नई दिल्लीः Haridwar Mahakumbh 2021 का आगाज हो चुका है. इसके साथ श्रद्धालुओं के कदम हरिद्वार में पवित्र मां गंगा की ओर बढ़ चले हैं. मानव जीवन के लिए जल तो वैसे भी अमृत है और गंगा जल वह पावन जल स्त्रोत है जिसका संबंध सीधा अमृत से है.
समुद्र मंथन से निकला अमृत देवताओं और दानवों के युद्ध का कारण बना और इस कुंभ की छीना झपटी में अमृत छलक-छलक कर पृथ्वी चार स्थानों पर गिरा और नदियों में मिल गया. हरिद्वार-प्रयाग-नासिक और उज्जैन ही वह पवित्र स्थल हैं. यह चारों स्थल धर्म और आस्था के सनातनी केंद्र भी हैं. जहां युगों से चली आ रही कुंभ लगने की परंपरा भारत की संस्कृति का सबसे पुराना और सबसे ऐतिहासिक दस्तावेज है.
कुंभ आयोजन की कई कथा
कुंभ के आयोजन का आधार कई पौराणिक कथाएं हैं. कुछ कथाओं का वर्णन भागवत में है तो कुछ कथाएं स्वरूप बदल-बदलकर लोक शैली में कही और सुनाई जाती रही हैं. लेकिन सभी कथाओं के मूल किरदारों में भगवान विष्णु, महादेव शिव, देव-दानवों की ईर्ष्या और देवनदी गंगा की सरलता और पवित्रता शामिल है.
कुंभ की ऐसी ही एक कथा श्रीहरि के लक्ष्मी-नारायण स्वरूप की मान्यता से निकलती है. जहां श्रीहरि विष्णु, क्षीरसागर में अपनी पत्नी महालक्ष्मी के साथ शेष शैय्या पर विराजते हैं.
शंख को मिला था कर लेने का दायित्व
ऐसे ही एक दिन श्री विष्णु और लक्ष्मी क्षीरसागर में बैठे संसार के सुख-दुख देख रहे थे और प्राणियों के पापों और कष्टों के निवारण की विधि खोज रहे थे. इतने में वहां समुद्र का पुत्र शंख प्रकट हुआ. समुद्र पुत्र शंख सिंधुराज का युवराज था और उसे समुद्र ने सागर में रहने वाले सभी जीवों से कर लेने का दायित्व सौंप रखा था.
वह सभी से कर लेता था और नियमानुसार पाताल और नागलोक भी सागर के तल में होने के कारण समुद्र को कर देते थे. एक दिन पाताल में रहने वाले राक्षसो ने षड्यंत्र करके शंख के कान भर दिए कि तुम सबसे तो कर लेते हो, लेकिन विष्णु और लक्ष्मी से कर क्यों नहीं लेते. ठीक है कि वह सागर तल में नहीं रहते, लेकिन उनका आसान तुम्हारे पिता के राज्य के ठीक ऊपर ही तो है.
श्रीहरि से कर लेने पहुंचा शंख
शंख उन दैत्यों की बातों में आ गया. वह अपनी गदा लेकर सागर के ऊपर प्रकट हुआ और श्रहरि को ललकारने लगा. उसने अपशब्दों का प्रयोग करते हुए विष्णु को संबोधित किया कहा कि तुम मेरा कर दबा कर बैठे हो. श्रीहरि ने कोमलता से जवाब दिया,
नहीं शंख, मैंने कोई कर नहीं चुराया है, तुम अपने पिता समुद्र से पूछ लो, क्या नियम है? लेकिन दैत्यों की बात से बहका हुआ शंख कुछ भी सुनने की स्थिति में नहीं था. उसने कहा- एक तो चोरी फिर सीना जोरी, हमें ही बताओगे नियम.
शंख ने देवी लक्ष्मी का किया अपमान
ऐसा कहते हुए उसकी देवी लक्ष्मी पर नजर पड़ीं. लक्ष्मी रत्नों की खान हैं और सागर से निकलने वाले रत्न भी लक्ष्मी कहलाते हैं. ऐसे में सिंधुराज ने सृष्टि के प्रारंभ में लक्ष्मी को पुत्री माना था. उन्होंने देवी से अपनी पुत्री बनने का वरदान भी लिया था. लक्ष्मी अपने भाई की ऐसी बातों से अप्रसन्न हो रही थीं. वह शंख को ऐसा बोलने से रोकने ही वाली थीं कि शंख ने उन्हें देखकर बड़ा अपराध कर दिया. शंख ने कहा-कर देने की इच्छा नहीं है और इतनी सुंदर स्त्री के साथ बैठे हो, लाओ कर स्वरूप में मुझे यही स्त्री दे दो. इस पर लक्ष्मी-नारायण दोनों ही क्रोधित हो गए. क्रोधित विष्णु ने कौमुदी गदा का प्रहार कर शंख का वध कर दिया.
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समुद्र ने दिया श्रीहरि को श्राप
शंख के वध की जानकारी मिलते ही क्रोधित समुद्र राज भी अपना आपा खो बैठे. वह क्षीरसागर में प्रकट हुए और बिना कोई बात सुने श्रीहरि विष्णु को श्राप दिया कि जिस लक्ष्मी के कारण उन्होंने शंख का वध किया है उनसे ही उनका वियोग हो जाएगा और लक्ष्मी लुप्त होकर समुद्र में समा जाएंगीं. यह था तो श्राप, लेकिन इसके पीछे लीला रची गई थी कि लक्ष्मी देवी समुद्र के घर में जन्म लें और दूसरा यह कि समुद्र मंथन हो. महाविष्णु ने सागर से कई बार अनुरोध किया कि वह देवी लक्ष्मी को लौटा दें. सागर राज ने एक भी बात नहीं मानीं.
इसलिए हुआ सागर मंथन
तब श्रहरि ने देवताओं के साथ मिलकर और महादेव के आदेश पर दानवों ने साथ देकर सागर का मंथन किया.
इस मंथन में समुद्र को अपने अमूल्य रत्न गंवाने पड़े इसके बाद उन्होंने हार स्वीकार करते हुए लक्ष्मी और अमृत कलश भी भेजा. लक्ष्मी ने विष्णु से फिर से विवाह किया और अमृत कलश को लेकर देव-दानवों में युद्ध छिड़ गया.
कुंभ की यह भी एक वजह
यही युद्ध धरती पर कुंभ मेले की वजह बना. इसके बाद शंख ने भी आत्म स्वरूप में लक्ष्मी-नारायण से क्षमा मांगी. श्रीहरि ने कहा अब तुम मेरे संबंधी हो गए हो इसलिए मेरी पूजा में निकट ही रहोगे. लेकिन लक्ष्मी ने कहा कि अब तुम्हें शरीर नहीं मिलेगा और मेरी पूजा में शामिल नहीं रहोगे, लेकिन जब-जब महाविष्णु की पूजा में तुमसे निकली ध्वनि उनकी स्तुति बनेगी. इस तरह स्तुति करने वाले श्रद्धालुओं पर मेरी कृपा बनी रहेगी.
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