Haridwar Mahakumbh 2021:शैव मत, जिसके लिए शिव ही शक्ति-शिव ही पूजा

Mahakumbh के दौरान सनातन परंपरा में अलग-अलग ईष्ट को मानने वाले लोग एक ही स्थान पर एकत्रित होते हैं. इनमें शैव और वैष्णव शाखा के लोग प्रमुख हैं. सनातन परंपरा में शैव और वैष्णव का संबंध सीधे महादेव शिव और श्रीहरि विष्णु से हैं

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 9, 2021, 08:49 AM IST
  • वेदों में सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद रुद्र देवता को नमन करता है
  • महाभारत के अनुशासन पर्व से भी लिंग-पूजा का वर्णन है
  • पाशुपत सम्प्रदाय शैवों का सर्वाधिक प्राचीन सम्प्रदाय है
Haridwar Mahakumbh 2021:शैव मत, जिसके लिए शिव ही शक्ति-शिव ही पूजा

नई दिल्लीः Haridwar Mahakumbh 2021 की जल्द ही शुरुआत होने वाली है. देवभूमि उत्तराखंड में श्रीहरि को समर्पित तीर्थ हरिद्वार में गंगा नदी के किनारे आस्था का सबसे बड़ा जमघट लगेगा. Kumbh मेले को यूं ही नहीं विश्व में सबसे महान और बड़ा मेला कहा जाता है, यह वाकई में वह स्थान बन जाता है, जहां एक के पीछे एक श्रद्धालुओं के जत्थे आते-जाते हैं और मां गंगा की पावन गोद का दुलार पाते हैं. 

 

लेकिन सबकी आस्था तो एक ही हिंदू या सनातन परंपरा. तो फिर कुंभ को आस्था का जमघट क्यों कहते हैं?

 
दरअसल, Mahakumbh के दौरान सनातन परंपरा में अलग-अलग ईष्ट को मानने वाले लोग एक ही स्थान पर एकत्रित होते हैं. इनमें शैव और वैष्णव शाखा के लोग प्रमुख हैं. सनातन परंपरा में शैव और वैष्णव का संबंध सीधे महादेव शिव और श्रीहरि विष्णु से हैं. लोक जगत में इन दोनों ही ईष्ट देवताओं की प्रमुख मान्यता है. इसलिए अक्सर घरों में या तो श्रीसत्यनारायण व्रत कथा के आयोजन होते हैं या फिर रुद्राभिषेक के. 
 
क्या है शैव मत

शैव का अर्थ है शिव को मानने वाले. इतिहास के दस्तावेजों से जानें तो शैव परंपरा का इतिहास सिंधु सभ्यता से भी प्राचीन मिलता है. सिंधु सभ्यता से इस बात के कई सबूत मिले हैं कि तब भी लोग शिव परंपरा को मानते थे.

 

भारत में बीते हजार सालों का दौर आक्रमण और विकृति का रहा, इसलिए भ्रांतियां बहुत सारी फैल गई हैं. लेकिन कई पांरपरिक ग्रंथों पौराणिक कथाओं में शिवपूजा के अलग-अलग स्वरूप मिलते हैं. यह लिंग या प्रतीक पूजा, रूप पूजा के तौर पर भी मिलती है. 

 
वेदों में अलग-अलग रूपों में है महादेव का वर्णन

वेदों में सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद रुद्र देवता को नमन करता है. उनका उल्लेख उसमें है. शिवलिंग उपासना का प्रारंभिक पुरातात्विक साक्ष्य हड़प्पा संस्कृति के अवशेषों से मिलता है. इसके बाद सबसे आखिरी ग्रंथ अथर्ववेद में शिव को भव, शर्व, पशुपति और भूपति कहा जाता है. लिंगपूजा का पहला स्पष्ट वर्णन मत्स्यपुराण में मिलता है. महाभारत के अनुशासन पर्व से भी लिंग-पूजा का वर्णन है. वेदों के उपवेदों में शिव परिवार का वर्णन है. रुद्र के पत्नी के रूप में पार्वती का नाम तैत्तिरीय आरण्यक में मिलता है. 

 
शैव संप्रदाय के हैं कई स्वरूप

शैव संप्रदाय के भी कई स्वरूप हैं. वामन पुराण शैव के चार संप्रदाय पाशुपत, कापालिक, कालामुख, लिंगायत बताता है. पाशुपत सम्प्रदाय शैवों का सर्वाधिक प्राचीन सम्प्रदाय है. शिव का भैरव स्वरूप कापालिक संप्रदाय का ईष्ट है.

 

12 ज्योतिर्लिंग में एक श्रीशैलम लिंग भैरव स्वरूप ही है. पुराण कथाएं शिव के 11 रुद्र अवतारों जिन्हें रुद्रांश कहा जाता है शिव के 10 स्वरूप अवतारों की कहानियां कहती हैं. इनमें 11 रुद्र अवतार हैं. 

 
  • कपाली
  • शास्ता
  • भीम
  • आपिर्बुध्य
  • विलोहित
  • अजपाद
  • पिंगल
  • चण्ड
  • विरुपाक्ष
  • भव
  • शम्भू
 
इसलिए है कुंभ आस्था का जमघट

शिव पुराण, लिंग पुराण, स्कंद पुराण महादेव से संबंधित विशेष पुराण हैं. इसके अलावा वेदों में भी शिव महिमा का वर्णन हैं. यह सभी कुछ शैव का संप्रदाय का संक्षिप्त परिचय है केवल. हर एक शब्द की महिमा में महाग्रंथ लिखे गए हैं. शिव के इन सभी स्वरूपों को मानने वाले हरिद्वार में गंगा किनारे जुटेंगे और हर-हर महादेव का उद्घोष कर हर-हर गंगे भी कहेंगे. इसीलिए कुंभ आस्था का जमघट है. 

 

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