लोहड़ी से पोंगल तकः त्योहार एक तरीके अनेक

14 या 15 जनवरी (इस साल 14 जनवरी) सिर्फ राशियों के बीच संयोग की क्रांति नहीं होती है, बल्कि यह हमारे मन में विचारों की भी क्रांति होती है . सर्दी का मौसम जम जाने-जड़ हो जाने का प्रतीक है. 

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : Jan 13, 2021, 07:07 AM IST
  • दुल्ला भाटी के बिना अधूरी है लोहड़ी
  • नवचेतना का पर्व है तमिलनाडु का पोंगल
  • मकर संक्रांति में है दान का महत्व
लोहड़ी से पोंगल तकः त्योहार एक तरीके अनेक

नई दिल्लीः जनवरी के महीने में जब ठंड अपने शबाब पर है भारत के उत्तरी हिस्से से दक्षिणी सिरे तक त्योहारों की धूम है.  त्योहार भी  ऐसे हैं जिनके केंद्र में आग प्रमुखता से है और खानपान भी ऐसा निर्धारित है कि जिसमें वे ही मिठाइयां शामिल हैं, जिनकी तासीर गर्म होती हो. स्थलीय आधार पर इन त्योहारों के नाम अलग-अलग हैं. सदियों पहले की जिन दलीलों या परंपराओं के आधार पर यह त्योहार बनाए गए उनके पीछे का मकसद सर्वावइव करना या जीवन के प्रति संघर्ष ही रहा होगा.

आदिम समाज जिस तरीके के रहन-सहन में जी रहा था, वहां जरूरत पड़ी होगी कि वह झुंड में रहे. उनका यह झुंड में रहना तभी संभव हो पाता होगा कि वह साझेदारी भी करे. यह साझेदारी खान-पान की रही होगी, पहनने-ओढ़ने की रही होगी और साझेदारी रही होगी पूजा पद्धति की. यही वजह है कि युगों और सदियों से चली आ रही परंपरा के तहत हम त्योहारों पर एक साथ और एक जैसी आराधना करते हैं. परंपराओं का पालन करते हैं.

पंजाब में है लोहड़ी की धूम
इस वक्त जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों से लेकर दिल्ली के अधिकतर हिस्से तक लोहड़ी की धूम है. इस कुछ और अधिकतर के बीच में पंजाब आता है. जहां इस वक्त गूंज रहे हैं सुंदरिये मुंदरिये हो तेरा कौन विचारा हो के बोल. यहां बाजार सजे हुए हैं. मूंगफली-मकई के लावे , तिल-गुड़ की मिठाइयां बाजारों की रौनक है.

इसी के साथ फिजाओं में बह रही है उस रणबांकुरे की कहानी जिसने 500 साल पहले के अपने कारनामों से न सिर्फ इतिहास का एक पन्ना अपने नाम किया, बल्कि लोहड़ी की आग के साथ अमर हो गया. दुल्ला भाटी नाम के इस बांके नौजवान ने सत्ता की खिलाफत की और उसकी गलत ताकतों के खिलाफ आवाज उठाई. तब बादशाह अकबर आगरा से देश के बड़े हिस्से पर राज चला रहा था और इससे मीलों दूर पंजाब में लड़कियां बेची जा रही थीं. 

दुल्ला ने उन्हें बचाया और लोहड़ी के दिन उनकी शादी कराई.  सामाजिक ताने-बाने में दुल्ला ने ऐसी जगह बनाई कि लोहड़ी की पारंपरिकता में वह हर बार के लिए शामिल हो गया. आज दुल्ला की बातें न हो तो लोहड़ी हो ही नहीं सकती.

हरियाणा, उत्तर प्रदेश समेत मध्य भारत में संक्रांति
ग्रहों की चाल के आधार पर मध्य भारत मकर संक्रांति मनाता है. सूर्य का राशि परिवर्तन, एक राशि से दूसरी राशि में जाना साथ ही पृथ्वी का दिशा परिवर्तन ऐसी खगोलीय घटना है  जो कि भारतीयों के रहन-सहन पर सीधे तौर पर असर डालती है.

यह वह वक्त होता है जब मौसमी परिवर्तन हो रहे होते हैं. ठंड-गर्म का माहौल बनता बिगड़ता है और राशियों का यह परिवर्तन जीवन पर असरकारी होता है. 14 या 15 जनवरी (इस साल 14 जनवरी) सिर्फ राशियों के बीच संयोग की क्रांति नहीं होती है, बल्कि यह हमारे मन में विचारों की भी क्रांति होती है . सर्दी का मौसम जम जाने-जड़ हो जाने का प्रतीक है.

मकर संक्रांति पर गंगा स्नान और फिर दान आदि की परंपरा उसी जड़ता को उखाड़ देने का माध्यम है. चेतना की और लौटा व्यक्ति जब दोबारा समाज में पहुंचता है तो तिल-गुड़ के लड्डू इसे फिर से समाज में घुलना-जुड़ना सिखाते हैं. त्योहारों की मूल सिद्धांत भी यही है कि वह सामाजिकता को बचाए रखे.

दक्षिण भारत में पोंगल की छटा
फसलें कटकर घर आ चुकी हैं. इस वक्त कभी बारिश हो जा रही है और कभी सर्दी. समुद्र की तूफानी हवाएं भी कानों में शोर मचा जाती है तो आप तमिलनाडु में पहुंच चुके हैं. यहां लोग इंतजार कर रहे हैं कि कब सूर्यदेव आसमान में दिखें और वे इस दिन को अपना नया साल समझ लें. खुशी के इस आलम में दरवाजों पर रंग-रोगन हो रहे हैं. बच्चियों ने बड़ी खूबसूरत पूक्कलम रची है. गाय-बैलों को नहला-धुला कर सजाया गया है. इस बीच घर की बड़ी-बूढ़ी अलग-अलग मटकों का चुनाव कर रही है.

वह इनमें धान को दूध में भिगोकर शक्कर के साथ उबालेगी. इतना उबालेगी कि जब तक यह उफन कर किनारों पर न आ जाए. इसी के साथ उनकी स्थानीय भाषा में एक गीत भी हिलोरे लेता रहेगा. इसका मतलब है कि जैसे सागर का पानी उफन कर तट पर आया है, जैसे मेरी मटकी में उफान आया है, बस मेरे घर के बच्चों में खुशी भी ऐसी उफान पर आए.  समृद्धि और साथ-साथ मिलकर हंसने-गाने का यह त्योहार पोंगल है.

एक जैसी हैं त्योहारों की परंपराएं
त्योगहारों की यह परंपराएं एक जैसी हैं. यह उस बात को साबित करती है कि सभ्यताओं के अलग-अलग खांचे में बसे हम अलग नहीं हैं, बल्कि रंगोली के रंग हैं. जो अपने ही खांचे में है तो रंगोली सुंदर है. अलग-अलग उन रंगों का कोई मोल नहीं. हमारे त्योहार हमारी मानवीय इच्छाओं का प्रदर्शन होते हैं और मानवता की इच्छा यही है कि वह तिलगुड़ की तरह एक-जुट हो. उसमें सूरज के किरणों जैसी गर्मजोशी हो और यह एकजुट होकर सर्दी जैसी जड़ता को दूर भगा सके.  

लोहड़ी, संक्रांति और पोंगल की शुभकामनाएं.

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