हो जाता है.

 

मान्यता है कि इन तीन दिनों तक माता को राजस्वला यानि मासिक धर्म आता है. माता की योनि से निकलने वाले खून से ही नदी के पानी का रंग लाल हो जाता है. इतना ही नहीं माता के रक्त  से भीगा कपड़ा ही यहां माता के प्रसाद के तौर पर भक्तों को दिया जाता है. जिसे भक्त माता का आशीर्वाद मानते हैं. दरअसल माता सती के देह त्याग के बाद जब भगवान शंकर उनको लेकर धरती का विनाश कर रहे थे तो भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उनके शरीर के टुकड़े कर 51 हिस्सों में बांट दिया. इन 51 पीठों को माता के  शक्तिपीठ कहा जाता है. असम में माता की योनि गिरी जहां कामाख्या शक्तिपीठ बनाया गया. अब माता की जागृत अवस्था की वजह से ही यहां मासिक धर्म जैसा रहस्य भक्तों को दिखता है.

कामदेव को मिला रूप तो कहलाया कामरूप क्षेत्र

माता के रक्त और पशुओ की बलि का रक्त इस मंदिर की प्रसिद्धी की मुख्य वजह है. यहां तंत्र साधना के लिए पास में बने श्मशान में तांत्रिक अघोर क्रियाएं करके सिद्धि हासिल करते हैं. माता जागृत रूप में अपने सभी भक्तों की मनोकामना पूरी करती हैं. अपने रहस्यों के साथ ये स्थान प्रेम का भी अलौकिक रहस्य अपने अंदर छुपाए हुए है कहते हैं कि कामाख्या मंदिर की यात्रा और दर्शन महाभैरव उमानंद मंदिर के दर्शन के बिना अधूरे माने जाते हैं.

महाभैरव उमानंद वही तीर्थ  स्थल है, जहां समाधि में लीन भोले शंकर पर कामदेव ने कामबाण चलाया था और भोले शंकर ने क्रोध में आकर कामदेव को भस्म कर दिया था.  फिर मां कामाख्या के आशीर्वाद से कामदेव को नया जन्म मिला और ये पूरा क्षेत्र कामरूप के नाम से विख्यात हुआ.

रहस्य और चमत्कारों से भरा हुआ कामाख्या क्षेत्र माता के जागृत रूप का स्थल है. मान्यता है कि यहां मंगी हर मनोकामना पूरी होती है.

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