वाराणसीः होली के हुल्लड़ में कुछ दिन बाकी हैं, लेकिन होली का हुल्लास अपने चरम पर है. धर्म और तीर्थ नगरियां तो एक महीने पहले से इस रस में सराबोर हैं और वसंत के आगमन के साथ ही मस्ती में झूम रही हैं. एक तरफ ब्रज की मिट्टी की रंगीन होली श्रद्धालुओं को रंग रही है और कई रूप दिखा रही है तो तीर्थ नगरी बनारस भी कुछ कम नहीं है.
ब्रज धाम में जहां हरि अवतार कृष्ण गोप-गोपिकाओं के साथ रास रचाते हुए होली का रंग जमाते हैं तो वहीं बनारस में विश्वनाथ देवों के देव महादेव मसाने (श्मसान) की होली से सभी को रंग देते हैं. इस होली अवधूत, भूत-पिशाच, गण-प्रेत सभी शामिल होते हैं. चिता की भस्म से खेली जाने वाली यह होली अनूठी है.
यह है अनूठी परंपरा
परंपराओं के अनुसार रंगभरी एकादशी के ठीक अगले दिन भगवान शिव के स्वरूप बाबा मशान नाथ की पूजा कर श्मशान घाट पर चिता भस्म से उनके गण होली खेलते हैं. काशी मोक्ष की नगरी है और मान्यता है कि यहां भगवान शिव स्वयं तारक मंत्र देते हैं. इसलिए यहां मृत्यु भी उत्सव है और होली पर चिता की भस्म को उनके गण अबीर और गुलाल की भांति एक दूसरे पर फेंककर शिव की कृपा पाने का उपक्रम करते हैं.
काशी में यह होली शुक्रवार को खेली गई. दोपहर में चिता भस्म की होली शुरू हुई तो हर-हर महादेव से घाट और गलियां गूंज उठीं.
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इसलिए खेली जाती है चिता भस्म होली
पौराणिक मान्यता के अनुसार वसंत पंचमी से बाबा विश्वनाथ के वैवाहिक कार्यक्रम का जो सिलसिला शुरू होता है वह होली तक चलता है. वसंत पंचमी पर होलिका गाड़े जाने के साथ बाबा का तिलकोत्सव मनाया गया तो महाशिवरात्रि पर विवाह और अब रंगभरी एकादशी पर गौरा की विदाई होगी. इसके अगले ही दिन बाबा अपने बारातियों के साथ महाश्मशान पर दिगंबर रूप में होली खेलते हैं.
मणिकर्णिका घाट पर चिता भस्म से ‘मसाने की होली’ होली खेलने की परंपरा का निर्वाह पौराणिक काल में संन्यासी और गृहस्थ मिलकर करते थे. बाद में यह प्रथा लुप्त हो गई थी. बताते हैं कि करीब 25 साल पहले मणिकर्णिका के लोगों और श्मशानेश्वर महादेव मंदिर प्रबंधन परिवार के सदस्यों ने इस परंपरा की फिर से शुरुआत की तो देश-विदेश से बड़ी संख्या में लोग इसे देखने पहुंचते हैं.
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अनोखी है काशी, अनूठे हैं यहां के रंग
राग विराग की नगरी काशी की परंपराएं भी अजग और अनोखी हैं. रंगभरी एकादशी पर भूतभगवान बाबा भोलेनाथ के गौना के दूसरे दिन काशी में उनके गणों के द्वारा चिता भस्म की होली की मान्यता है. रंगभरी एकादशी के मौके पर गौरी को विदा करा कर कैलाश ले जाने के साथ ही भगवान भोलेनाथ काशी में अपने भक्तों को होली खेलने और हुडदंग की अनुमति प्रदान करते हैं.
बाबा के होली के हुडदंग की अनुमति के बाद ही काशी होली के रंग में रंगती है. सुबह से ही बाबा मशाननाथ की विधि विधान पूर्वक पूजा का दौर शुरू हुआ तो चारों दिशाएं हर-हर महादेव से गूंज उठीं. देसी-विदेशी सैलानी ही नहीं बल्कि बाबा के गणों का रूप धरे लोगों ने भी मशाने की होली खेलकर परंपराओं का निर्वहन किया.